कौशल सिखौला : भारत को लेकर चीन के एकाएक बदले हुए सुर के मायने क्या हैं..?

भारत से यह कहने वाला अमेरिका कौन होता है कि रूस से दोस्ती तोड़ दो ? ट्रंप 2 के दौरान दुनिया का सबसे बड़ा मसीहा अमेरिका को बनाने के चक्कर में वे भूल गए हैं कि दुनिया के बाकी नेता भी राजनीति करते हैं और डिप्लोमेसी जानते हैं ? हर समय मैंने यह कर दिया मैंने वह कर दिया के फेर में फंसे ट्रंप से अमेरिका का थिंक टैंक भी खफा है परेशान है ।

वे रोजाना फैसले लेते हैं , रोजाना पलटते हैं , दुनिया में सबसे ताकतवर मुल्क की छवि कॉमेडियन की होती जा रही है । कभी रूस को धमकी , कभी चीन और ईरान को धमकी , कभी सीजफायर पर तमाशा तो कभी यूक्रेन पर निशाना । भारत पर रूस से तेल न खरीदने का दबाव डालने की कोशिश । यह जानते हुए भी आज का भारत किसी के दबाव में नहीं आता । बेवजह बार बार झूठ बोलते हैं ट्रंप कि भारत पाक के बीच सीजफायर मैने कराया ? कभी सेक्शंस की धमकी कभी टैरिफ की धमकी ? तमाशा ही बना दी ट्रंप ने अपनी और अमेरिका की छवि ?

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याद रखना मिस्टर ट्रंप । आपकी बेवजह शान खोरी से रूस चीन और भारत नजदीक आ रहे हैं । आपको यदि एक परास्त जनरल आसिम मुनीर से मुहब्बत हो सकती है तो भारत ही कौनसा चीन से स्थाई दुश्मनी रखना चाहता है ? हालांकि भारत बखूबी चीन की फितरतें जानता है । 1962 का जला हुआ है भारत , छाछ को भी फूंक मार मार कर पीता है । चीन भी डोकलाम और गलवान में देख चुका है कि 1962 के बाद ब्रह्मपुत्र और झियांग नदियों में कितना पानी बह चुका है । रूस के प्रयासों से भारत , चीन और रूस जैसे तीन ताकतवर देशों ने एक मोर्चा बना लिया तो अमेरिका और नाटो दोनों के होश उड़ जाएंगे ?

तो बता दें आपको RIc troika बनाने की तैयारी शुरू हो गई है । रिक दरअसल रूस इंडिया और चाइना तीन देशों के निक नेम से बना है जिसे त्रोइका यानि गठबंधन नाम दिया गया है । रूस की पहल पर एक दशक पहले ric का गठन हो गया था । लेकिन डोकलाम और गलवान हो गए , बात आई गई हो गई । ट्रंप के जनवरी में राष्ट्रपति बनते ही उनकी निस दिन पलटती सोच रूस भारत और चीन को पास ले आई है । यद्यपि यह इतना आसान नहीं । चीन की मक्कारियाँ इतनी ज्यादा हैं कि उसके साथ मोर्चा बनाने से पहले भारत हजार बार सोचेगा ।

इसके बावजूद गौर कीजिए , भारत को लेकर चीन के बयान एकाएक बदल गए हैं । हाल ही में राजनाथ सिंह , अजित डोभाल और एस जयशंकर एक के बाद एक चीन होकर आए हैं । ये तीन महाशक्तियां यदि सचमुच एक मंच पर आ गई तो अमेरिका को बड़ी मुसीबत होगी । इसमें कोई शक नहीं कि चीन का विस्तारवाद छोड़ना नामुमकिन है तो भारत का पास आना और भी मुश्किल है । लेकिन पूरी दुनिया के बीच लोकप्रिय हो चुका भारत कोई भी फैसला अपनी वैश्विक कूटनीति को कायम रखकर ही करेगा , यह बात एकदम तय है ।

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