कौशल सिखौला : अनाथ गठबंधन में राजनीति के सबसे चतुर खिलाड़ी ये हैं क्योंकि…
जब साथ मिल बैठकर महफिल जमाने के दिन आए तो वे न्याय यात्री बनकर निकल पड़े !
अब जहां जहां से गुजर रहे हैं , राज्य छोड़ते ही भगदड़ मच रही है !
लोग तो क्या जुड़ते , बारी बारी अपने ही बिछड़ रहे हैं ?
अपने कट्टर दुश्मन अधीर रंजन चौधरी की परंपरागत सीट पर यूसुफ पठान को उतार कर ममता ने राहुल और खड़गे को कड़ी चुनौती दी है । कुछ महीने पहले नीतीश कुमार की जगह खड़गे को इंडिया गठबंधन का अध्यक्ष चुनवा कर ममता ने गठबंधन का भविष्य बिगाड़ा था । अब एक तीर से दो शिकार करते हुए ममता ने सोनिया के चहेते अधीर रंजन को जमीन सुंघाई है तो साथ ही प्रकाश करात , सीताराम येचुरी आदि वामपंथियों को भी बता दिया है कि नाम की दीदी ममता उन्हें फूटी आंखों बर्दाश्त करने को तैयार नहीं।
बहरहाल बंगाल में सीधे के बजाय चौकोना मुकाबला होता देख भाजपा बेहद प्रसन्न है । हालांकि पिछली लोकसभा में 18 सीट सीधे मुकाबले में जीतकर भाजपा ने बंगाल में पैठ बना ली थी । बाद में विधानसभा चुनाव में भी 88 सीट जीतकर बीजेपी ने बता दिया था कि भगवती दुर्गा काली की इस भूमि पर भगवा लहराने में अब बहुत देर नहीं लगेगी । तथापि ममता की एकला चलो रणनीति से पहले ही लड़खड़ा रहे इंडिया गठबंधन को भारी धक्का लगा है । ट्रेलर शिवसेना ने भी महाराष्ट्र में संजय निरुपम की सीट पर प्रत्याशी उतार कर दिखा दिया है।
अभी और क्या क्या होना है , समय बताएगा । गठबंधन को इंडिया नाम देने वाले राहुल गांधी की गठबंधन में कितनी रुचि है , इसका खुलासा उसी दिन हो गया था जिस दिन वे गठबंधन को दगा देकर अपनी न्याय यात्रा लेकर निकल गए थे और गठबंधन को अनाथ छोड़ दिया था । राजनीति के चतुर खिलाड़ी नीतीश इंडिया नामकरण होते ही गठबंधन को टाटा बाय बाय कहकर चल पड़े । उन्होंने उचित समय पर भाजपा का दामन थामकर अपनी राजनैतिक कुशलता का परिचय दे दिया है । राहुल यदि गठबंधन के नाम पर यात्रा निकालते तो कहानी कुछ और होती । अब कांग्रेस की न्याय यात्रा गठबंधन के लिए ही अन्याय हो चली है।
समय , चुनाव के महत्वपूर्ण अंग टिकट वितरण का चल रहा है । यह काफी संवेदनशील समय है । निश्चित रूप से चुनाव आयोग के लिए भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय आ गया है । चिंता की बात है कि दोनों चुनाव आयुक्तों के पद खाली पड़े हैं । निःसंदेह यह सीधे सीधे सरकार पर प्रश्नचिन्ह है । इतना बड़ा चुनाव अकेले मुख्य चुनाव आयुक्त के लिए संपन्न कराना संभव नहीं।
देश में राजनैतिक माहौल एकदम गर्म है । ऐसे में चुनावी मशीनरी को दमदार होना चाहिए । चुनाव की अधिसूचना जारी करने का समय भी करीब आ गया है । दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के आम चुनावों पर सारे जगत की निगाहें टिकी हैं । एक बार फिर से हमें सफलता हासिल करनी पड़ेगी । लोकतंत्र को चुनाव से जीवन मिलता है , इस बात में कोई शक नहीं । चुनावों के रास्ते से लोकतंत्र की गाड़ी आगे बढ़ती है।