“अल्पसंख्यक समुदाय को ओबीसी में शामिल करने की कांग्रेस की कोशिशों पर कोर्ट ने.. जातिगत जनगणना का विरोध क्यों किया कांग्रेस ने” सहित कई विषयों पर सुधांशु त्रिवेदी के तीखे प्रश्नों का उत्तर देगी कांग्रेस व इंडी गठबंधन ?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने भारत की जनगणना कराने का निर्णय लिया। इस बार सामाजिक–आर्थिक सर्वेक्षण के साथ–साथ जातिगत गणना भी की जाएगी, जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार होगा।
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कांग्रेस को सैटेलाइट से फिल्मों के माध्यम से पाकिस्तान के एयरबेसों की तबाही नजर नहीं आई, सीएए के नोटिफिकेशन में persecution शब्द नजर नहीं आया था। इसी दृष्टिदोष के चलते, कांग्रेस को इस बार भी चीजें नजर नहीं आईं।
1951 में जातिगत गणना रोकने का फैसला करने वाली, काका कालेलकर समिति की रिपोर्ट दबाने और मंडल आयोग की सिफारिशें लागू नहीं होने देने वाली, कांग्रेस पार्टी अब इन्हीं मुद्दों पर बयानबाजी कर अपना असली चेहरा उजागर कर रही है।
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कर्नाटक के डिप्टी सीएम ने साल भर पहले ही कहा था कि वह सर्वे रिपोर्ट जारी नहीं होने देंगे। जब पहले सर्वे कराया गया था, तो क्या वह गलत कराया गया था? यदि नहीं, तो अब दोबारा सर्वे क्यों कराया जा रहा है?
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राहुल गांधी बताएं कि कर्णाटक में जो सर्वेक्षण कराया गया था, उसमें जो अनुपात सामने आया, क्या उस अनुपात के आधार पर मंत्रिमंडल में कोई परिवर्तन किया गया? तेलंगाना में कितने ओबीसी मंत्री हैं? डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के केंद्रीय कैबिनेट में कितने ओबीसी मंत्री थे? शायद दो–तीन भी नहीं थे।
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कर्नाटक और तेलंगाना में अल्पसंख्यक समुदाय को ओबीसी में शामिल करने की कांग्रेस की कोशिशों पर कोर्ट ने भी टिप्पणी की है, उस पर कांग्रेस का क्या कहना है? आखिर कांग्रेस किसका हिस्सा मारना चाहती है?
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पश्चिम बंगाल की राज्य सूची में शामिल कुल 179 पिछड़े वर्ग की जातियों में से 118 जातियां मुस्लिम हैं। 2011 से पहले इसमें कुल 108 जातियां थीं जिसमें से 53 जातियां मुस्लिम थीं लेकिन 2011 के बाद 71 पिछड़ी जातियों को पिछडे वर्ग की राज्य सूची शामिल किया गया जिसमें से 65 मुस्लिम हैं। स्पष्ट है कि ममता बनर्जी सरकार तुष्टिकरण की पराकाष्ठा पार कर चुकी है।
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इंडी गठबंधन के दल आरक्षण के नाम पर वोट बैंक की राजनीति कर, पिछड़े वर्ग के आरक्षण में पिछले दरवाजे से न केवल सेंध लगा रहे हैं, बल्कि पूरा का पूरा ढांचा ही ढहाने का काम कर रहे हैं। राहुल गांधी और इंडी गठबंधन के नेता इस पर जवाब क्यों नहीं देते?
