अमित सिंघल : मैं स्वयं अमेरिका से मतदान करने आ रहा हूँ…
आज मैं अपने फेवरिट नोबेल प्राइज विजेता अर्थशास्त्री डानिएल कानमान (Daniel Kahneman) की तरफ पुनः लौटना चाहता हूँ। क्या करे, प्रोफेसर कानमान ने मेरे मन पे अमिट छाप छोड़ी है।
प्रोफेसर कानमान ने अपनी रिसर्च में पाया कि हम लोग एक-तरफा तरीके से साक्ष्यों या आकड़ो की व्याख्या अपनी मान्यताओं, विश्वास या सिद्धांतों की पुष्टि के लिए करते है, भले ही साक्ष्य किसी और तरफ इशारा कर रहे हो।
इसे प्रोफेसर कानमान पुष्टीकरण पूर्वाग्रह या confirmation bias कहते है जिसके अनुसार हम अपने पूर्वाग्रहों की पुष्टि करने का प्रयास करते है।
उदाहरण के लिए, कुछ लोग यह मानते है कि 9/11 आतंकी हमलो को अमरीकियों ने ही करवाया था। या फिर, यद्यपि आतंकियों ने पुलवामा आतंकी हमला करवाने का दांवा किया, उसके बावजूद शांतिप्रिय लोग, आपिये और कोंग्रेसी यह कहते फिर रहे है कि भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए यह हमला करवाया था।
यह पुष्टीकरण पूर्वाग्रह का उत्तम उदाहरण है।
लेकिन यह प्रवृत्ति माध्यम वर्ग में भी पायी जाती है।
अब देखिये, सोशल मीडिया में मैं लगभग 15000 मित्रो से जुड़ा हूँ। एकाध को छोड़कर, सब के सब प्रधानमंत्री मोदी के विज़न का समर्थन करते है। कई लोग 19 अप्रैल को वोट डालने भी गए और लिखा भी कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को वोट दिया।
लेकिन यह भी सत्य है कि बहुत बड़ी संख्या किसी अन्य दल का समर्थन करती है।
यह मत भूलिए कि वर्ष 2014 के चुनावो में भाजपा को पूरे भारत में केवल 31 प्रतिशत और NDA को लगभग 39 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीँ, 2019 के चुनावो में भाजपा को पूरे भारत में केवल 37 प्रतिशत और NDA को लगभग 45 प्रतिशत वोट मिले थे। जिन राज्यों में भाजपा के विरूद्ध एक प्रमुख प्रतिद्वंदी था – जैसे कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, गुजरात, छत्तीसगढ़, हिमाचल इत्यादि – वहां भाजपा को 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे।
लेकिन अन्य पार्टियों के समर्थक हमारी मित्र सूची से नदारद है। हमारे मोहल्ले में भी अधिकतर मध्यम वर्ग के लोग रहते है, जो प्रधानमंत्री मोदी का सपोर्ट करते है। ऑफिस में, बिज़नेस में, गांव में भी हम भाजपा समर्थको के साथ उठते-बैठते है।
अतः हमें लगता है कि अधिकतर लोग भाजपा को समर्थन करते है।
लेकिन यह सत्य नहीं है।
हम लोग भी पुष्टीकरण पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। नहीं तो भारी संख्या में मोदी समर्थक 19 अप्रैल को वोट डालने निकलते।
प्रथम फेज में पिछले चुनाव से कम मतदान हुआ है। अगर हम सोचे कि प्रधानमंत्री मोदी चुनाव आसानी से जीत जाएंगे, तो हो सकता है हम भ्रम की स्थिति में हो। क्योकि कुछ जगह गठबंधन, कुछ जगह जातिगत असंतोष, तो कुछ जगह टैक्टिकल तरीके से कैंडिडेट खड़ा करके भाजपा के समर्थको को गुमराह कर रहा है।
अतः यह आवश्यक है कि हम लोग इस बार पिछले चुनावों की तुलना में कही अधिक संख्या में वोट करे।
मैं स्वयं अमेरिका से मतदान करने आ रहा हूँ।
नहीं तो हो सकता है कि हमारे पुष्टीकरण पूर्वाग्रह के कारण हमें 4 जून को निराशा का सामना करना पड़े।
