राजीव मिश्रा : इसलिए अपने बच्चों को इस एनवायरनमेंट न्यूरोसिस से मुक्त कीजिए…उन्हें जम कर पटाखे चलाने दीजिए.. क्योंकि…

मेरी उम्र 54 वर्ष है और मैने 4 वर्ष की उम्र में पढ़ना सीखा था.. यानि पिछले पचास वर्षों से पढ़ रहा हूं कि दुनिया नष्ट होने वाली है.
बचपन में इंद्रजाल कॉमिक्स पढ़ते थे जिसके पिछले कवर पर कार्टून बनाकर बताया जाता था कि दुनिया में सिर्फ अगले पंद्रह वर्षों के इस्तेमाल के लायक पेट्रोल बचा है. तब से आज पेट्रोल की खपत कई गुना बढ़ी है और दुनिया में उपलब्ध पेट्रोलियम की मात्रा भी कई गुना बढ़ी है.

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और तब से सौ साल पहले एक अंग्रेज इकोनॉमिस्ट लिख रहे थे कि दुनिया के पास उपलब्ध कोयला समाप्त होने वाला है और हमें एनर्जी की खपत को कम करना चाहिए नहीं तो सिविलाइजेशन का चक्का रुक जाएगा.

पहला विश्व पर्यावरण समिट 1972 में हुआ था जब पर्यावरण विशेषज्ञ बता रहे थे कि दुनिया में अगला आइस एज आने वाला है…क्योंकि उसके पहले के दस वर्षों में तापमान में कुछ कमी देखी गई थी. टाइम मैगजीन की हेडलाइंस थी Another Ice Age. फिर तापमान बढ़ा तो ये ग्लोबल वार्मिंग चिल्लाने लगे.

सच यह है कि कुछ लोग हैं जिनकी आजीविका है यह चिल्लाना कि सबकुछ पहले से खराब हो रहा है, नष्ट होने वाला है…जबकि मालूम उनको घंटा कुछ नहीं होता. दुनिया का तापमान और क्लाइमेट बदलता रहा है और बदलता रहेगा. पिछला आइस एज सिर्फ 12000 वर्ष पहले आया था, जबकि धरती पर मनुष्य लाखों वर्षों से है और वह कोई कारें और हवाई जहाज नहीं चला रहा था. फर्क सिर्फ इतना है कि आज आर्थिक प्रगति के कारण हम बदलते हुए क्लाइमेट में सरवाइव करने के लिए अधिक सक्षम हैं और कम प्रभावित होते हैं. सर्वाइवल की कुंजी आर्थिक प्रगति है ना कि क्लाइमेट से युद्ध, जो आप कभी जीत ही नहीं सकते. उससे जीतने का सिर्फ एक उपाय है.. आर्थिक और तकनीकी प्रगति.

और इस आर्थिक और तकनीकी प्रगति के मूल में है ऊर्जा के स्रोत. यांत्रिक ऊर्जा ने मनुष्य को दासता से मुक्त किया है. और जो गैंग इस पर्यावरण की हिस्टीरिया के मूल में है उसकी सिर्फ एक ही समस्या है – मनुष्य स्वतंत्र क्यों है? वह उनकी क्यों नहीं सुनता? मनुष्य की दासता ही उसका मूल उद्देश्य है. और इसलिए वे यांत्रिक ऊर्जा के सभी सोर्सेज को नियंत्रित और नष्ट करना चाहते हैं. पूरा का पूरा पर्यावरण का हल्ला ही इसी का बहाना भर है.

और इसके लिए बच्चे हमेशा सबसे अच्छा टारगेट हैं. क्योंकि हम और आप तो “दुनिया दस सालों में नष्ट हो रही है” पिछ्ले पचास सालों से सुन रहे हैं…यह पैनिक बच्चों में ही पैदा किया जा सकता है. इसलिए अपने बच्चों को इस एनवायरनमेंट न्यूरोसिस से मुक्त कीजिए…उन्हें जम कर पटाखे चलाने दीजिए… क्योंकि धरती पर मनुष्य का जीवन एक उत्सव है.

दीपावाली की शुभकामनाएं।।

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