पवन विजय : भारत में यह स्थिति आने वाली है जिसका संकेत…
केपटाऊन 14 अप्रैल 2024 से ऐसा शहर बन गया जहां पानी नहीं है। बांधों में जल केवल 13 प्रतिशत के आस पास है। नलों, नदियों, झरनों से पानी गायब है। लोगों को नहाने से मना कर दिया गया है, दिन में उन्हें केवल 25 लीटर पानी मिलेगा जिसका प्रयोग वह खाने पकाने पीने में करेंगे।
भारत में यह स्थिति आने वाली है जिसका संकेत दिल्ली की जल समस्या में देखा जा सकता है। यहां यमुना सूख गई है, जलस्तर पाताल चला गया है, कुंवा बावड़ी की बात ही मत करिए। अंधाधुंध पेड़ों की कटाई, कंक्रीटों का निर्माण और लगातार पानी का दोहन से दिल्ली के केपटाउन बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा और उसके बाद अन्य शहरों का नंबर आएगा।
शौचालय, शॉवर, कार वाश, वाशिंग मशीन , आर ओ ये सब पानी के महाशत्रु बन कर सामने आए हैं। शहरों का चलो ठीक है परन्तु गांवों में पानी की समस्या आश्चर्यजनक है।
मोदी सरकार की एक योजना हर घर नल का जल है। गांवों में पाइप बिछाई जा रही है। चारों तरफ खुदाई हो रही है। इस योजना का उस जगह कोई व्यहवारिक महत्व नहीं है जहां पर पानी को लेकर आत्मनिर्भरता रही है। अब लोग कुएं को छोड़कर नल पर आश्रित हो जायेंगे, बाद में उस जगह टैंकर दिखेंगे और कुछ समय बाद क्षेत्र पूरी तरह से दिल्ली बनने को तैयार हो जायेगा। इससे बेहतर है कि पानी को लेकर स्थानीय स्तर पर स्टोरेज और भूजल को समृद्ध करने पर पैसा और श्रम खर्च हो।
ताल, तलैया, कुएं, बावड़ी को पाटा जा था है और उसके ऊपर फ्लैट खड़े किए जा रहे हैं तो पानी का संरक्षण कहां से होगा। गांव में सबमर्सिबल पंप लगाकर बेतहाशा पानी बर्बाद किया जा रहा है। पहले हर घर के सामने छोटा मोटा तालाब जरूर होता था, बाग बगीचे होते थे किंतु अब गांवों में चारदीवारी बनने लगी है। गांव वाले इंच इंच जमीन का मोल लगाना सीख गए हैं।
हम आने वाली पीढ़ी के लिए बंजर और सूखी धरती छोड़ रहे हैं, जलते जंगल और धुंआ भरा आसमान छोड़ रहे हैं, टूटे पहाड़ और सूखी नदियां छोड़ रहे हैं।
हम ऐसे पाप कर रहे हैं जिसकी कोई क्षमा नहीं है।