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इंडी गठबंधन और कांग्रेस की सोच केवल अपने परिवार का उत्थान और जातियों में घमासान कराने की है। भाजपा की सोच में सभी जातियों की पहचान, सम्मान और उत्थान है।
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कांग्रेस की खटाखट योजना ने हिमाचल में खटाखट–खटाखट कर सारा खजाना “सफा–चट, सफा–चट” कर दिया। जहां कांग्रेस सत्ता में आती है, वहां उसका खटाखट मॉडल विकास में सबसे बड़ी बाधा बन जाती है।
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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने आज केंद्रीय कार्यालय में आयोजित प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए जातिगत जनगणना पर कांग्रेस के दोहरे चरित्र को उजागर किया। डॉ त्रिवेदी ने बताया कि जातिगत जनगणना को नकारने वाली कांग्रेस पहली पार्टी थी और सामाजिक न्याय की पुरोधा बन रही इसी कांग्रेस पार्टी ने ही काका कालेलकर की रिपोर्ट और मंडल कमीशन की रिपोर्ट दबाई थी।
डॉ त्रिवेदी ने कांग्रेस पार्टी पर प्रहार करते हुए कहा कि अपनी चिरपरिचित शैली, या यूँ कहें कि चिरकुत्सित शैली के अनुरूप, कांग्रेस को अक्सर आवश्यक तथ्य और सच्चाई दिखाई ही नहीं देते। हाल ही में, ऑपरेशन सिंदूर में सैटेलाइट फिल्मों के माध्यम से पाकिस्तान के एयरबेसों की तबाही स्पष्ट रूप से दिखाई गई, फिर भी कांग्रेस को वह नजर नहीं आई। इससे पूर्व भी, कई अवसरों पर कांग्रेस वास्तविकता को देखने में असमर्थ रही है। जब नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) आया था, तब भी कांग्रेस को उसके नोटिफिकेशन में “पर्सेक्यूशन” शब्द नजर नहीं आया।
राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि यही दृष्टिदोष “उस अदूरदर्शी दृष्टिकोण और धुंधली दृष्टि से ग्रस्त होना या यूं कहें कि प्रेरित और कुटिल दृष्टि से ग्रस्त होना”, कांग्रेस को स्पष्ट रूप से समझाए गए तथ्यों को देखने से रोकता है। आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने जनगणना कराने का निर्णय लिया और प्रेस विज्ञप्तियों के माध्यम से स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि इस बार सामाजिक–आर्थिक सर्वेक्षण के साथ–साथ जातिगत गणना भी की जाएगी, जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार होगा। इस विषय पर क्रमशः 30 अप्रैल, 4 जून और 15 जून को तीन प्रेस रिलीज जारी की गईं, जिनमें स्पष्ट रूप से यह बातें बताई गईं हैं। लेकिन राजनीति में सिर्फ कहा हुआ नहीं, किया हुआ अधिक महत्वपूर्ण होता है और बिहार में वर्ष 2022 में भाजपा गठबंधन सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण कराने का निर्णय कर यह करके दिखाया। कांग्रेस वही पार्टी है, जिसने स्वतंत्र भारत में 1951 में जातिगत गणना को रोकने का निर्णय लिया था। यही पार्टी है, जिसने काका कालेलकर कमेटी की रिपोर्ट को दबाए रखा और मंडल आयोग की रिपोर्ट को भी लागू नहीं होने दी। अब वही पार्टी आज आकर ऐसे मुद्दों पर बोल रही है और उन्हें वह बातें भी नहीं दिखाई देतीं जो साफ–साफ लिखी हुई हैं। इससे कांग्रेस की राजनीति का असली चेहरा उजागर हो जाता है।
डॉ त्रिवेदी ने कहा कि आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी और एनडीए की सरकार “सबका विश्वास, सबका प्रयास” के मंत्र पर चलते हुए सामाजिक, सांस्कृतिक सर्वेक्षण, सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण और जातिगत जनगणना कराना चाह रही है। इसका उद्देश्य सभी जातियों की पहचान, सभी जातियों को सम्मान और सबसे पिछले छोर पर खड़ी जातियों का उत्थान है। इंडी गठबंधन और कांग्रेस की सोच केवल अपने–अपने परिवार का उत्थान और उसके लिए जातियों में घमासान कराने का है। हमारी सोच और उनकी सोच में एक मूलभूत अंतर है, हम सभी जातियों की पहचान, उनका सम्मान और उनके उत्थान के लिए समर्पित हैं, जबकि वे केवल अपने परिवार के उत्थान के लिए सभी वर्गों