अमित सिंघल : भाग-1 यह मैं लिखता नहीं; लेकिन प्रधानमंत्री मोदी पर स्वजन के कटाक्ष के कारण लिखना पढ़ा
एक राष्ट्र के अति धनाढ्य नेता (नाम नहीं ले सकता; कार्यक्षेत्र की कुछ सीमाओं से बंधा हूँ) के पदग्रहण के तुरंत पश्चात् दर्जनो आदेश पारित किए, जिसे देखकर राष्ट्रवादी लहालोट हो रहे है। उसे आधार बनाकर प्रधानमंत्री मोदी पर कटाक्ष भी कर रहे है।
सर्वप्रथम, यह समझना आवश्यक है कि नेता वही कार्यकारी आदेश साइन कर रहे है जिससे उनके पूर्ववर्ती नेता के कार्यकारी आदेशों को निरस्त किया जा सके। महत्वपूर्ण यह है कि ऐसे किसी भी आदेश का पालन नेता के कार्यकाल तक सीमित होता है। अगर किसी अन्य पार्टी का नेता आ गया, तो ऐसे सारे आदेश कूड़ेदान में डाल दिए जाएंगे।
फिर किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में चेक्स एंड बैलेंसेस (checks and balances) होता है। अगर फेडरल (केंद्र) व्यवस्था कोई आदेश पारित करती है, तो उसे राज्य लागू करने से मना कर सकता है। इस राष्ट्र के दो सर्वाधिक धनी राज्य विपक्ष के पास है; एक राज्य की जीडीपी भारत के समकक्ष है। फिर इन आदेशों को कोर्ट में चुनौती दी जायेगी।
इस राष्ट्र में जन्म से नागरिकता मिलना संविधानिक अधिकार है। इसे नेता जी अपने आदेश से नहीं कैंसल कर सकते है। जन्म से नागरिकता निरस्त करने वाले आदेश को कोर्ट से स्टे मिल गया है; अन्य 22 राज्यों में कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। यद्यपि राष्ट्र के सर्वोच्च न्यायालय में नेता जी के दल द्वारा नियुक्त किये न्यायाधीशों का विशाल बहुमत है, जो नेता जी के आदेशों का समर्थन कर सकते है; फिर भी सर्वोच्च न्यायालय तक अत्यधिक कम केस पहुंचते है। अगली समस्या आएगी संसद से कानून पारित करवाने में। यद्यपि बहुमत है, लेकिन “राज्य सभा” जैसे सदन में सुपर मेजोरिटी (नेट पर सर्च करके पढ़ सकते है) नहीं है। अधिकतर कानून को “राज्य सभा” वाले सदन में विपक्ष आगे नहीं बढ़ने देने में सक्षम है।
सरकारी व्यय कम करना – इस देश में कदाचित ही ऐसा बाबू मिले जो बेगारी कर रहा हो। कोई चतुर्थ श्रेणी नहीं है। केवल प्रोफेशनल एवं सपोर्ट स्टाफ होते है। पांच या छह प्रोफेशनल के मध्य एक सपोर्ट स्टाफ होता है। इस देश में अधिकतर जेल निजी क्षेत्र में है। रेलवे निजी है। बिजली उत्पादन एवं वितरण निजी है। यहाँ तक कि सरकारी कर्मियों की पेंशन भी निजी क्षेत्र में है। बैंक निजी है। स्वास्थ्य व्यवस्था निजी है। कूड़ा निष्पादन निजी है। यहाँ तक कि डिफेन्स के कई कार्य (जैसे कि फौजियों की भोजन व्यवस्था) निजी क्षेत्र में है। आप केवल केंद्र के सरकारी कार्यालय बंद कर सकते है; स्टाफ की संख्या कम कर सकते है। लेकिन फिर वही कार्य आउटसोर्सिंग (किसी वाह्य एजेंसी) से करवाना होगा। दूसरे शब्दों में, सरकारी व्यय कम करने का केवल स्लोगन है; जब धरातल पर ठोस कार्यान्वन (2 ट्रिलियन डॉलर कम करने का वादा है) होगा, तब संवाद आगे बढ़ाएंगे।
निश्चित रूप से, घुसपैठियों को वापस भेजा जाना चाहिए। लेकिन इस मामले में आंशिक सफलता ही मिलनी है, वह भी कई बिलियन डॉलर व्यय करके।
बच्चो से सेक्स के अपराधी, संसद के अंदर पुलिस कर्मियों पर हमला करने वाले दंगाई, ठग, भ्रष्टाचारी, तथा जबरन वसूली करने वाले, जिन्हें इस राष्ट्र के न्यायाधीशों द्वारा दोषी ठहराया गया था, उन्हें नेता जी ने पहले ही दिन क्षमादान दे दिया। इनके पूर्व वाले नेता जी भी यही कर चुके है।
क्या आप भारत में भी यही चाहते है कि पार्टी के आधार पर न्यायाधीशों द्वारा दोषी पाए गए अपराधियों को बरी कर दिया जाए? अगर राहुल या कजरी केंद्र में आ जाए और उमर खालिद या यासीन मालिक को रिहा कर दे, तो आपको कैसा लगेगा? या फिर, 370 को एक आदेश से वापस ले आए (यह संभव नहीं है, लेकिन आदेश इश्यू करने में क्या जाता है? अगले पक्ष के कट्टर समर्थक प्रसन्न हो जाएंगे)?
फिर इस नेता की नीतियों के कुछ परिणामो पर भी विचार करते है। अन्य देशो पर टैरिफ या तटकर लगाने के बाद मंहगाई बढ़नी ही है क्योकि इस देश में मैन्युफैक्चरिंग लगभग नगण्य है। कुछ ही समय में मुद्रा नीति (रिज़र्व बैंक) एवं वित्तीय नीतियों (सरकारी) में टकराव होगा। केंद्र के अलावा राज्य भी आयकर लेते है।
राष्ट्र की जीडीपी 29 ट्रिलियन डॉलर है, जबकि उधारी 36 ट्रिलियन की है। राजकोषीय घाटा 6 प्रतिशत से अधिक है। यह एक ऐसी भयावह स्थिति है जो केवल इस राष्ट्र के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्टेबिलिटी के लिए एक संकट है। अभी तक के बड़बोलेपन से पता ही नहीं चलता है कि इन दोनों कैसे निपटा जाएगा?
शीघ्र ही फेडरल (केंद्र) एवं राज्य सरकारों में टकराव होगा, तब इस संवाद को आगे बढ़ाएंगे।
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अगले भाग में विचार-विमर्श करेंगे कि नेता जी किन विषयो पर चुप्पी साध गए है या क्या नहीं कर रहे है, जो एक प्रबुद्ध नेता को करना चाहिए। अर्जेंटीना का भी उदाहरण को भारत में लागू करवाने की लालसा के परिणामो को भी समझने का प्रयास करेंगे।
