देवांशु झा : लता मंगेशकर ही क्यों…
किसी भी गीत की एक आयु होती है। यद्यपि उसका ठीक-ठीक निर्धारण तो कोई कर नहीं सकता लेकिन वह धीरे-धीरे मरने लगता है। समझने वाली बात यह भी है इस जीवनावधि में वह क्षणिकाओं की तरह प्रकट होकर बुझता भी रहता है। मेरा व्यक्तिगत विचार है कि लता जी के गीतों में सर्वाधिक अनश्वरता है। उनका पुनर्नवीकरण होता रहता है।
अपने ही स्वर के जीवनरस से खुद को सींचते हुए वे लहलहा उठते हैं। युग और दौर उनके लिए सर्वथा बेमानी हैं। ऐसा अन्य लोगों को उनके प्रिय गायकों को सुनते हुए भी अनुभव होता होगा, इससे इनकार नहीं है किन्तु मैं संगीत कार्यक्रमों में उनके गाए गीतों को गाने वाली प्रतिभागियों की संख्या देखकर दंग हो जाता हूॅं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उन्होंने अच्छा गाने वाली गायिकाओं की जैसी लेगेसी बनाई और आज तक बनाती चली जा रहीं, वह अविश्वसनीय सा लगता है। अन्य गायक इस अर्थ में उनसे मीलों पीछे हैं।
यह कलाकर्म की ऊंचाई का प्रमाण है। मैं उनके गाने खोजते हुए जितने गाने छोड़ देता हूॅं, उतने तो अन्य गायकों के जीवन में यादगार गाने नहीं होते। वह चार दशकों में फैला गायन ऐसे विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है कि उसकी जटाओं पर झूलने वाली बढ़िया गायिका के रूप पहचानी जा रही हैं। कल जब मैंने उनका दिव्य गीत..अगर मुझ से मुहब्बत है, सुना तो उसे सुनता चला गया। मुझ पर कोई नशा चढ़ गया था। मैं जब भी सुनता, वह उतना ही ताजा और नया सुनाई पड़ता। टैम्पो पर दिन भर बाजारू गाने सुनने वाले को उसी में आनन्द आता है। वह कह सकता है कि मेरे लिए तो यही रस है लेकिन रस का कोई मानक तो होना चाहिए।
अगर मुझ से मुहब्बत है का फिल्मांकन इतना रद्दी है कि देखकर हॅंसी आती है। अभिनेत्री तो क्या ही कहूॅं! धर्मेन्द्र के एक्सप्रेशंस भी हास्यास्पद हैं। यह लता जी के जीवन में बार-बार होता रहा। लेकिन उनकी महानता इस बात में थी कि वे अति साधारण, लगभग गुमनाम अभिनेत्रियों को भी अपना दिव्य स्वर सौंपती थीं। उन्होंने चेहरे देखकर गाने नहीं गाए। उनके लिए संगीत एक साधना थी। उन्हें आप सिनेमा में गाने वाली कहकर नहीं आंक सकते। यह एक अपराध है। वह सुगम संगीत के संसार की मानिनी थीं। सच्चे अर्थों में सम्राज्ञी। मैं उन्हें सुनते हुए अक्सर रवीन्द्रनाथ की इस पंक्ति पर लौट आता हूॅं कि मेरे हृदय में एक विरहिणी बैठी है, वह जब-जब रोती है, तब मैं कुछ लिख देता हूॅं। लता जी एक साक्षात विरहिणी थीं। इसलिए वे एक साक्षात्कार में कुछ उदास हॅंसी के साथ कहती हैं कि अगले जन्म में लता मंगेशकर नहीं होना चाहती। क्योंकि लता मंगेशकर होने के बहुत संताप हैं।
मैंने यह अनुभव किया है कि जब-जब मेरा मन बंजर हुआ है और जीवन के घात प्रतिघातों से विरक्ति छाने लगी है, तब-तब उनके कालजयी गीत मुझे जीवन में खींच लाए हैं। मैं एक नयी आशा से इस संसार को देखने लगा हूॅं। मरे हुए मन पर प्रेमांकुर उगाने वाली अनन्य गायिका हैं लता मंगेशकर। प्रेम को वैसा कोई नहीं गा सका। जब मैं प्रेम कहता हूॅं तो उसमें आनन्द, शोक, विरह और सभी तरह के राग विराग आते हैं। वे अपने सैकड़ों, हजारों गीतों से कोई स्मारक गढ़ती चली हैं। जिस पर समय की कालिख नहीं पड़ सकी है। वह आज भी दमक रहा। आने वाले युगों तक दमकता रहेगा।