परख सक्सेना : अमेरिकी टैरिफ के बीच भारत की 8.2% छलांग, आर्थिक मोर्चे पर निर्णायक जीत

अर्थव्यवस्था के जो नंबर आये है ये भारत के हाथो अमेरिका की कड़ी शिकस्त है। अमेरिका के टेरीफ की जो धज्जिया उडी है वो सोच से परे है, भारत ने जुलाई से सितंबर के बीच 8.2% की जीडीपी वृद्धि दर्ज की है और ये चौकाने वाला है क्योंकि टेरीफ अगस्त से शुरू हो चुके थे।

डोनाल्ड ट्रम्प ने कई तो सामाजिक सन्देश भी दें दिये है, किसी को खुद से इतना दूर मत कर दो की वो आपके बिना जीना सीख जाए। भारत के केस मे वही हुआ, डोनाल्ड ट्रम्प के टेरीफ पर कुछ देशो ने माफ़ी मांगी कुछ ने भागते दौड़ते ट्रेड डील की और अपना बहुत कुछ खो दिया।

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इसके विपरीत भारत शांत रहा, भारत ने अपनी विदेश नीति को बूस्ट दें दिया। कनाडा और चीन से संबंध मजबूत किये, यूएई और ब्रिटेन के माध्यम से जो निर्यात अमेरिका को घट गया था उसे बढ़ाया।

अभी तो Q3 का हिसाब आना बाकि है अक्टूबर से दिसम्बर जिसमे GST घटा, दिवाली और क्रिसमस जैसे खर्चीले त्यौहार है। भारत अमेरिका की ट्रेड डील अब भी साइन हुई नहीं है ये अंतिम चरण मे है, भारत के पास पूरी छूट है अमेरिका को जैसे चाहे वैसे झुकाये।

ये टेरीफ मोदी सरकार ही नहीं बल्कि आजाद भारत के इतिहास की दूसरी सबसे बड़ी अमेरिका पर जीत है, पहले पर तो अब भी परमाणु परिक्षण ही रखा जाएगा। ये दूसरी बार है ज़ब हमने दुनिया को सन्देश दिया की किसी को कितना ही खत्म करने का प्रयास हो मगर भारत की परिभाषा ही अलग है।

हालांकि अब भी कहूंगा की 20-25 साल और हमें चाहिए, अमेरिका पर अब भी हमारी निर्भरता है। हम जो विमान बना रहे है उसके इंजन अमेरिका से खरीदने पड़ रहे है, कल का दिन ऐतिहासिक इसलिए भी हुआ क्योंकि सरकार ने न्यूक्लियर क्षेत्र प्राइवेट प्लेयर्स के लिए खोल दिया।

इससे पहले अंतरिक्ष क्षेत्र खोला था और भारत मे 300 से ज्यादा स्टार्टअप उसी फिल्ड मे आ गए थे। न्यूक्लियर क्षेत्र मे कनाडा ने जो दरवाजा खोला है वह धन्यवाद देने योग्य है, हालांकि भारत मे निवेश अमेरिका और फ़्रांस की कंपनी ही करेंगी लेकिन कनाडा ने यूरेनियम की सप्लाय मे जो मदद कर दी वो एक बूस्टर है।

लेकिन जवाब ऐसे ही देने चाहिए, डोनाल्ड ट्रम्प भारत नहीं आये कोई बात नहीं, उन्होंने भारतीयों पर कमेंट्स किये हम शांत रहे। सिर्फ परिणाम दिया और तमाचा लग गया। भारत मे अब भी कई लोग है जो गुलामी वाली मानसिकता से बाहर नहीं आये उनके लिए भारत की अर्थव्यवस्था इससे परिभाषित होती थी की अमेरिका हमारे बारे मे क्या सोचता है?

खैर ज़ब ट्रम्प प्रो इंडिया थे तब हम भी तो खुश थे और अमेरिका के सर्टिफिकेट को ही सर्वोपरि मानते थे लेकिन सरकार ने ये खुशफहमी नहीं पाली। सरकार अपनी रफ़्तार से देश को बढ़ाती रही, देश पर फेका गया हर पत्थर एक सीढ़ी बनता गया और भारत ने वो हासिल किया जो उसे सुपरपॉवर की रेस मे खड़ा करता है।

चुनौतिया तो अब भी कई है लेकिन विश्वास है यदि हम अमेरिका के टेरीफ झेल गए तो हम कुछ भी झेल जाएंगे।

✍️परख सक्सेना✍️
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