सरदार पटेल के परिजनों से PM मोदी के मिलने के मायने

 “एक ओर सरदार का परिवार, दूसरी ओर वंश का प्रचार”
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सरदार वल्लभभाई पटेल के परिवार से मिले, तो एक बार फिर इतिहास का वह भूला हुआ अध्याय सामने आ गया, जिसे जानबूझकर या तो दबाया गया या फिर अनदेखा कर दिया गया।

 

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यह एक विडंबना है कि जिस लौहपुरुष ने भारत को एक सूत्र में बाँधा, 562 रियासतों को जोड़कर आज का भारत बनाया। उनके परिवार का नाम, चेहरा, यहाँ तक कि उनका अस्तित्व भी देश के अधिकांश नागरिकों को ज्ञात नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी के इस मिलन ने देश को यह सोचने पर विवश कर दिया कि आखिर हमने अपने वास्तविक नायकों को क्यों भुला दिया?
क्यों वह परिवार, जिसने भारत के एकीकरण की नींव रखी, गुमनाम रहा;
और क्यों वह परिवार, जिसने विभाजन की राजनीति की, आज भी इतिहास की किताबों के पहले पन्ने पर छाया हुआ है?
देश का बच्चा-बच्चा “गाँधी परिवार” के हर सदस्य को जानता है।
उनके नाम, उनके भाषण, उनके जीवन की हर छोटी-बड़ी बात सब कुछ हमारे दिमाग में ठूँस दिया गया है।
इतना ही नहीं, उनके पालतू कुत्ते ‘पिद्दी’ तक की तस्वीरें और चर्चाएँ इंटरनेट पर तैरती रहती हैं।
यह प्रचार की पराकाष्ठा है जब व्यक्ति नहीं, वंश ही राष्ट्र से बड़ा दिखाया जाने लगे।
पर दूसरी ओर सरदार पटेल हैं  जो सत्ता नहीं, सेवा के प्रतीक थे।
जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा त्याग दी, ताकि देश का भविष्य स्थिर रह सके।
जिन्होंने कभी अपने परिवार को राजनीति की सीढ़ी नहीं बनाया।
उनके उत्तराधिकारी सत्ता के गलियारों में नहीं, अपने कर्मक्षेत्र में सादगी से जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
उनकी यह सादगी ही उन्हें महान बनाती है और यह विनम्रता ही उन्हें इतिहास के असली नायक का दर्जा देती है।
प्रधानमंत्री मोदी का सरदार पटेल परिवार से मिलना केवल एक औपचारिकता नहीं थी, यह एक प्रतीकात्मक संदेश था
कि “राष्ट्र उन लोगों का भी है जिन्हें इतिहास ने भुला दिया, लेकिन जिन्होंने भारत को बनाया।”
यह एक स्मरण था कि भारत का इतिहास केवल एक वंश की बपौती नहीं है, बल्कि करोड़ों गुमनाम योगदानकर्ताओं का परिणाम है।
अब समय है कि देश उस “वंशवाद के कोहरे” से बाहर आए और उस भारत को पहचाने,
जिसकी आत्मा सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, राम मनोहर लोहिया और countless कर्मयोगियों में बसती है
न कि केवल सत्ता और प्रचार की चकाचौंध में पलते वंशों में।
याद रखिए:
जिन्होंने देश जोड़ा, उनका नाम गुमनाम हो गया,
और जिन्होंने देश को बाँटा, उनका नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखा गया।
प्रधानमंत्री मोदी का यह कदम उसी असंतुलन को सुधारने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है।
यह सिर्फ़ एक मुलाक़ात नहीं वरन यह भारत के असली नायकों का पुनर्जागरण है।

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