कौशल सिखला : बिना पद संजय गांधी ब्रांड.. इस ब्रांड के लिए 2024 में चुनौती.. महागठबंधन जैसे टोटके…
मार्केटिंग और ब्रांडिंग में दुनिया का कोई टॉप नेम ढूंढना है तो दूर जाने की जरूरत नहीं !
अपने ही नरेंद्र मोदी ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें आजकल दुनिया के टॉप ब्रांड्स में शुमार किया जाता है !
उनकी शोमैनशिप गजब की है और वैरी हाई लेवल मार्केटिंग में उनकी कोई सानी नहीं !
यह बात हम नहीं कह रहे , संसार के अनेक बड़े बड़े नेताओं , विश्लेषकों और स्तंभकारों का ऐसा मानना है !
मोदी की ब्रांडिंग क्षमता का लाभ जहां भारत को अपने देश में मिला है , वहीं विश्व मंचों पर भारत की अंतरराष्ट्रीय साख खूब बढ़ गई है !
देसी चुनाव ब्रांडिंग हो या अंतर्राष्ट्रीय ग्रुप्स का तालमेल , मोदी की भूमिका हर जगह है और खरी खरी है !
हां , यह ठीक है कि भारत में ऐसे लेखन को कथित भक्ति से जोड़ने वाले हजार हैं । एक भी लाइन सरकार की नीतियों , सेना के गौरव , भारतीय चिंतन अथवा प्रधानमंत्री की जीवटता पर लिख दीजिए , फिर देखिए , आपको भक्त बताने वालों की बाढ़ आ जाएगी । ऐसा होते चूंकि बरसों बीत गए अतः ऐसे अलंकरणों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता । हां यह जरूर है कि देश में इनके भक्त बनाम उनके भक्तों के खेमें जरूर बन गए हैं । लेकिन यहां हम राजनीति के क्षेत्र में ब्रांडिंग की बात कर रहे हैं । अतीत में झांकें तो इंदिरा गांधी एक बड़ा ब्रांड थीं और बिना किसी पद पर होते हुए संजय गांधी बड़ा ब्रांड बन गए थे । आज अपने प्रांत में ममता और स्टालिन भी प्रांतीय ब्रांड बने हुए हैं । निश्चित रूप से लालू भी एक ब्रांड थे और बालासाहेब ठाकरे भी।
केजरीवाल देसी ब्रांड हैं , उनकी अपने गुणगान वाली कार्यशैली है । उन्होंने वह सब कुछ चुपचाप सीख लिया है जो राहुल नहीं सीख पाए। पूरब में ममता और दक्षिण में स्टालिन भी वही कर रहे हैं । दक्षिण में पहले एमजीआर , करुणानिधि , जयललिता आदि कईं ब्रांड थे । अब केवल और केवल स्टालिन रह गए हैं।
इस बात में कोई शक नहीं कि भारत और विश्व में मोदी ब्रांड अभी लंबा चलेगा । इस ब्रांड के लिए 2024 में भी कोई बड़ी चुनौती नहीं आएगी , फिलहाल तो ऐसा ही लगता है । सवाल यह पूछा जा सकता है कि यात्रा समापन के बाद क्या राहुल विपक्ष की ओर से कोई बड़ा ब्रांड बनकर उभर सकते हैं ? चूंकि कांग्रेस के पास मार्केटिंग का कोई एक्सपर्ट नहीं बचा है , अतः इसमें संदेह है।
प्रशांत कुमार की मार्केटिंग बंगाल में तो चली परन्तु कांग्रेस में नहीं चल पाई । जाहिर है जमाना नया है और दुनिया ग्लोबल हो चुकी है है । अब महागठबंधन जैसे टोटके चलने वाले नहीं । देश के पास जब विश्व का श्रेष्ठतम मोदी ब्रांड मौजूद है तो विपक्ष को अपनी सड़ी गली राजनीति बदलनी पड़ेगी । 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अभी 2023 में भी चार राज्यों के चुनाव हैं । तो अपने ब्रांड्स बनाइए अन्यथा 2024 में ढूंढते रह जाइएगा।