सुरेंद्र किशोर : क्या अपने देश में पत्रकारों के बीच अन्य पेशों की अपेक्षा आपसी ईर्ष्या – जलन अधिक है ?
बहुत पहले एक मुख्य मंत्री ने मुझसे व्यक्तिगत बातचीत में कहा था कि पत्रकारों के बीच आपसी ईष्र्या-जलन बहुत है।
किसी एक पत्रकार के लिए कुछ करूं तो बाकी सब पत्रकार मेरी सरकार के खिलाफ हो जाएंगे।
आपका सब सम्मान करते हैं।आपके मामले में ऐसा नहीं होगा।
मैंने कहा कि मिलने भर की देर है।मेरे साथ भी वही सब होगा–(अंततः हुआ भी।)
क्या इसी डर से केंद्र सरकार ने 1954 से लेकर 2023 तक बिहार के किसी पत्रकार को पद्म सम्मान नहीं दिया था ?
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हरिवंश जी को राज्य सभा भेजा गया तो कई लोग ‘‘ज्वलनशील’’ हो गये थे।अब आशुतोष चतुर्वेदी को केंद्रीय सूचना आयोग का सदस्य बनाया गया तो वही हाल हुआ।
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भारतीय कानून में पत्रकारिता और जन संचार माध्यमों में अनुभव रखने वाले व्यक्तियों को केंद्रीय और राज्य सचना आयोगों के सदस्य (सूचना आयुक्त)के रूप में शामिल करने का प्रावधान है।
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यानी यह तो कानूनी बाध्यता है कि किसी पत्रकार को ही सूचना आयुक्त बनाया जाएगा।अब इसमें सरकार के पास कोई बचाव भी नहीं है कि वह ‘‘ज्वलनशील लोगों’’
को खुश कर दे !!
आशुतोष चतुर्वेदी को जहां तक मैं जानता हूं,वे इस पद के सर्वथा योग्य व्यक्ति हैं।वे वैसे समय में बी बी सी में थे जब वह संस्थान सर्वाधिक पेशेवर व निष्पक्ष माना जाता था।उसका असर बाद तक उन पर रहा और है।
यानी, चतुर्वेदी जी नहीं होते तो कोई और पत्रकार उस जगह पर होता।
फिर चतुर्वेदी जी ही क्यों नहीं ?
सूचना आयोग ऐसा संस्थान है जहां निष्पक्ष लोगों को ही रहना चाहिए।
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आज तो इस बात की जरूरत है कि विधायिकाओं में भी अधिक से अधिक शालीन लोगों को भेजा जाए चाहे वे जिस पेशे के हों।
यहां तक कि सदन का सदस्य बना कर पीठासीन पदाधिकारी के पद पर किसी रिटायर मिलिटरी कर्नल को बैठाया जाये।
आज तो सदन की बैठक जैसे ही शुरू होती है,लगता है कि किसी पागल खाने का फाटक तोड़कर अनेक पागल सदन में एक साथ घुस आए हैं–यानी भारी शोरगुल और हंगामा वह भी बेमतलब।सदन संचालन का नियम तोड़कर।पीठासीन पदाधिकारी को निष्क्रिय बना कर।
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अब तो लोक सभा में बैठकर सदस्य सिगरेट भी पीने लगे हैं।एक दिन देखा कि एक सदस्य सदन में ही अपना सर पीछे टिका कर सो गये थे।लगा कि कुछ और असामान्य चीज खा-पीकर पहुंचे होंगे।
एक सदस्य ने तो एक दिन चलते सदन में पी.एम.के पास जाकर उन्हें गले लगा लिया और बाद में बेशर्मी से कनखी मारी।
कई साल पहले बिहार से एक महिला सदस्य को लोक सभा में यह कहते हुए मैंने सुना–मैं तो चाहती हूं कि सदन में शांति रहे ,पर मेरी पार्टी कहती है कि हंगामा करो।
हरिवंश,आशुतोष चतुर्वेदी या उस स्तर और शालीन मन-मिजाज के कोई पत्रकार सदन में ऐसी-वैसी हरकत कत्तई नहीं कर सकता,यदि उन्हें मौका मिले।क्या हरिवंश को ऐसा करते किसी ने देखा ?
लेकिन ‘‘टांग खींचूं’’ लोगों का क्या कहा जाए !!
दूसरे का भी नुकसान पहुंचाते हैं,अपनी जमात का भी और अपना भी।


