जयराम शुक्ल : जन्मदिन..सामाजिक परिवर्तन के पुरोधा कांशीराम जी को याद करते हुए..

 

सामाजिक-राजनीतिक वर्गीकरण इतना सिकुड़ता गया कि दलित, अतिदलित, महादलित,में परिभाषित हो गए। इसी तरह पिछड़े भी और अब उससे आगे सिर्फ़ जाति मसलन-पाटीदार,गूजर,जाट,मीणा।

यह सही है कि देश में जाति के आधार पर शोषण और अत्याचार हुए हैं। इस सिलसिले ने ही अँबेडकर साहब की प्राणप्रतिष्ठा की और राजनीति में कांशीराम जैसे महानायक को गढ़ा। आज कांशीराम का जन्मदिन है।

आजादी के बाद से यह वर्ग सिर्फ वोटबैंक रहा। इसीलिए जब कांशीराम ने नारा दिया कि वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा तो समूचे दलित समाज ने अँगड़ाई ली और राज में अपना हिस्सा लेना शुरू किया।

दलितों की इस चेतना को अपने-अपने हक में हड़पने की ऐसी होड़ मच गई कि एक के बाद एक नए खिलाड़ी कूदते गए। कुछ दलितों के नाम पर तो कुछ पिछड़ों के नामपर।

सामाजिक-राजनीतिक वर्गीकरण इतना सिकुड़ता गया कि दलित, अतिदलित, महादलित,में परिभाषित हो गए। इसी तरह पिछड़े भी और अब उससे आगे सिर्फ़ जाति मसलन-पाटीदार,गूजर,जाट,मीणा।

पर गौर करने की बात ये कि जहाँ जिनको इस वर्ग ने अपना भरोसा सौंपा भी वे हजार करोड़िया मायावती, लाख करोड़िया लालूजी और न जाने कितने अरबिया मुलायमजी के रूप में उभरकर लोकतंत्र के मंदिरों में प्रतिष्ठित हो गए।

जिन गरीब-गुरबों ने इन्हें अपना मुक्तिदाता चुना वे वहीं के वहीं रह गए। सोशल जस्टिस इनके लिए चोंचल जस्टिस ही बना रहा। इसलिये अब इनके जो नए खेवनहार हैं उन्हें कांशीराम और इन सोकाल्ड चोंचलिस्टों से कुछ अलग, कुछ हटकर करके दिखाना होगा।

इसके लिए नई भाषा, नए करतब दिखाने होंगे। कब्रिस्तान से इतिहास की कुछ सड़ी गली हड्डियां निकालनी होंगी ताकि कुछ सनसनीखेज तिलस्म रचा जा सके।

राजनीति जब रीढविहीन हो जाती है तब वह हवा के झोंके की दिशा में ही झुकती है। हर दलों की लगभग एक सी मार्फालाँजी है। सभी एक से स्केलटन-चेचिस पर टिके हैं। सिर्फ लुभाने के लिए रूप अलग-अलग हैं ऐसा आप कह सकते हैं। और जब यह दशा है तो किसको कहें मसीहा किस पर यकीं करें..?

रुग्ण शरीर पर वायरस तेजी से फैलते हैं। देश के लोकतंत्र की तंदुरूस्ती व तबियत की फिकर किसे ?

संपर्क-8225812813

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *