प्रसिद्ध पातकी : गीता – विष्णुसहस्रनाम में.. योगनिद्रा
बैरन नींद न आए बनाम योगनिद्रा
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गीता में भगवान कृष्ण ने इंद्रिय संयम पर जोर दिया है। गीता के दूसरे अध्याय में ही भगवान ने कहा कि जो व्यक्ति विषयों से अपनी इंद्रियों का वैसे ही अलग कर लेता है जैसे कछुआ अपने अंगों को अपने खोल में समेट कर बैठ जाता है तो वह स्थितप्रज्ञ हो सकता है।
यदा संहारते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः |
इन्द्रियाणिन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ||
भगवान ने इंद्रिय संयम के लिए मजेदार उदाहरण दिया है, कछुए का। श्री विष्णु भगवान आज आषाढ़ी एकादशी को योगनिद्रा में सोने चले जाएंगे। और फिर जाकर सीधे कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवोत्थान एकादशी को योगनिद्रा को त्यागेंगे। भगवान का वास क्षीर सागर में माना जाता है। वैसे देखा जाए तो श्रीहरि के दशवातार में शुरुआती तीन अवतार….मत्स्य, कच्छप और वराह का संबंध समुद्र से है। समुद्र की अतल गहराइयों में वास करने वाले श्रीहरि को सागर बहुत प्रिय है। विष्णु सहस्रनाम में सागर को लेकर भगवान के तमाम नाम आते हैं।
अच्युत: प्रथित: प्राण: प्राणदो वासवानुज:।
अपां निधिराधिष्टानमप्रमत्त: प्रतिष्ठित!।।
भगवान कैसे है? भगवान ‘अपां निधि’ हैं। अर्थात वे समुद्र धारण करते हैं। यह जो पृथ्वी पर तमाम जल राशि बिखरी हुई है, यह साक्षात् श्रीहरि ही हैं। मैं सिक्किम में गंगटोक से ऊपर चांगू लेक देखने गया था। स्थानीय बौद्ध लोगों के लिए उस प्राकृतिक झील के प्रति जो आदर एवं सम्मान का भाव है, वो ठीक उसी तरह है जैसे हम पंढरपुर के भगवान विट्ठल के प्रति सम्मान का भाव रखते हैं। भगवान अधिष्ठान हैं। इस सृष्टि में एक बार गहरा समुद्र मंथन हुआ था। उस मंथन के लिए मन्दराचल पर्वत को मथानी बनाया गया। अब इस मन्दराचल पर्वत को रखने के लिए कोई आधार तो होना चाहिए। इसलिए अपांनिधि प्रभु स्वयं उसके आधार बन गये। उसका ‘अधिष्ठान’ बन गये।
श्रीहरि अपने भक्तों एवं साधु जनों की पुकार का जवाब देने में कोई प्रमाद नहीं करते। कर ही नहीं सकते। इसीलिए वे ‘अप्रमत्त:’ हैं। भगवान का एक नाम ‘प्रतिष्ठित’ भी है। भगवान श्रीमन्नारायण किसी से कोई अपेक्षा नहीं करते। वे विशाल जलराशि के बीच शेषशैया पर अपनी ही महिमा में प्रतिष्ठित रहते हैं।
जीवो विनयिता साक्षी मुकुन्दोsमित विक्रम:।
अम्भोनिधिरनन्तामा महोदधिशयोsन्तक:।।

पहले भगवान को ‘अपां निधि’ कहा गया, फिर उन्हें ‘अम्भोनिधि’ कहा गया है। यह जो जलराशि है, यह किसी निधि या कोष या खजाने से कम नहीं है। यह कितनी मूल्यवान निधि है, इसका कुछ कुछ अंदाजा पड़ोसी राष्ट्र को अब पता चलने लगा है। दुनिया की जितनी सभ्यताएं हैं वह किसी जलराशि के कारण खूब फूली-फली और कई इसी के कारण तबाह हो गयीं। यह जो भगवान का ‘अन्तक’ नाम है, यह उसी प्रलय की ओर संकेत देता है जब समुद्र अपनी सीमाओ को लांघते हुए विकराल रूप धर लेता है। ऐसे समय में मनु महाराज जैसा बिरला ही कोई बच पाता है और उसे ‘भींगी आँखों से प्रलय प्रवाह’’ देखने के लिए विवश होना पड़ जाता है।
भगवान प्रलयकाल में जलधि में शेषनाग की शैया पर शयन करते हैं, इसलिए वे ‘महोदधिशय’ हैं।
तो भैया, अब काम की बात यह ध्यान रखना है कि आषाढ़ लगभग पूर्ण हो चुका है। अब वर्षा के श्रावण और भादौ मास आने वाले हैं। वृषा ऋतु में वैसे भी भगवान सूर्य नारायण के दर्शन कई बार नहीं हो पाते। सूर्य प्रकाश की अपर्याप्तता के कारण हम सभी के शरीर में सूक्ष्म जीव-जगत के क्रियाकलाप बहुत बढ़ जाते हैं। स्वास्थ्य, खानपान और दिनचर्या का ध्यान नहीं रख पाने वाले लोग वर्षा ऋतु में बीमार पड़ सकते हैं। इसलिए कम से कम चौमासे में तो कछुए की तरह इंद्रिय संयम वाला जीवन बिताना ही हर दृष्टि से व्यावहारिक बात है। भगवान का योगनिद्रा का यह काल हम सभी के लिए प्रेरणा बने, ऐसी श्रीहरि से प्रार्थना है।
देव देव जगन्नाथ श्रियाभूम्यादिलीलया।
जगद्रक्षण जागर्यां योगनिद्रामुपाश्रय।।
एकादशी की राम राम।।
