सुरेंद्र किशोर : बेटा-बेटी वाद के खिलाफ मोदी का कदम सराहनीय..अब सांसद-विधायक फंड की समाप्ति की प्रतीक्षा !

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि पांच राज्यों के चुनाव में ‘‘सांसदों के बेटे-बेटियों को टिकट न दिए जाने का फैसला सोच -समझकर लिया गया था।

यह फैसला मेरा था।’’

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आपका यह फैसला बहुत ही सही व साहसी था।

टिकट कटने के बावजूद बेटा-बेटी-परिवारवादी नेतागण भाजपा का गत चुनाव में कुछ बिगाड़ नहीं सके ।

क्योंकि अब देश का मोदी पर भरोसा है।

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मोदी जी,लगे हाथ एक काम और कर दीजिए।

राजनीतिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचार का रावणी ‘अमृत कुंड’ बने सांसद फंड को भी समाप्त करिए।

अगले किसी चुनाव पर उस समाप्ति का भी कोई विपरीत असर भाजपा या एनडीए के चुनाव भविष्य पर नहीं पड़ेगा।

दरअसल अधिकतर सांसद यह उम्मीद करते हैं कि यदि उनकी संतान को पार्टी टिकट दे देगी तो फंड के ठेकेदार उनके लिए कार्यकर्ता का काम कर देंगे।

ध्यान रहे कि तपे -तपाए कार्यकर्ताओं के वाजिब दावे को नजरअंदाज करके कोई दल किसी सांसद के बेटे -बेटी को टिकट देता है तो उस पार्टी के अच्छे कार्यकर्तागण निराश होकर या तो उदासीन हो जाते हैं या पार्टी छेाड़ देते हैं।

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एक और बात हो रही है ।उसका पता अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्रित्वकाल में चला था।

तब भाजपा के 40 सांसद अटल जी से मिले थे।

उन लोगों ने प्रधान मंत्री से कहा कि सांसद फंड की कमीशनखोरी दल के अच्छे-अच्छे कार्यकर्ताओं को भी धन लोलुप बना रही है।

यह जानकर अटल जी फंड को समाप्त करने ही जा रहे थे कि दिल्ली के एक भाजपा सांसद ने 100 सांसदों की ओर से अटल जी से अपील की कि फंड को एक करोड़ रुपए सालाना से बढ़ाकर दो करोड़ रुपए कर दीजिए।

अटल जी दबाव में आ गए।उन्होंने दो करोड़ और मनमोहन सरकार ने पांच करोड़ रुपए कर दिए।

याद रहे कि कुछ ही सांसद हैं जो सांसद फंड में से ‘कमीशन’ नहीं लेते।

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उम्मीद है कि मोदी जी सांसद फंड के पक्षधरों के दबाव में नहीं आएंगे।

वैसे अटल जी के जमाने से अधिक ही दबाव मोदी जी पर पड़ेगा फंड को जारी रखने के लिए।

या फिर इसकी राशि (5 करोड़) को बढ़ा देने के लिए।

यहां मिली जानकारी के अनुसार नरेंद्र मोदी भी सांसद फंड की बुराइयों से परेशान रहते हैं।

पिछले दिनों मोदी ने इस बात का पता लगाया था कि सांसद फंड की समाप्ति को लेकर सांसदों की क्या राय है ?

पता चला है कि सिर्फ 3 सांसदों ने इसकी समाप्ति के पक्ष में राय दी थी।

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उम्मीद है कि मोदी जी लीक छोड़कर चलेंगे और ‘रावणी अमृत कुंड’ को सुखा देंगे।

अन्यथा, ब्यूरोके्रसी में व्याप्त भ्रष्टाचार को मोदी जी चाहते हुए भी कम नहीं कर पाएंगे।

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लीक लीक गाड़ी चले,लीकही चले कपूत,

लीक छोड़ तीनों चले शायर,शेर, सपूत !

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मोदी जी शायर तो नहीं हैं। किंतु उन्होंने साबित कर दिया है कि वे शेर भी हैं और भारत मां के सपूत भी।

देखना है कि सांसद फंड में अधिक ताकत है या मोदी जी लोकप्रियता जनित उनकी दृढ इच्छा शक्ति में !

 

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