श्रीमद् देवी भागवत (7) : पं. राजकुमार शर्मा बोले “वीर, सौम्य, दृढ़, मजबूत सकारात्मक विचारों वाली सभी स्त्रियां देवी का अंश हैं”

कोरबा। “श्रीमद् देवी भागवत पुराण देवी महात्म्य देवी का दिव्य ज्ञान स्त्री की श्रेष्ठता पर बल देता है। श्रीमद् देवी भागवत पुराण के परायण से जीवन मोक्ष की ओर जाता है। श्रीमद् देवी भागवत।मां आदिशक्ति की सर्वोच्चता पर अच्छाई और बुराई, देवताओं और राक्षसों के बीच संघर्ष के सतत चक्र की महागाथा है। ” श्रीमद् देवी भागवत कथा पुराण के सातवें दिवस व्यासपीठ से पं. राजकुमार शर्मा जी ने देवी मां की शास्वता और निरंतरता को लेकर कहा कि “मां आदिशक्ति का कृपापात्र बनने के लिए भक्ति ही एक मात्र माध्यम हैं। मां जगदंबे के विभिन्न रूपों में से मां गंगा, मां सरस्वती और तुलसी भी है। देवी मां में शाश्वत सत्य, ब्रह्मांड के सभी तत्वों का शाश्वत स्रोत, हर चीज का शाश्वत अंत, निर्गुण और सगुण, सर्वोच्च अपरिवर्तनीय वास्तविकता, अभूतपूर्व बदलती वास्तविकता (प्रकृति), साथ ही प्रत्येक जीवित प्राणी के भीतर आत्मा होती है।”

श्रीमद् देवी भागवत के दौरान व्यासपीठ पर आसन पं. राजकुमार शर्मा जी की माता श्रद्धेय श्रीमती जैतीन शर्मा की नियमित रूप से गरिमामय उपस्थिति से समूचा पंडाल शोभायमान रहा।

व्यासपीठ से  पं. राजकुमार शर्मा ने आगे कहा कि जो लोग देवी मां की सदैव महिमा सुनते हैं, जगदंबे का नाम जपते हैं तथा जिनका मन निरन्तर तेल की धारा के समान देवी जगदंबे में ही लगा रहता है, जो समस्त शुभ गुणों का भण्डार है। परन्तु उसमें कर्मों के फल की तनिक भी इच्छा नहीं रहती ;  सामीप्य, साष्टी, सायुज्य, सालोक्य आदि मोक्षों की भी इच्छा नहीं करता। वह देवी मां में ही भक्ति से युक्त हो जाता है, देवी की ही पूजा करता है; देवी की सेवा से बढ़कर उसे कुछ भी नहीं मालूम, तथा वह मोक्ष की भी इच्छा नहीं करता। वह सेव्य तथा सेवक की भावना को त्यागना नहीं चाहता। वह निरन्तर जागृतिपूर्वक तथा परम भक्ति से प्रेरित होकर देवी जगदंबे का ध्यान करता है; वह अपने को देवी मां से पृथक नहीं मानता, अपितु अपने को ‘मैं ही भगवती हूँ’ ऐसा मानता है। वह समस्त जीवों को अपने समान मानता है तथा अपने समान ही मुझसे प्रेम करता है। वह जीवों में और मुझमें कोई भेद नहीं मानता,  सभी जीवों को नमन करता है तथा उनकी पूजा करता है..ऐसे विचार करने वालों को सहज रूप से ही जीवन सरल हो जाता है और वे मां जगदंबे के कृपापात्र सदैव रहते हैं।

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श्रीमद् देवी भागवत कथा पुराण के दौरान सर्वश्री दिलीप तिवारी, प्रवीण शर्मा, कौशल शुक्ला की कथा वाचन में विशिष्ट सहभागिता रही।

पं. राजकुमार शर्मा कहते हैं कि देवी भागवतम में कई ऐसी घटनाओं का वर्णन किया गया है जो सीधे कर्म को प्रभावित करती हैं। वे आगे कहते हैं कि व्यक्ति के कर्मों को क्षमा कर देना चाहिए। जैसा कर्म होता है, वैसा ही परिणाम होता है। इस कथा में कर्म के सिद्धांत और भाग्य के सिद्धांत को को भी बताया गया है।

श्रीमद् देवी भागवत कथा पुराण के दौरान सुमधुर भजनों को भक्तिमय संगीत से पिरोकर समूचे पंडाल को आल्हादित करने में चंदू बरेठ, नारायण श्रीवास, मानसिंग की कुशल प्रस्तुति सराहनीय रही।

पं. राजकुमार शर्मा कहते हैं कि “देवी भागवत पुराण में देवी अविद्या (अज्ञान) के माध्यम से आत्म-बंधन का स्रोत और विद्या (ज्ञान) के माध्यम से आत्म-मुक्ति का स्रोत हैं। पाठ के अनुसार, वह ब्राह्मण की वैदिक आध्यात्मिक वास्तविकता अवधारणा, सर्वोच्च शक्ति, ब्रह्मांड के शासक, नायक, छिपी हुई ऊर्जा, शक्ति, हर चीज में निहित आनंद के समान है।”

आकर्षक झांकियों से कथा वाचन के दौरान पंडाल शोभायमान रहा।

मां जगदंबे की सर्वव्यापकता के विषय में पं. राजकुमार शर्मा कहते हैं कि “देवी की पहचान इस पुराण द्वारा सभी पदार्थ, धरती माता, ब्रह्मांड, आदिम सहित पूरी प्रकृति के रूप में की गई है।” आगे वे कहते हैं कि “देवी को “ब्रह्मांड के गर्भ” के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अपने बच्चों के कार्यों का अवलोकन करती है।”

कथा वाचन के बाद अंत में यज्ञ में आहुति उपस्थित लोगों के द्वारा दी गई, इस दौरान पं. राजकुमार शर्मा जी ने मंत्रोच्चार के साथ सबके जीवन में शुभ-मंगल एवं जीवन में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए वैदिक मंत्रों का पाठ किया।

श्रीमद् देवी भागवत में स्त्रियों के विषय में उल्लेखित कथाओं के संबंध में पं. राजकुमार शर्मा ने बताया कि “देवी महात्म्य में कहीं भी महिलाओं के बारे में कुछ भी नकारात्मक नहीं कहा गया है, और यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “”वीर, सौम्य, दृढ़, मजबूत”” सकारात्मक विचारों वाली सभी स्त्रियां देवी का अंश हैं।”

 

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