सर्वेश तिवारी श्रीमुख : सैयारा की तस्वीरों.. भरपूर नग्नता परोसी.. ढाई घण्टे की फिल्म दरअसल कुछ ही दृश्यों को लेकर देखी जा रही है.. पर वे राजेन्द्र कुमार थे…
राज कपूर की आवारा, फिर उन्ही की संगम, फिर शशि कपूर की सत्यम शिवम सुंदरम, फिर ऋषि कपूर की बॉबी, राजीव कपूर की राम तेरी गङ्गा मैली… ये सारी की सारी फिल्में अपने समय की सैयारा हैं। इन फिल्मों के पीछे भी तब के युवा पागल हुए पड़े थे।
इन फिल्मों में कॉमन क्या है, जानते हैं? एक अच्छी कहानी, अच्छा सङ्गीत, और एक नई सुन्दर देह! जिसके पीछे भूखे युवान टूट पड़ें। या ऐसे कहिये कि जिसे दिखा कर नए बच्चों की उबलती भावनाओं को कैश किया जा सके। सैयारा की सफलता का यही मूल कारण है।
आवारा की नरगिस, सत्यम शिवम सुंदरम की जीनत अमान, बॉबी की डिम्पल कपाड़िया, राम तेरी गङ्गा मैली की मंदाकिनी… ये सब नई थीं, और अपने अपने समय के हिसाब से इन सभी ने भरपूर नग्नता परोसी थी। आप सोशल मीडिया में घूम रही सैयारा की तस्वीरों को देखिये, आपको दिख जाएगा कि ढाई घण्टे की फिल्म दरअसल कुछ ही दृश्यों को लेकर देखी जा रही है। यही होता रहा है, यही होता रहेगा… नया तो इसमें कुछ भी नहीं।
मैं सोच रहा हूँ, राजकपूर को लोग यूँ ही शोमैन नहीं कहते थे। दर्शकों की नब्ज खूब पकड़ता था वह आदमी… अपनी फैमिली के हर लड़के को उन्होंने ऐसी ही फिल्म से इंट्रोड्यूस किया और हर बार सफल रहे। दरअसल यह फॉर्मूला कभी फ्लॉप होगा ही नहीं। नई युवा पीढ़ी आती रहेगी, उनमें केमिकल लोचा होता रहेगा, और उसे भुनाने के बाजारू प्रयास भी चलते रहेंगे।
होती है एक उम्र, जब प्रेम नसों में बहता है। जब कोई तस्वीर देख कर होठों पर मुस्कान तैर उठती है, जब कोई एक उदास गीत दिन भर रुलाता रहता है। इसमें अच्छा बुरा कुछ नहीं है, यह प्राकृतिक है। प्रकृति ने ऐसा ही बनाया है हमें… बहुत मासूम होती है यह उम्र… फिल्म, वेबसिरिज, यूट्यूब आदि के प्रभाव से बच्चे तनिक शातिर होने लगे हैं, फिर भी थोड़ी मासूमियत तो बनी ही रहती है। वही मासूमियत ठगी जाती है।
राजकपूर के समय के ही एक दूसरे सुपरस्टार थे राजेन्द्र कुमार। साफ सुथरी फिल्में और सफलता की गारंटी। इतनी फिल्में सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली हुईं कि लोगों ने नाम ही जुबली कुमार रख दिया। उस आदमी ने भी अपने बेटे को लांच करने के लिए एक सैयारा बनाई थी- लव स्टोरी। देखे हैं? सिल्वर जुबली हुई थी फिल्म… राजेन्द्र कुमार ने दिखाया था कि बिना हीरो हीरोइन के कपड़े उतारे भी युवाओं को दीवाना बनाया जा सकता है। पर वे राजेन्द्र कुमार थे…
सोचता हूँ तो दो हजार के दशक में ऐसी किसी फिल्म की याद नहीं आती… हम इस उम्र में जिस फिल्म के पीछे पागल हुए थे, वह थी “गदर”। तब हमारी आलोचना इसलिए नहीं हुई क्योंकि सनी के फैन हमारे पिताजी भी थे। भयावह बीमारी के बीच दुआर पर उनका वीडियो चलवा कर ‘इंडियन’ देखना और अपने दोस्तों से कहना कि “डैनीया साला बहुत ह#मी है…” कुछ बातें हमेशा याद रह जाती हैं।
रित्तिक अमीषा की “कहो ना प्यार है” नहीं देख सके थे हम। हाँ, अभिषेक की रिफ्यूजी देखी थी।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
