सुरेंद्र किशोर : क्या नेताओं के निजी और सार्वजनिक जीवन को अलग-अलग करके देखना चाहिए ?

प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि
‘‘नेताओं के व्यक्तिगत और सार्वजनिक
जीवन को अलग-अलग करके देखिए
और उस आधार पर उन्हें आंकिए।’’
————–हालांकि अनेक लोग नेहरू की इस बात से असहमत रहे हैं।
माना जाता है कि जिनके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं होता है, वे असहमत होंगे ही।वैसे आम धारणा है कि निजी जीवन के कामों का असर सार्वजनिक जीवन पर पड़ता ही है।क्या नेहरू के मामले में भी यह सच है ?उनके निजी पेपर्स इस सवाल का जवाब दे सकते हैं।
क्या इसीलिए सोनिया गांधी ने सन 2008 में नेहरू पेपर्स के 51 कार्टन नेहरू म्यूजियम(अब उसका नाम बदल गया है।) से अपने घर मंगवा लिये ताकि लोगों से बहुत सारी बातें छिपी रहें ?
मोदी सरकार उन पेपर्स को सोनिया गांधी से वापस लेने की लगातार कोशिश कर रही है।मोदी सरकार चाहती है कि देश-विदेश के विद्वान लोगों को उन पेपर्स के अध्ययन का अवसर मिले।कोशिश अब तक सफल नहीं हुई है।पता नहीं,मोदी सरकार ‘‘कोशिश’’ से आगे भी जाएगी या नहीं !
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भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे प्रो.बलराज मधोक का एक लेख 4 जुलाई, 2004 के दैनिक ‘पंजाब केसरी’ में छपा था।
उस लेख का एक अंश यहां प्रस्तुत है।
‘‘जवाहरलाल नेहरू ने राज नेताओं के व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन को अलग -अलग देखने और आंकने पर जोर दिया।
इसका दुष्परिणाम स्पष्ट है।
इसे भारत के राजनीतिक जीवन में भ्रष्टाचार की शुरुआत माना जाता है।
संभवतः इसी कारण विभिन्न दलों में चरित्रहीन और दागी नेता पं.नेहरू को अपना आदर्श और हीरो बनाकर अपने अवगुणों पर पर्दा डालते हैं।’’
प्रो.मधोक ने उस लेख में नेहरू के बारे में कुछ अन्य ‘सनसनीखेज’ बातें लिखी हैं।
उनका यहां उल्लेख गैर जरूरी है।
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सुना है कि प्रो. मधोक ने अपने दल के भी कुछ बड़े नेताओं के बारे में आपत्तिजनक बातें अपनी एक पुस्तक में लिख दी हंै।
(वह किताब मैंने नहीं पढ़ी।)

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