परख सक्सेना : भारत – चीन ऐसे पड़ोसी एक के पास चूल्हा दूसरे के पास लकड़ी लेकिन बोलचाल इसलिए है बंद..
ये पश्चिम वाले भारत और चीन मे दोस्ती करवा के ही मानेंगे, बीते कुछ दिनों से भारत चीन एक दूसरे को आँख दिखा रहे है। कूटनीति की भाषा मे कहे तो ये आँखे इसलिए दिखाई जाती है ताकि ऑन टेबल सौदा अपने पक्ष मे हो सके।
विदेश मंत्री का चीन जाना और सीधे राष्ट्रपति से मिलना, फिर चीन का बयान आना कि भारत चीन और रूस को साथ आने की जरूरत है। ये सब संयोग नहीं है, भारत और चीन दोनों खतरे को भाँपकर निर्णय ले रहे है।
नाटो के अध्यक्ष ने कहा है कि भारत चीन और ब्राजील पर 500% टेरीफ लगा देंगे इससे पहले अमेरिका भी धमकी दें चुका है। ये बचकाना बयान है क्योंकि नाटो अध्यक्ष आर्थिक फैसले नहीं ले सकते।
हम यदि इंग्लैंड की ही बात करें, तो भारत के साथ उसकी ट्रेड डील हो रखी है। इकोसिस्टम दोनों जगह बना हुआ है, यदि टेरीफ लगाना है तो प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर के बिना वे नहीं लगा सकते। ऊपर से इंग्लैंड मे राजा चार्ल्स की शक्तिया भी शून्य नहीं है।
नाटो एक संगठन के रूप मे चाहे जो हो, लेकिन विदेश नीतियाँ हर देश की अलग है। अमेरिका भी एंटी इंडिया नहीं है, दरसल अमेरिका को अपना वर्चस्व कायम रखना है।
उसकी समस्या रोटी कपड़ा मकान नहीं है, उसकी समस्या है कि उससे ज्यादा पकवान, उससे अच्छे कपडे और उससे बड़ी मल्टीज किसी के पास ना हो।
ज़ब ज़ब कोई देश उसे चुनौती देगा शेर को जंगल पर अधिकार दिखाने गुफा से बाहर आना पड़ेगा। भारत ने UPI के माध्यम से डिजिटल पेमेंट मे मात दें दी तो अचानक टेरीफ का खतरा मंडराया।
चीन ने ऑटोमोबाइल मे अच्छा किया तो अमेरिकी कम्पनियो पर दबाव बना और उन्हें चीन छोड़ने के लिये बाध्य होना पड़ा।
भारत और चीन उन पड़ोसियों की तरह हो गए है जहाँ एक के पास चूल्हा रखा है तो दूसरे के पास लकड़ी, लेकिन बोलचाल बंद है तो दोनों ही खाना नहीं पका पा रहे। भारत और चीन को जोड़ने के लिये ब्रिक्स सबसे अच्छा प्लेटफॉर्म सिद्ध हुआ है।
इस साल पुतिन भी भारत आएंगे, जिस दिन पुतिन के पैर दिल्ली मे पड़े आप देखेंगे कि तीनो देशो के बीच एक बड़े स्तर की संधि दिखेगी। नाटो भय दिखाकर अपना वर्चस्व स्थापित रखना चाहता है मगर तथ्य कुछ भिन्न है।
ब्रिक्स मे अब 10 देश है, जिनका कुल क्षेत्रफल पूरी पृथ्वी का 36% है, आबादी 50% है, चीन और भारत के होने से पश्चिम की आयात निर्भरता अपने चरम पर है। ये समूह परमाणु शस्त्र से सम्पन्न तीन देशो को धारण किये हुए है।
पश्चिम की चुनौती भी यही है कि भविष्य मे ज़ब ये 10 देश विकास करें तो पश्चिम को साइड करके खुद ही नीतियाँ बनाने लग जाए क्योंकि यदि ये ग्रुप शक्तिशाली हुआ तो विश्व की 50% आबादी को अमेरिका या यूरोप के कहने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
यदि ब्रिक्स करेंसी भी बन गयी तो ये भी पश्चिम के लिये डेड एन्ड है। इसलिए ऊपर से हमारा पक्ष कमजोर लग रहा हो मगर अंदर से ब्रिक्स को नहीं पश्चिम ख़ासकर नाटो को डरने की जरूरत है।
ब्रिक्स की एक ही कमजोरी है वो है भारत चीन संबंध। यदि भारत चीन एक साथ आ जाये तो भविष्य के दो सुपरपॉवर यही होंगे, निःसंदेह वर्चस्व का युद्ध भी होगा मगर वर्तमान संकट टालने के लिये एक मंच पर तो आना ही होगा।
छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा अफजल खां का वध, वही स्ट्रेटजी भारत की चीन के साथ होना चाहिए। अभी गले लगाओ मगर प्रतिघात की तैयारी भी रखो।
✍️परख सक्सेना
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