कौशल सिखौला : बीसीसीआई की सोच पर तरस आता है..
त्यौहार दीवाली जैसा बड़ा हो और फिर भगवान राम और महालक्ष्मी से जुड़ा हो तो फिर अन्य विषय बड़े हल्के हो जाते हैं । जब भारत की कमजोर नस क्रिकेट का मैच दिवाली जैसे त्यौहार के दिन रख दिया जाए तो बीसीसीआई की सोच पर तरस आता है । अरे भाई भारत पहले ही सेमी फाइनल में पहुंच चुका है , टॉप पर है , हार जीत का कोई असर नहीं पड़ता तो क्रिकेटर्स को भी दिवाली मनाने दी होती ? बीसीसीआई की हिम्मत न होती क्रिसमस या ईद के दिन मैच रखने की ।
लेकिन दिवाली के दिन इंडिया का नीदरलैंड के साथ मैच रखने की कोई तुक समझ नहीं आई । सलमान खान दिवाली और ईद पर अपनी फिल्म रिलीज करते हैं । अब भला त्यौहार मनाएं या फिल्म देखने जाएं ? यह त्यौहार इतना बड़ा होता है कि पीएम तक सेना के साथ दिवाली मना रहे थे । हर साल मनाते हैं । सभी की रुचि मिलने जुलने , मिठाई बांटने और पूजन कर दीप जलाने में होती है । न जाने क्यों , बीसीसीआई ने क्रिकेटर्स को अपने परिवारों से अलग कर दिया ? कम से कम इस दिन तो परिवार को महत्व देते ?
राजकाज तो जरूरी हैं , देशकाज भी जरूरी हैं , टीवी मीडिया और बॉर्डर पर सुरक्षा भी जरूरी है । इनका कोई अवकाश नहीं होता , हालांकि प्रिंट मीडिया अवकाश मनाता है । सोशल मीडिया कभी अवकाश पर नहीं जा सकता । अस्पताल , रेलवे , विमान सेवाएं , परिवहन आदि अनिवार्य सेवाओं में शामिल हैं । कल तो खैर वैसे भी रविवार था , दिवाली भी अवकाश के पांच दिवसीय पर्वों में पड़ती है । अब जो लोग पर्व अवकाश के मूड में हैं अच्छा हो कि उन्हें त्यौहार मनाने दिया जाए । पर्व अवकाश का आनंद ही दूसरा होता है । अवकाश से ज्यादा उस परमात्मा से साक्षात्कार की खुशी अनूठी होती है ।
इस बार तो पर्वों का आनंद बढ़ते जाना लाजमी है । चूंकि 500 सालों की प्रतीक्षा के बाद रामलला को उनकी अपनी जन्मभूमि पर स्थायी छत मिलने वाली है अतः अब शुरू हुई दिवाली अभी लंबे समय तक मनती ही रहेगी । इस दिवाली से 22 जनवरी तक और फिर 2025 तक , जबकि पूरा राममंदिर तैयार हो जाएगा । भगवान राम को लेकर पर्वों का लंबा सिलसिला अभी चलना है । पर्वों का आनंद कितना अनूठा होता है , भारतवासी अच्छी तरह जानते हैं । यह देश तो है ही उत्सवप्रिय । इसीलिए तो होली दिवाली दशहरा जैसे उत्सवों के अवकाशों को लोग परिवार के साथ घरों पर मनाना चाहते हैं ।
देश के कर्णधारों को योजनाएं और व्यवस्थाएं निर्धारित करते हुए देश की सांस्कृतिक अवधारणाओं का ध्यान रखना चाहिए । यकीन मानिए आज भी विश्व में हमारी सांस्कृतिक श्रेष्ठता का कारण भारी आर्थिक उन्नति नहीं , इस देश की नस नस में बसा अध्यात्म है , धर्म है । ऐसा धर्म जिसमें घृणा और हिंसा का स्थान नहीं है । बाकी धर्म नए नए होने के कारण शायद अब तक स्थायित्व और गहराई नहीं पा सके । लेकिन हमने स्थायित्व पाया है । सनातन हिन्दू धर्म की मान्यताएं बहुत गहरी हैं । सांस्कृतिक यात्रा के पड़ाव होते हैं दिवाली जैसे पर्व । अभी अन्नकूट और भाईदूज मनाइए फिर कार्तिक पूर्णिमा पर नई बात करेंगे ।