में घमासान कराने के लिए प्रेरित हैं। इतने लंबे समय तक सरकार में रहने के बाद कम से कम कांग्रेस पार्टी को तकनीकी मुद्दों को समझना चाहिए। जातिगत जनगणना का नोटिफिकेशन केंद्र द्वारा होता है। राज्य जातिगत जनगणना कर ही नहीं सकती, तो वे किस राज्य का नोटिफिकेशन दिखा रहे हैं? राज्य केवल सर्वे कर सकती है। सर्वे को नोटिफाई करने की प्रक्रिया अलग होती है, जिसकी कोई वैधानिक प्रक्रिया नहीं है। वह केवल सरकारी आदेश होता है। जबकि जातिगत जनगणना केंद्र द्वारा की जाती है और उसकी एक वैधानिक प्रक्रिया होती है, जिसके बाद सरकारी आदेश जारी होता है।
भाजपा सांसद ने कहा कि कांग्रेस पार्टी जिस तेलंगाना का उदाहरण दे रही है, पहली बात तो यह है कि वहाँ भी सर्वेक्षण हो रहा है, जनगणना नहीं। यह स्पष्ट रूप से समझना चाहिए कि वहाँ गणना नहीं हो रही है, केवल सर्वे हो रहा है। दूसरा, आज ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री का बयान आया है कि पैसे की कमी हो गई है, कल्याणकारी योजनाओं में देने के लिए पैसे नहीं हैं। यह पहली बार नहीं हुआ है, कांग्रेस की खटाखट योजना ने पहले हिमाचल प्रदेश में जो किया, वही खटाखट–खटाखट सारा खजाना सफा–चट, सफा–चट कर दिया। उसके बाद यही चीज़ कर्नाटक और फिर हरियाणा की कांग्रेस सरकार में हुई। हिमाचल प्रदेश के बाद वहाँ भी स्थिति खराब हो गई। अब वही स्थिति तेलंगाना में आती जा रही है। यह साफ दिखाई पड़ रहा है कि कांग्रेस जहां-जहां सत्ता में आती है, इनका “खटाखट मॉडल” देश के विकास के लिए एक बड़ी चुनौती बन जा रहा है, क्योंकि यह समग्र आर्थिक विकास को ध्यान में रखकर विकास नहीं करते।
डॉ त्रिवेदी ने कहा कि भाजपा शासित राज्यों में यदि कल्याणकारी योजनाएं कार्य कर रही हैं, तो उसके साथ–साथ राज्य में नए संसाधनों का भी संचय उसी दृष्टिकोण से किया जा रहा है। जहां-जहां कांग्रेस आई, वहां-वहां आर्थिक दृष्टि से तबाही आई। यह उदाहरण हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और उसके बाद अब तेलंगाना में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है। कांग्रेस पार्टी पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस वह पार्टी है जो जातिगत आधार पर देशवासियों को आपस में लड़ाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का प्रयास करती रही है। यह वही पार्टी है जिसकी सहयोगी पार्टी ने कभी बिहार में “भूरा बाल साफ करो” का नारा दिया था, जो चार जातियों का प्रतीक था। एक दौर में, किसी का नाम लेकर कहा जाता था “फलाना खाएगा हलुआ और ढीमका खाएगा बलुआ।” कभी सेक्युलर दल में “अजगर” शब्द का उपयोग हुआ, तो कभी कांग्रेस गुजरात में “KHAM” और कर्नाटक में “अहिंदा” जैसे जातिगत समीकरणों का इस्तेमाल किया गया। इसके विपरीत आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने हमेशा “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास” की बात की, जिसमें सभी जातियों को जोड़ा गया। मगर कांग्रेस ने इन सारे वर्गों का नाम तो लिया, लेकिन समर्पण और सत्ता का अर्पण केवल अपने परिवार को ही किया। सत्ता में आने के बाद एक रत्ती स्थान भी परिवार के बाहर किसी को नहीं दिया गया।
राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि तीन पीढ़ियों तक देश को चलाने वाली पार्टी आज भी वही संकुचित सोच अपनाई हुई है, जिसके चलते कांग्रेस जो बातें लिखी गई हैं, उन्हें नहीं दिखा रही और पूरे दस्तावेज़ को छिपाकर केवल सरासर मिथ्या और भ्रामक प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस जानबूझकर देश को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है क्योंकि शायद उनके मंसूबे पूरे नहीं हो पा रहे हैं। कर्नाटक और तेलंगाना में अल्पसंख्यक समुदाय की बड़ी संख्या को ओबीसी में शामिल करने की कोशिश कांग्रेस ने की है, जिसके बारे में कोर्ट ने भी टिप्पणी की है, उस पर कांग्रेस का क्या कहना है? आखिर कांग्रेस किसका हक मारना चाहती है?
