कौशल सिखौला : मोदी का यह विरोध कब राम के विरोध में बदला..
वे मौके देते हैं और वे मौकों को साथ साथ भुना लेते हैं । वे शब्द देते हैं और वे शब्दों को हथियार बना लेते हैं । वे नकल करते हैं और वे नकल को बेअकली बता देते हैं । तभी तो उनकी लकीरों के सामने उनकी लकीरें बौनी होती जा रही हैं । उनकी बेसुरी तानों को संगीत में ढालकर वे राग बना लेते हैं । उनकी गालियों को वे खूब पचा लेते हैं । फिर एकाएक कड़वी दवा देते हैं । उनकी चालों से वे मोहरे उठा लेते हैं । इससे पहले कि वे मोहब्बत की दुकानें खोलें वे बाजार हटा लेते हैं।
बड़ी मुश्किल है दुनिया में
इस तरह जीना
चाहते हैं अमृत पिएं
पड़ता है विष पीना
देख लीजिए । उन्होंने कहा चौकीदार चोर है , जन जन ने कहा मैं भी चौकीदार । वे बोले राफेल राफेल जनता बोली 282 की बजाय 303 । वे बोले ना हिन्दू ना परिवार । जनता बोली मैं भी उनका परिवार । वे बोले हिन्दू धर्म की शक्ति पर प्रहार , ये बोले भारत की नारी का अपमान । यह सब चलेगा अभी , आग बहुत है , अभी जलेगी । समझ लीजिए कि यह आम चुनाव बड़ा गर्म होने वाला है । राजनैतिक शब्दों का सफरनामा कहां तक चलेगा , पता नहीं । तीखे शब्द किसी बाण से कम नहीं होते । इन बाणों में विष भरा है । राजनीति में विष वर्षा पिछले कईं वर्षों से हो रही है । इस महावृष्टि का चरमोत्कर्ष अभी बाकी है।
भारत की राजनीति में शब्दों का प्रहार पहले भी हुआ है , परंतु मर्यादा कम ही टूटी है । इंदिरा गांधी के उद्भव के बाद सोनिया और राहुल तक शब्द प्रहार की जद में कभी कभार आते रहे । लेकिन नरेन्द्र मोदी के आगमन के बाद तो मुख्य रूप से नफ़रत की ऐसी राजनीति शुरू हुई जिसने शब्दों के तमाम अवरोध तोड़ डाले । सारे एंबार्गो विपक्ष की राजनीति ने भुला दिए । बीजेपी नहीं , खासकर मोदी के पीएम बनने से कांग्रेस के आकाओं को ऐसा लगा कि अरे यह तो हमारी जागीर लुट गई । व्यक्तिगत प्रहार करते हुए राहुल गांधी ने तू तड़ाक वाली भाषा की तमाम सीमाएं तोड़ डाली । जाहिर है जवाब आने थे और आ भी रहे हैं । शब्दों को पकड़ा भी जा रहा है।
मोदी का यह विरोध कब राम के विरोध में बदला , सब जानते है । आगे बढ़कर राहुल जैसे नेता हिन्दुत्व के खिलाफ आ खड़े हुए । अब तो रामायण आदि धर्मग्रंथों और यहां तक कि सनातन के विरुद्ध बोलना आम हो गया है । तो कोई यदि हिन्दू शक्ति को मिटाने की बात करने लगे तो इसे शब्द अज्ञान कहकर नहीं टाला जा सकता । सचमुच बड़ा मुश्किल सफर है । सुनों मेरे भाई विश्व के इस सबसे बड़े चुनाव के समय पहले तौलिए फिर बोलिए । समय चुनाव का है और नाजुक भी बहुत है । बोलिए , परन्तु याद रखिए , शब्द ऐसे हो जो खुद को ही न डकार जाएं।