देवांशु झा : महाबाधा के बाद प्रगति की प्रतिबद्धता.. पलायन के स्थान पर समस्या के समाधान का नेतृत्व..

सबसे आसान होता है नैतिकता के नाम पर इस्तीफा देना। अच्छा जी, हमने रेल के लिए कुछ किया तो था नहीं! लो, हादसे के बाद इस्तीफा ही दे देता हूं! नैतिक आधार पर त्यागपत्र। अब मंत्रीजी ने त्यागपत्र दिया नहीं कि उनकी महानता पुनर्प्रतिष्ठित हो गई। भले ही वह मक्कार, अकर्मण्य और चोर रहे हों।‌ त्यागपत्र के साथ ही मंत्री जी की ईमानदारी भी अमर हो गई। वह राजनीति में उदाहरणीय भी हो गए। अभी बहुत सारे राष्ट्रभक्त फुदक रहे हैं कि अश्विनी वैष्णव ने त्यागपत्र क्यों नहीं दिया।

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अश्विनी वैष्णव एक कर्मठ, बुद्धिमान, सत्यनिष्ठ, अत्यधिक क्वालिफायड और परिवर्तनकारी रेलमंत्री हैं। उन्होंने इस दुखद हादसे के बाद दिन-रात श्रम कर, राहत और बचाव कर्मियों के अतिरिक्त रेलकर्मियों के साथ खड़े रहकर बाधित रूट का परिचालन करवाया। इस दुर्घटना की हताशा उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी। परन्तु किसी महाबाधा के बाद प्रगति की प्रतिबद्धता भी उनमें है। इस भयंकर दुर्घटना के दोषी तो एक दिन पकड़े जाएंगे ही। नैतिकता का विधवा विलाप करने वाली दंतहीन राजनीति के पुरोधा लोगों को समझना चाहिए कि अश्विनी वैष्णव जैसे योग्य मंत्री आसानी से नहीं मिलते।वैष्णव जैसे मंत्री इस देश की जरूरत हैं। गाल बजाने वाले घूसखोर नेता और त्यागपत्र पुरुषों की आवश्यकता हमें नहीं है। चोरों के युग में,चोरों के लिए, चोरी के निमित्त निर्मित राजनीतिक व्यवस्था में वैसे इस्तीफे ठीक थे। अब वह कांग्रेसी कल्चर नहीं है।‌

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अश्विनी जी ने अपने छोटे से कार्यकाल में असाधारण काम किए हैं। वे एक समर्पित रेलमंत्री हैं।‌ रेलवे के विकास के लिए उनका होना परमावश्यक है।

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