NRI अमित सिंघल : चुनावी बॉन्ड.. मोदी सरकार ने धन की सीमा 20,000 नकद से घटाकर 2,000 रुपये किया था..
यद्यपि मैं चुनावी बॉन्ड पर नहीं लिखना चाहता था, लेकिन कुछ मित्रो ने लिखने का आग्रह किया है। अतः कुछ विचार प्रस्तुत करता हूँ।
दिल्ली स्थित थिंक-टैंक Association for Democratic Reforms (ADR) के अनुसार वर्ष 2004-05 से 2014-15 के दौरान राजनैतिक दलों को अज्ञात स्रोतों से 7,833 करोड़ प्राप्त हुए थे जो जो कि उनकी कुल आय का 69 फीसदी था। कांग्रेस और भाजपा को इस तरह के अज्ञात स्रोतों से अधिकतम आय हुई थी।
ध्यान रहे यह वही ADR है जिसके केस करने पर सर्वोच्च न्यायलय में चुनावी बॉन्ड की जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश दिया है।
ADR की रिपोर्ट के अनुसार, इन 11 वर्षों के दौरान कांग्रेस की कुल आय का 83 प्रतिशत हिस्सा 3,323 करोड़ रुपये अज्ञात स्रोतों से था, जबकि भाजपा की कुल आय का 65 प्रतिशत हिस्सा 2,126 करोड़ रुपये अज्ञात स्रोतों से था।
समाजवादी पार्टी की कुल आय का 766 करोड़ रुपये या 94 फीसदी और शिरोमणि अकाली दल का 88 करोड़ रुपये यानी 86 फीसदी अज्ञात स्रोतों से प्राप्त हुआ था।
यह आंकड़े देना आवश्यक है जिससे पता चल सके कि चुनावी बॉन्ड के पूर्व राजनैतिक दलों की फंडिंग कैसे होती थी और उस फंडिंग में “अज्ञात” सोर्स का क्या रोल था। सत्ता में होने के बाद भी कांग्रेस की कुल आय का 83 प्रतिशत हिस्सा 3,323 करोड़ रुपये अज्ञात स्रोतों से था जो भाजपा की तुलना में कहीं अधिक था। कौन थे ये “अज्ञात सोर्स”?
क्या आपको लगता है कि इतनी भारी रकम गरीब लोगो से दस रूपये के चंदे से मिली होगी? यह धन राजनैतिक दलों को कॉर्पोरेट जगत से ही मिलता था, लेकिन मेज के नीचे या पिछले दरवाजे से।
इन वर्षो की तुलना अब रिलीज़ हुए डाटा से कर लीजिए। अब “अज्ञात” सोर्स से डोनेशन की क्या स्थिति है?
तो इस समस्या से निपटने का क्या उपाय है? क्या कड़े कानून बनाकर? कौन करवाएगा उन कानूनों का पालन? पुलिस, आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय या फिर मीडिया? क्या पहले तीन विभाग सरकार के अन्तर्गत नहीं आते? सरकार कौन बनाता है? राजनैतिक दल। मीडिया किसकी जेब में है? कॉर्पोरेट हाउस की?
तो उपाय क्या है?
क्यों नहीं उन कॉर्पोरेट घराने को कानूनी तौर पे राजनैतिक दलों को धन देने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तथा राजनैतिक दलों को मिलने वाले बेनामी धन की सीमा को कम किया जाए। वर्ष 2017 के बजट में मोदी सरकार ने राजनैतिक दलों को अज्ञात स्रोतों से मिलने वाले धन की सीमा 20,000 रुपये नकद में घटाकर 2,000 रुपये कर दी थी।
संसद में एक बिल के द्वारा मोदी सरकार ने असीमित दानों को केवल डिजिटल और चेक मार्ग के माध्यम से ही अनुमति दी है, जिसका अर्थ यह है कि 2000 रुपये से ऊपर का चंदा केवल पार्टी के खातों में स्थानांतरित किया जा सकता है।
यद्यपि कॉर्पोरेट घराने चंदे दिए जाने वाले राजनैतिक दलों का नाम गुप्त रख सकते है, फिर भी उन्हें इस धन को अपनी बैलेंस शीट या अकाउंट बुक में दिखाना होगा, तथा उस चंदे के लिए कॉर्पोरेट बोर्ड से स्वीकृति लेनी होगी।
इस कदम का उद्देश्य राजनीतिक व्यवस्था को अज्ञात स्रोतों से मिलने वाले बेहिसाब धन को रोकने के लिए है। ऎसी चंदे की व्यवस्था विकसित देशो में व्याप्त है।
कई कम्पनियाँ राजनैतिक दलों को दिए जाने वाले धन को सार्वजनिक नहीं करना चाहती है क्योकि उन्हें भय है कि विरोधी दल के समर्थक उनके उत्पाद का बायकाट ना कर दे। भारत में ही कई फिल्मो एवं कंपनियों का बायकाट कई लोगो राजनैतिक कारणों से किया था। फर्जी किसानो ने रिलायंस एवं जिओ का बहिष्कार किया था, उनकी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाया था। अमेरिका में PayPal का बायकाट हुआ क्योकि इसके मालिक, पीटर थिएल, ने डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव प्रचार के लिए डोनेशन दिया था। अगर आप इन कंपनियों को बाध्य करे कि वे चंदे की जानकारी सार्वजनिक करे, तो वे वही चंदा कैश में चुप चाप पकड़ा देंगे।
आपको क्या लगता है? अगर अडानी एवं अंबानी का नाम चुनावी बॉन्ड की लिस्ट में होता, तो राहुल का क्या रिएक्शन होता? जबकि स्वयं राहुल पार्टी एवं इंडी अलायन्स के दलों ने बॉन्ड से चंदा लिया है?
पूरा विवाद केवल इसलिए उत्पन्न किया गया था क्योकि “उन्हें” अडानी-अंबानी के चुनावी बॉन्ड मिले नहीं थे और “उन्हें” पूर्ण विश्वास था कि अडानी-अंबानी भाजपा को चुनावी बॉन्ड दे रहे है।
प्रश्न यह भी है कि एक राजनीतिक दल रैली करता है, पार्टी मुख्यालय एवं हर क्षेत्र में ऑफिस मेंटेन रखता है। स्टाफ को सैलरी देता है। गाड़ियों, पोस्टर, बंटिंग, प्रचार, विज्ञापन का पैसा देता है। यह धन कहाँ से आएगा? कौन देगा?
इस दुविधा से निकलने का कोई आसान तरीका नहीं है।