सर्वेश तिवारी श्रीमुख : बाबा रामदेव इकलौते हैं जो यह..

बाबा रामदेव एकबार फिर चर्चा में हैं। वैसे तो वे हमेशा चर्चा में ही रहते हैं, पर इस बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए फटकार के कारण चर्चा में हैं।
आप राजनैतिक कारणों से उनके विरोधी भले हो जाँय, पर इस बात में किसी को संदेह नहीं कि चिकित्सा जगत में योग और आयुर्वेद को पुनः प्रतिष्ठा दिलाने में बाबा रामदेव का योगदान अविस्मरणीय है। भारत के बाहर यूरोप तक योग को घर घर मे पहुँचाने में उनकी भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता।

बाबा रामदेव पर मामला है कि उनकी कम्पनी ने भ्रामक विज्ञापन बनाये हैं। भारत में इससे अधिक हास्यास्पद मामला कोई हो ही नहीं सकता। इस देश की किस कम्पनी के विज्ञापन फर्जी नहीं होते? फेयर एंड लवली और लक्स वाले पिछले पचास वर्षों से हर सांवले व्यक्ति को गोरा बना रहे हैं, कितने लोग गोरे हो गए? ‘दर्द का अंत तुरंत’ और ‘छह सेकेंड में एसिडिटी का काम तमाम’ की टैगलाइन के साथ आज भी अंग्रेजी दवाइयां बेची जा रही हैं। क्या ये विज्ञापन भ्रामक नहीं है?
कोरोना के दिनों में रेमडी… (जाने क्या नाम था) जैसी अनावश्यक दवाइयाँ बीस बीस हजार में बेची गयीं, जबकि यह सिद्ध हुआ कि उपचार में उसका कोई खास रोल नहीं था। फिर पतंजलि के कोरोनिल से क्या दिक्कत है भाई?
कोर्ट ने सरकार से प्रश्न करते हुए पूछा कि जब पतंजलि के लोग हर कस्बे में तक प्रचार कर रहे थे कि कोविड वैक्सीन से कोई लाभ नहीं, तो सरकार सोई थी क्या? कितना हास्यास्पद है न यह? कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत इस देश के सैकड़ों बड़े नेताओं ने बार बार कोविड वैक्सीन पर प्रश्न खड़ा किया और उनके लाखों समर्थकों ने भी उनकी बातों को फैलाया। पर कोर्ट को उनसे कोई आपत्ति नहीं। कोर्ट को दिक्कत है तो केवल बाबा रामदेव से। दोमुंहेपन की ऊँचाई यह है कि कल तक जो लोग कोविड वैक्सीन के विरुद्ध बोलते थे, आज वही लोग कह रहे हैं कि बाबा ने वैक्सीन पर अविश्वास क्यों जताया था।
बाबा में कुछ मानवीय कमजोरियां हैं। वे गाँव देहात के सामान्य जन की तरह बोलते बोलते कभी कभी कुछ अधिक बोल जाते हैं। पिछले दिनों ही उन्होंने मजाकिया अंदाज में स्वयं को ब्राह्मण बताते कुछ कहा तो बवाल हो गया। मजा यह कि उनकी बात पर ब्राह्मणों ने आपत्ति नहीं की, बल्कि वे ही आपत्ति कर रहे थे जो कहते हैं कि ब्राह्मणों ने उन्हें ज्ञान से दूर रखा है।
बाबा रामदेव ने डाबर और हिंदुस्तान लिवर जैसी विदेशी कम्पनियों की कमर तोड़ी है, यह सत्य है। पतंजलि के उत्पाद जब भारतीय घरों में स्थान बनाने लगे तो इन्ही विदेशी कम्पनियों के उत्पादों को डस्टबिन में जाना पड़ा था। इस तरह बाबा रामदेव राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों के प्रिय हुए और इसी कारण सदैव बहुतों के निशाने पर रहते हैं।
आजादी के बाद का इतिहास यही है कि यदि किसी ने भी विदेशी कम्पनियों या मिशनरियों के हितों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की तो वह समाप्त हो गया। बाबा रामदेव इकलौते हैं जो यह कर के भी डटे हुए हैं। हालांकि यह भी सत्य है कि यदि 2014 में नई सरकार नहीं आयी होती तो बाबा भी नप ही गए होते।
कोर्ट कुछ भी कहे, इससे बाबा का कोई विशेष नुकसान होने वाला नहीं। हां यह स्पष्ट है कि राष्ट्रवादी शक्तियां अब भी निशाने पर हैं।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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