अमित सिंघल : मालदीव्स में मोदी.. यहां भी शहमात का उद्घोष शीघ्र

वर्ष 2023 में मालदीव्स के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ु ने भारत को मालदीव्स से बाहर करने के स्लोगन पर चुनाव लड़ा था। उनका मुख्य स्लोगन “इंडिया आउट” था।

सामान्यतः, भारत के पड़ोस में स्थित छोटे राष्ट्रों के सरकार प्रमुख अपनी पहली ऑफिसियल यात्रा के लिए भारत को प्रिफर करते है।

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लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज़्ज़ु अपनी पहली आधिकारिक यात्रा के लिए नवंबर 2023 में तुर्किये गए थे। वहां पर व्यापार, शिक्षा, ऊर्जा इत्यादि के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के बारे में समझौते किए।

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा तुर्किये की पहल पर की गयी थी।

तुर्किये भारत को पाकिस्तान एवं मालदीव्स के द्वारा संप्रदाय आधारित राजनीती के द्वारा घेरना चाहता था। बाद में बांग्लादेश भी इस रणनीति का भाग बन गया।

फिर जनवरी 2024 में मुइज़्ज़ु चीन गए जहाँ उन्होंने चीन के साथ आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक सम्बन्धो को प्रगाढ़ करने के लिए 20 समझौते साइन किये।

लेकिन शीघ्र ही मालदीव्स को समझ में आ गया कि समझौते साइन करना एऔर फिर उसे लागू करना अलग-अलग है।

आखिरकार चीन एवं मालदीव्स के मध्य कौन सी सांस्कृतिक समानताऐं है जिसे वे प्रगाढ़ कर सकते है? आर्थिक सम्बन्धो का भी एक ही अर्थ है – चीन से आयात करना। बदले में मालदीव्स के पास एक्सपोर्ट करने के लिए कुछ भी नहीं है।

साथ ही, इन दोनों राष्ट्रों से पर्यटकों की अपेक्षा थी; लेकिन वह पूरी नहीं हुई।

आखिरकार तुर्किये के नागरिक भूमध्य सागर स्थित समुद्रो तटों को छोड़कर सुदूर स्थित मालदीव्स में विश्राम करने क्यों आएंगे?

इस बीच भारत ने कूटनीति से काम किया और मालदीव्स को समझाया कि प्राकृतिक आपदा, समुद्री डकैती, स्वास्थ्य सुविधा, खाद्य सुरक्षा, वही एवं आंतरिक सुरक्षा इत्यादि के लिए भारत से अधिक विश्वसनीय और तीव्र गति से मदद पहुंचाने वाला पार्टनर कहीं नहीं मिलेगा।

यही स्थिति बांग्लादेश की है। तीन ओर से भारत से घिरा है। सीमा का एक छोटा भाग म्यांमार से जुड़ा है जो स्वयं आंतरिक असुरक्षा से जूझ रहा है। एक ओर समुद्र है जिस पर भारतीय नौसेना का आधिपत्य है।

अब वहां के नेतागण पाकिस्तान, तुर्किये, चीन इत्यादि से सम्बन्ध प्रगाढ़ करने की बात कर सकते है। लेकिन धरातल का सत्य यह है कि भूगोल के कारण भारत का पूर्ण नियंत्रण है।

पहले लिखा था कि भारत को शतरंज की गोटियां ना केवल रणनीतिक चेसबोर्ड पर बिठानी है, लेकिन कुछ गोटियां शतरंज के बोर्ड के बाहर भी छुपानी होगी जिससे विपरीत स्थिति में गेम को पलटा जा सके।

कारण यह है कि देशतोड़क शक्तियां गेम तो चेसबोर्ड के नाम पर खेलता है, लेकिन तोड़-फोड़, हिंसा, आतंकी हमले इत्यादि चेसबोर्ड के बाहर से लाकर बोर्ड पर बिछा देता है और कहता है कि यही शतरंज के नियम (संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार; अंतर्राष्ट्रीय आचरणों का डर दिखाना, दुहाई देना …) है।

दूसरे शब्दों में, हमें शतरंज 64 वर्गों में खेलना सिखाया गया है। उस शतरंज को जिसका हमने ही आविष्कार किया। लेकिन शत्रुवत शक्तियां अपने गेम को शतरंज बोर्ड के बाहर ले जाकर खेल रही है। इन शक्तियों ने शतरंज के नए नियम बना दिए है।

अतः हमारे नेतृत्व को भी शतरंज का गेम, चेसबोर्ड के बाहर ले जाना होगा। नेतृत्व वही कर भी रहा है। हर बात को लिखा नहीं जा सकता; ना ही लिखने की आवश्यकता है।

साथ ही, कुछ लोग किसी भी विषय पर अपनी ही गोटियों को मरवाना शुरू कर देते है (उदाहरण – राहुल-ममता इत्यादि); अतः उनका भी ध्यान रखना होगा।

शतरंज का आविष्कार करने वाले पूर्वजो के उत्तराधिकारियों को शतरंज के बंधनो से स्वयं को मुक्त करना होगा।

यही समय की भी मांग है।

मोदी टीम यही चुपचाप कर भी रही है।

मालदीव्स में परिणाम दिखाई दे गया है। प्रधानमंत्री मोदी राजकीय यात्रा पर मालदीव्स आने वाले पहले विदेशी नेता बन गये हैं।

बांग्लादेश एवं पाकिस्तान में भी शीघ्र ही शहमात का उद्घोष होने की आशा है।

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