डॉ त्रिवेदी ने कहा कि पश्चिम बंगाल की सरकार ने भारी संख्या में मुस्लिम समाज के लोगों को ओबीसी में शामिल किया है, उसके लिए पिछड़ा वर्ग आयोग ने बकायदा पश्चिम बंगाल सरकार से जवाब-तलब किया था। राहुल गांधी और इंडी गठबंधन के नेता इस पर जवाब क्यों नहीं देते? पश्चिम बंगाल की राज्य सूची में शामिल कुल 179 पिछड़े वर्ग की जातियों में से 118 जातियां मुस्लिम हैं। वर्ष 2011 से पहले पिछड़े वर्ग की राज्य सूची मे शामिल कुल पिछड़ी जातियों की संख्या 108 थीं जिसमें से 53 जातियां मुस्लिम थीं। वर्ष 2011 के बाद 71 पिछड़ी जातियों को पिछडे वर्ग की राज्य सूची शामिल किया गया जिसमें से 65 मुस्लिम हैं। एक बड़ा मज़ेदार तथ्य यह है कि जब ओबीसी कमीशन ने पश्चिम बंगाल सरकार से पूछा कि यह संख्या इतनी कैसे बढ़ गई, तो जवाब मिला कि ये लोग कन्वर्ट होने से पहले इस जाति के थे, इसलिए इन्हें ओबीसी में शामिल कर लिया गया। जब उनसे यह पूछा गया कि फिर इतनी भारी मात्रा में कन्वर्ज़न कैसे हो गया, तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि आरक्षण के नाम पर वोट बैंक की राजनीति करके, पिछड़े वर्ग के आरक्षण में पिछले दरवाजे से न केवल सेंध लगाई जा रही है, बल्कि पूरा का पूरा ढांचा ही ढहा देने का काम इंडी गठबंधन की सरकारें कर रही हैं।
भाजपा सांसद ने कहा कि आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने जो एक सकारात्मक निर्णय लिया है, उस निर्णय के सकारात्मक पक्ष को विपक्ष स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कर्नाटक में सर्वेक्षण पर ₹165 करोड़ रुपये खर्च किए गए और अब फिर से सर्वे कराने की बात की जा रही है। कर्नाटक के डिप्टी सीएम ने मात्र साल भर पहले बयान दिया था कि वह सर्वे के आंकड़े जारी नहीं होने देंगे। जब पहले सर्वे कराया गया था, तो क्या वह गलत कराया गया था? यदि नहीं, तो अब दोबारा सर्वे क्यों कराया जा रहा है? तेलंगाना में भी अब कहा जा रहा है कि सर्वे दोबारा कराया जाएगा। राहुल गांधी बताएं कि कर्णाटक में जो सर्वेक्षण कराया गया था, उसमें जो अनुपात सामने आया, क्या उस अनुपात के आधार पर मंत्रिमंडल में कोई परिवर्तन किया गया? आज सबसे अधिक ओबीसी मंत्री माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार में हैं। तेलंगाना मंत्रिमंडल में कितने ओबीसी मंत्री हैं? डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के केंद्रीय कैबिनेट में कितने ओबीसी मंत्री थे? शायद दो–तीन भी नहीं थे। यह स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस का उद्देश्य समाज के भीतर भ्रम पैदा करना और सत्ता को अपने परिवार के हाथों में बनाए रखना है और जब यह उद्देश्य बिखरता हुआ नजर आ रहा है, तब ऐसे प्रपंच, झूठ और मिथ्या प्रचार का सहारा लिया जा रहा है।
