पवन विजय : प्यार की जादूगरी क्या होती है..!!

स्कार्फ बांधे नायिका रिक्शे पर बैठ कर जा रही है। सफेद कार्डीगन गुलाबी सूट पहने वह जानती है कि एक लड़का उसे देखता है। उसे भी उस लड़के को देखना बहुत अच्छा लगता है। हल्की ठंडक और धुंध में मिला पार्श्व संगीत रूमानियत का वह एहसास कराता है जिससे होंठों पर एक अनुरागमय मुस्कुराहट अनायास आ जाती है।

उसके होंठो पे कुछ कांपता रह गया,
आते आते मेरा नाम सा रह गया!!

Veerchhattisgarh

यह उस दौर की बात है जब प्रेम सीझता था, धीमी आंच पर पकता था। उस दौर की बात है जब प्रेम में लाज की लालिमा थी, स्वीकार करने की कशमकश अक्टूबर से फरवरी तक चलती थी। प्रतीक्षा का स्वाद कितना मधुर था, सितारों की गिनती, फूलों का खिलना, सूरज को अस्त होते देखना, मौसम के आरोह अवरोह को पहचानना और जाने क्या क्या बातें सोचना प्रतीक्षा के सौंदर्य थे। जिस दिन पता चलता था कि उसके दिल में उतनी ही चाहत थी जितनी शिद्दत से हम… उस दिन एक पल के लिए धरती स्थिर हो जाती थी, समय रुक जाता था, खुद को चिकोटी काटकर देखना पड़ता था कि वाकई यह सत्य है क्या!!

हम लबों से कह ना पाए उन से हाले दिल कभी,
और वो समझे नहीं खामोशी क्या चीज है!!

उस दौर में लड़के फोन नंबर नहीं याद करते थे, फोन होता ही नहीं था, रोल नंबर याद करते थे। उसके रोल नंबर तक अटेंडेंस आते आते लगता था विश्व के सारे स्वर मौन हो गए, एक नंबर और उस नंबर पर प्रत्युत्तर…जैसे ही उसका रोल नंबर पुकारा गया और यस सर का हल्का सा स्वर सुनाई दिया, दिल को तसल्ली हो जाती थी, एच आर यू और एम् फाइन के दौर वाले लोग कैसे जानेंगे कि यस सर को डिकोड कैसे किया जाता था। वह कैसी है, इसका पता चल जाता था।

अनुभूति का संकट इस दौर का सबसे बड़ा संकट है, शायद अत्यधिक प्रैक्टिकल हो चली यह पीढ़ी किसी भी बात के फर्क पड़ने से बहुत आगे निकल गई है, एक समय वह था जब मनने मनाने में सदियां बीतती थीं।

गैलिलियो और कॉपरनिकस के सिद्धांतों को चुनौती देते उस दौर के लड़के अपनी प्रेमिका को ब्रह्मांड का केंद्र सिद्ध करने का माद्दा रखते थे, उसकी झुकती पलकों से रात होती है, पलकें उठाई तो सुबह हो गई,

खुलती ज़ुल्फ़ों ने सिखायी मौसमों को शायरी!!

उस दौर में जब मैसेंजर नहीं था तब प्रेम की एक अलग भाषा विकसित थी जिसे शायद इस दौर के लोग जान पाएं,

कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात,
भरे भवन में करत हैं, नैनन ही सब बात!!

जैसे जैसे सुरक्षा, कानून, समानता जैसे शब्दों से दुनिया भरती जा रही है उस दौर के लड़के याद आते हैं जिनके होने से रिक्शे पर जाती लड़की निःशंक महसूस करती थी। तकनीक के दौर कोई कैसे जान पाएगा कि प्यार की जादूगरी क्या होती है!

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