सुरेंद्र किशोर : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पूर्व प्रधानमंत्री की अपील

‘‘आपातकालीन सेनानियों को स्वतंत्रता सेनानियों के समान
घोषित करके उन्हें उसी तरह की सुविधाएं दी जाएं’’
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पूर्व प्रधान मंत्री एच.डी.देवगौड़ा ने इस माह एक पत्र लिखकर प्रघान मंत्री नरेन्द्र मोदी से आग्रह किया है कि ‘‘कृपया देश भर में सभी जीवित आपातकालीन सेनानियों को एक केंद्रीय योजना के तहत पेंशन लाभ प्रदान करने पर विचार करें।’’
उन्होंने यह सुझाव भी दिया है कि लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के संरक्षण में उनकी भूमिका को स्वीकार करते हुए आपातकालीन सेनानियों को स्वतंत्रता सेनानियों के समान घोषित किया जाए।


साथ ही,सभी राज्य सरकारों को आपातकालीन सेनानियों को समान रूप से मान्यता देने तथा समानता और न्याय सुनिश्चित करते हुए पर्याप्त राज्य स्तरीय लाभ प्रदान करने के लिए उपयुक्त निदेश जारी करें।’’
श्री देवगौड़ा ने लिखा है कि ऐसा कदम न केवल उनके बलिदानों
का सम्मान करेगा,बल्कि लोकतंत्र और न्याय के सिद्धांतों के प्रति हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता को भी मजबूत करेगा।यह एक सामयिक और सार्थक कदम होगा।क्योंकि हम अपने महान राष्ट्र की नींव रखने वाले मूल्यों का सम्मान और संरक्षण करते रहेंगे।हमें आशा है कि आप इस अनुरोध पर विचार करेंगे।’’

Veerchhattisgarh


पूर्व प्रधान मंत्री ने श्री मोदी को लिखे अपने पत्र की शुरुआत इन वाक्यों के साथ की है–‘‘मैं यह पत्र अत्यंत सम्मान और राष्ट्रीय गौरव की गहरी भावना के साथ उन सभी लोगों की ओर से लिख रहा हूं जिन्होंने 1975-77 के दौरान भारत में आपातकाल लागू किए जाने के खिलाफ बहादुरी से आवाज उठाई थी ,जिसे हमारे लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण अवधियों में से एक माना जाता है।
संवैधानिक अधिकारों के निलंबन का साहसपूर्ण विरोध करने और लोकतांत्रिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखने वाले आपातकालीन सेनानियों ने हमारे गणतंत्र की मूल भावना की रक्षा में एक अपरिहार्य भूमिका निभाई है।हमारे संविधान में निहित अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कई लोगों ने कारावास,उत्पीड़न और महान व्यक्तिगत बलिदान सहे।
जबकि 12 राज्यों ने इन व्यक्तियों को मान्यता देकर और उन्हें पेंशन एवं कल्याणकारी लाभ प्रदान करके सराहनीय कदम उठाए हैं,अन्य राज्यों में बड़ी संख्या में आपातकालीन सेनानियों को अब भी ऐसी मान्यता और सहायता का इंतजार है।
लाभों में असमानता के कारण इन क्षेत्रों के पीड़ितों में निराशा और उपेक्षा की भावना पैदा हुई है।जबकि लोकतांत्रिक ढांचे में उनका अमूल्य योगदान है।
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पुनश्चः
बिहार की सरकार ने जेपी सेनानी पेंशन का प्रावधान जरूर किया है।
किंतु यह सुविधा सिर्फ जेल यात्रियों को ही मिल रही है,फरार जेपी सेनानियों को नहीं।जबकि जो स्वतंत्रता सेनानी फरार थे,उनके लिए भी
केंद्र सरकार ने पेंशन का 1972 में ही प्रावधान कर दिया था।
देवगौड़ा साहब ने जिस तरह ‘‘12 राज्य बनाम अन्य राज्य’’ के अलग-अलग रवैये की चर्चा अपने पत्र में की है,वैसा ही परस्पर विरोधी रवैया पद्म सम्मानित लोगों को पेंशन देने के मामले में भी विभिन्न राज्य सरकारें अपना रही है।
अभी संभवतः पांच या छह राज्य सरकारें ही पद्म अवार्डी के लिए मासिक पेंशन का प्रावधान किया है,किंतु बिहार सहित बाकी सारे राज्यों का इस मामले में रुख उपेक्षा पूर्ण है जबकि अनेक पद्म अवार्डियों की आर्थिक हालत बहुत ही खराब है।
भारत रत्नों को छोड़कर किसी पद्म अवार्डी को कोई भौतिक लाभ केंद्र सरकार नहीं देती।यहां तक कि पद्म अवार्डी अपने लेटर हेड या नेम प्लेट में भी पद्मश्री आदि कोई शब्द नहीं जोड़ सकते।नियमतः मनाही है।जब यह नियम बना था,तब इसकी सराहना हुई थी।
उस नियम का पालन कुछ राज्य सरकारें कर रही हैं,पर अन्य सरकारें नहीं कर रही हैं।इससे लाभ से वंचितों में अकारण असंतोष पैदा होता है।
ऐसे में या तो कोई राज्य सरकार पद्म अवार्डी को कोई भौतिक लाभ न दे ।या फिर, केंद्र सरकार ही ऐसे लाभ समरूप ढंग से पूरे देश के सम्मानितों को प्रदान करने का नियम बनाए।
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जहां तक जेपी सेनानियों की बात है ,जेपी सेनानी या आपातकालीन सेनानियों के लिए पेंशन का प्रावधान वैसी राज्य सरकारें कत्तई नहीं करतीं जो कांग्रेस शासित हैं।
यदि पूर्व की गैर कांग्रेसी सरकारें वैसी सुविधा पहले से दे रही होती हंै तो कांग्रेस सत्ता में आकर उसे तत्काल बंद कर देती है।इसीलिए श्री देवगौड़ा ने केंद्र सरकार की ओर से भी पेंशन का प्रावधान करने की मांग की है।
जाहिर है कि कर्नाटका की कांग्रेसी सरकार को ऐसी सुविधा देने में कोई रूचि कभी नहीं होगी।

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