दयानंद पांडेय : हम तो अपनी पत्नी के चरण स्पर्श करते रहते हैं , हर शुभ घड़ी पर। कहीं आने-जाने पर भी।

हम तो अपनी पत्नी के चरण स्पर्श करते रहते हैं , हर शुभ घड़ी पर। कहीं आने-जाने पर भी।


यह झुकना नहीं है , प्रेम है , आदर है ।भावनात्मक सम्मान है।

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आप ऐसा क्यों समझती हैं कि इस में मन का संस्पर्श नहीं है l स्त्रियां इतनी आग्रही और हठी क्यों होती जा रही हैं , उन का यह मनोविज्ञान समझना कुछ बहुत कठिन नहीं है।

अगर पति शुभाशीष देता है , पिता शुभाशीष देता है तो इस में ऐतराज काहे को भला। अगर पति, आदर पूर्वक, पत्नी का चरण स्पर्श करता है तो इस में भी ऐतराज !

ग़ज़ब !

भारत में कुछ पंजाबी परिवार में देखा है कि विवाह के समय पति, पत्नी दोनों एक दूसरे का झुक कर चरण स्पर्श करते हैं l यह उन की परंपरा में है l पीढ़ियों से।

हम तो पहले नवरात्र में पूजा के बाद बेटी के चरण स्पर्श करते थे। कुछ समय बाद बेटी के साथ , पत्नी का भी चरण स्पर्श करने लगे। देवी मान कर । फिर धीरे-धीरे इस में भावनात्मक आदर भी समाविष्ट हो गया l यह झुकना नहीं है , प्रेम और सम्मान की संतुष्टि है।

आप इस बात को नहीं समझना नहीं चाहतीं तो मत समझिए। डाक्टर की तजवीज़ थोड़े ही है कि मानना आवश्यक है।मत मानिए।

बाक़ी यह कुछ लोगों का शग़ल है , शौक़ है कि आदत , समझना कठिन है । वह हफ़्ते-दस दिन में एक दो पोस्ट पुरुष विष-वमन में झोंकती रहती हैं। बिचारे पति भी लपेटे में आते रहते हैं।

लखनऊ के एक अख़बार स्वतंत्र भारत की एक घटना याद आती है। गोंडा ज़िले का एक संवाददाता था।वह अकसर एक ख़बर भेजता था। पत्नी दे कर भैंस ले ली। एक साल में दो तीन बार ऐसी ख़बर छपती रहती थी l एक बार वह संवाददाता लखनऊ आया तो उस से मैं ने पूछा कि ऐसा क्या है तुम्हारे गोंडा में कि भैंस के बदले लोग पत्नी दे देते हैं।

पहले तो वह मंद-मंद मुस्कुराता रहा।बहुत खोदने पर वह खुला। बोला कि ऐसी घटना तो एक ही बार घटी l लेकिन उस घटना को इतना सजा कर , इतना उछाल कर अख़बार में छापा गया कि मुझे बहुत ख़ुशी हुई l तो वही ख़बर, कुछ दिन बाद फिर भेजता रहता हूं। भेजता ही रहता हूं।

यक़ीन मानिए कि कुछ लोग हैं। ऐसी पोस्टों पर , स्त्री चेतना के नाम पर लोग टूट पड़ते हैं। स्त्री , पुरुष दोनों। ऐसे लोगों को आनंद मिलता रहता है।

ऐसी पोस्ट निरंतर फेंटती रहती हैं , ताश की गड्डी की तरह। पुरुष को , पति को हर हाल में रावण बताते रहने की , अत्याचारी बताते रहने की टी आर पी मिलना बीमारी की हद तक पहुंच चुकी है।
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आप ने जैसे अपनी प्रोफ़ाइल लॉक कर रखी है , बाक़ी दुनिया को देखना भी लॉक कर रखा है l आप को अभी कुछ नहीं मालूम। आप ने देखा ही क्या है ? अभी बहुत कुछ देखना शेष है , आप को।
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यह जो पिता , भाई , पति और पुत्र का कवच , कुंडल है न स्त्री के पास , इस का अर्थ अभी आप को नहीं मालूम l सिर्फ़ विष-वमन मालूम है l
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आप भी इस का आनंद लीजिए।हर्ज क्या है ! अभिव्यक्ति की आज़ादी है।
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विपक्ष नहीं हैं , स्त्रियां।हमारी सहचर हैं।

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