चंदर मोहन अग्रवाल : Brahmos Missile!
Brahmos Missile!
हालांकि मैं कोई डिफेंस एक्सपर्ट तो हूं नहीं पर फिर भी अक्सर मेरा एक दोस्त मेरे से एक प्रश्न जरूर पूछता है कि हमारे को अपनी डिफेंस मजबूत करने के लिए कम से कम 42 स्क्वाड्रन लड़ाकू जहाज चाहिए जबकि इनकी संख्या घटते घटते लगभग 30 स्क्वाड्रन पर आ गई है। क्या आपको नहीं लगता कि स्वदेशी की चाहत रखने वाले मोदी कहीं भारतीय डिफेंस के साथ बहुत बड़ा समझौता कर रहें हैं?
मैंने पलट कर उससे पूछ लिया कि लड़ाकू जहाज क्या काम करते हैं यही ना कि दुश्मन के क्षेत्र में जाकर बमबारी करना और दुश्मन के लड़ाकू जहाजों को डॉग फाइट के अंदर परास्त कर और उसे निशाना बनाकर उसे नष्ट करना।
बोला हां बिल्कुल सही कहा आपने!
तो मैंने पूछा कि फिर हमारी मिसाइल का क्या काम है हमारी मिसाइल भी तो यही काम करती है दुश्मन के इलाके में पहले से चिन्नित जगह पर जाकर अटैक करना उस जगह को पूरी तरह से नेस्तनाबूद करना, भारत की ओर बढ़ रहे हर लड़ाकू जहाजों को हवा में ही नष्ट करना। आदि! आदि! और मिसाइलस के द्वारा ये सब काम किसी पायलट की जान को खतरे में डाले बिना किया जा सकता है, तो फिर लड़ाकू जहाजों की क्या जरूरत है? हां जो काम पहले लड़ाकू जहाज करते थे वह आजकल बिना पायलट के उड़ने वाले ड्रोन कर रहे हैं और कीमत भी 300 मिलियन डॉलर की जगह मात्र 2-4 million-dollar ही होती है। मोदी बहुत दूर की सोचता है और अपने सलाहकारों की सलाह का उचित प्रयोग भी करता है।
बोला बात तो आपकी सही है इस तरह से तो मैंने कभी सोचा ही नहीं।
आपका क्या ख्याल है कि जब तक भारत के पास कोई उचित लड़ाकू जहाज के स्वादेशी इंजनों का इन्तजाम नहीं हो जाता तब तक क्या हम अपनी मिसाइलों और अन्य आगनेय अस्त्रों के भरोसे अपने देश की सुरक्षा का इंतजाम सही ढंग से कर सकते हैं?
