डॉ. पवन विजय : ब्रह्म की चौथी अवस्था शूद्र.. सत्र, राजसूय आदि वैदिक यज्ञों में शूद्रों की महत्वपूर्ण भूमिका
उन लोगों को शूद्र होने का दावा बिल्कुल नहीं करना चाहिए जो लोग स्वयं को वैदिक चतुर्वर्ण का हिस्सा नहीं मानते।
शूद्र यज्ञ संस्था में सम्मिलित वर्ण है, सत्र, राजसूय आदि वैदिक यज्ञों में शूद्र उपस्थित ही नहीं रहता, उसकी भूमिका होती है।
इससे भी महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि ब्रह्म की चौथी अवस्था शूद्र है। शूद्र के इक्कीस स्तोम होते हैं- तपो वै शूद्र:।
शूद्रा माता एतरा के पुत्र ऐतरेय ऋषि का रचा हुआ सुप्रसिद्ध याज्ञिक ग्रंथ है- ऐतरेय ब्राह्मण। ऐसे अन्य शूद्र ऋषि भी हैं जैसे मतंग ।
इसी प्रकार भारत के राजनीतिक इतिहास में अनेक शूद्र राजा हुए हैं।
अब मूल मुद्दे पर आइए-
आज भी उच्च स्वर में वेद पाठ किया जाता है। वेद वाणी सबके कानों में पड़ती है।
जब बारात दरवाजे आता है आपने देखा होगा कि उच्च स्वर में वेद का स्वस्तयन पढ़ा जाता है- ‘स्वस्तिन: इन्द्रो….!’ यह वेदमंत्र सबके कानों में पड़ता है।
न एक भी उदाहरण मिलेगा, और न कहीं यह लिखित कि शूद्र के कान में वेद मंत्र पड़ जाए तो उस के कान में सीसा पिघला कर डाला जाएगा।
यह नैरेटिव पादरी वितंडा का एक नमुना है। इस पादरीवितंडा को कम्युनिस्टों/ मार्क्सवादियों ने वर्गभेद के लिए खूब इस्तेमाल किया।
आए दिन यह झूठ सुनाई देता है।
अपनी उपर्युक्त बातों में प्रख्यात भाषाविद और इतिहास के प्रोफेसर प्रमोद दुबे जी कहते हैं मैंने इन नैरेटिवों की गहराई से पड़ताल की है, जो कह रहा हूं दावे के साथ कह रहा हूं।
एक समय समाजवादी पार्टी ने लखनऊ में पोस्टर लगाया कि गर्व से कहो कि हम शूद्र हैं, शूद्र होना हिन्दू होना ही है।
वैसे अखिलेश जी जनेऊ पहन कर द्विज हो गये हैं यह अच्छी बात है।
