मनीष शर्मा : त्यौहार हमारे देश के आर्थिक चक्र को कैसे घुमाते हैं..
त्यौहार हमारे देश के आर्थिक चक्र को कैसे घुमाते हैं.. आइये जानते हैं
CAIT के हिसाब से दिवाली (धनतेरस, छोटी दिवाली, बड़ी दिवाली… और पहले के एकाध दिन) में ₹3.75 लाख करोड़ (47 Billion USD) का business देश भर में हुआ.
दुर्गा पूजा और नवरात्रो में 50,000 करोड़ के आस पास का हुआ. मात्र दुर्गा पूजा के समय, सिर्फ पश्चिम बंगाल राज्य में ही 3 लाख से ज्यादा कारीगरों, मजदूरों को काम मिला… देश भर का अंदाजा लगा लीजिये.
गणेश चतुर्थी पर 20-25 हजार करोड़ का हुआ.
यह आंकड़े सिर्फ 3 त्यौहारों के हैं…… इसी तरह से आप होली, जमाष्टमी, महाशिवरात्रि, राखी जैसे ढेरों त्यौहारो को अगर जोड़ लें… तो आराम से 100-150 billion डॉलर की एक अलग ही अर्थव्यवस्था चल रही है.
और इसमें अगर आप तीर्थ स्थलों, बड़े मंदिरों, या अन्य धार्मिक स्थलों को जोड़ दें.. उनसे होने वाली कमाई, वहाँ श्रद्धालुओं के जाने से होने वाले खर्चो को जोड़ दें…..तो यह आकड़ा आराम से 300 Billion डॉलर होगा….. इससे ऊपर ही होगा.. क्यूंकि यह सब आंकड़े Formal हैं.. Informal आंकड़े तो गिने ही नहीं जाते कभी.
यह रकम दुनिया की 48वीं अर्थव्यवस्था फिनलैंड की GDP के बराबर है….. मतलब हमारे देश में धर्म, त्यौहार, तीर्थ आदि के कारण इतना पैसा Circulate होता है… जो दुनिया के 150 से ज्यादा देशों की GDP से भी ज्यादा है.
और यह कोई नई व्यवस्था नहीं है.. हजारों वर्षों से चलती आ रही है.. इसका केंद्र हमारे मंदिर, हमारे त्यौहार, हमारे तीर्थ ही होते आये हैं.
और ऐसा सिर्फ हिन्दू धर्म में ही नहीं हैं…. मक्का मदीना, वेटीकन आदि भी same model पर हैं. धर्म का मजाक उडाने वाले बड़े बड़े Woke भूल गए हैं, कि यह अर्थव्यवस्था का सबसे पुराना पहिया है.
अगले साल 22 जनवरी को एक बहुत बड़ी धार्मिक घटना होने जा रही है…. जो हमारी अर्थव्यवस्था को अविश्वसनीय रूप से जबरदस्त boost देगी.
One is not required to be an Economist to understand this concept.
राम आएंगे ❤️