परख सक्सेना : भारत मे मात्र वंशवादी पार्टियां ही सफल लेकिन बीजेपी अपवाद क्योंकि..
उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार और तमिलनाडु ये 5 राज्य मिलाकर लोकसभा की 250 सीटें होती है। जिसे बहुमत चाहिए वो इनकी संयुक्त 70% सीटें जीत ले तो काम हो सकता है।
यदि इन राज्यों मे सफाया हो जाए तो फिर कुछ बचा ही नहीं, ले देकर गठजोड़ ही करना पड़ेगा। यदि पार्टियों के हिसाब से बात करें तो 2014 और 2019 मे NDA की सबसे बड़ी कुंजी यही थी।
2024 मे धक्का लगना था मगर इसलिए नहीं लगा क्योंकि गुजरात, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की संयुक्त 65 सीटों पर बीजेपी व्हाइट वाश कर देती है। उड़ीसा और तेलंगाना का बोनस जो है सो है ही।
कांग्रेस का किस्सा भी कुछ यही है, ज़ब इंदिरा गाँधी और पंडित नेहरू के समय भर भरकर सीटें आती थी वे उन्ही उक्त 5 राज्यों से आती थी। आज यथास्थिति यह है कि पांचो मे ही कांग्रेस गठबंधन के भरोसे है वो भी छोटे भाई की भूमिका मे।
जिनमे भी तमिलनाडु और बंगाल मे तो वे है जो कभी बीजेपी के साथ थे। ऐसे मे ज़ब कांग्रेसी हवाई दावे करते है तो यह प्रश्न बनता है कि संख्या कहाँ है? कांग्रेस को सरकार बनाने और 5 साल चलाने के लिये 170 सीटें तो चाहिए, इन 5 के बिना वो कहाँ से आएगी?
इसलिए हम वन पार्टी रुल की तरफ बढ़ रहे है, लोग 2029 की बात कर रहे है मगर भविष्य दूर दूर तक बीजेपी के अधिकार मे है। सीटें कम हो सकती है हो सकता है 220 भी मिले मगर इससे कम नहीं जा सकती क्योंकि गणित उस अनुरूप है।
बीजेपी को एक ही चीज डूबा सकती थी वो उसकी अपनी गलतियां, इसलिए यहाँ सब कुछ केंद्रीयकृत है। मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के अनुरूप काम कर रहे है, एक डीप स्टेट नागपुर मे पहले से है जो ग्राउंड रिपोर्ट दें रहा है।
2014 की तुलना मे 2024 देखे तो बीजेपी मे नेताओं की एक नई खेप दिखाई दें रही है। कांग्रेस आज भी राहुल गाँधी के आगे नहीं बढ़ सकी, वो ही चिदंबरम, वो ही सिब्बल, वो ही जयराम रमेश।
सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ने मिलकर 27 साल का वैक्यूम बना दिया है और अब या तो कांग्रेस गर्त मे जायेगी या फिर कोई क्रांतिकारी आएगा लेकिन क्रांति के लिये भी कारण तो चाहिए।
यदि अगला प्रधानमंत्री संघ खेमे से नहीं बना, लंबे समय तक टिक गया तथा उसने संघ को प्रभावहीन कर दिया तो समझ लीजिये वो भी जाएगा और बीजेपी भी डूबेगी। भारत मे मात्र वंशवादी पार्टियां ही सफल हुई है बीजेपी अपवाद है।
अपवाद क्योंकि संघ उसके पीछे खड़ा है, संघ मे वैचारिक और योग्य उत्तराधिकार का चलन है इसलिए बीजेपी बची हुई है। इसलिए राष्ट्र का दूरगामी हित इसी मे है कि 2029 मे भी संघ की पृष्ठभूमि से आया व्यक्ति ही प्रधानमंत्री बने।
निजी राय ले तो अमित शाह, शायद के कामराज के बाद अब तक के सबसे बेहतरीन व्यवस्थापक ये ही रहे है, काम से खुद को सिद्ध किया है बस एक ही बात है कि जननेता अभी नहीं बने है।
मगर 4 साल शेष है सत्ता तंत्र पूरा ही हाथ मे है, इसका भरसक प्रयोग करके खुद के पक्ष मे हवा बना सकते है बशर्ते संघ की सूची मे कोई नया नाम ना आये।
अमित शाह इसलिए भी क्योंकि यदि नहीं तो ये बहुत बड़ा अन्याय हो जायेगा, वो अन्याय जो पहले ही सरदार पटेल के साथ हो चुका है।
इससे पहले योगी फैन क्लब अपना मत रखे सिर्फ एक ही खंडन पर्याप्त है, गुजरात मोदी के बिना 12 वर्षो से पायलट मोड पर चल रहा है उत्तरप्रदेश योगी के बिना दो साल नहीं चल सकेगा।
योगी प्रधानमंत्री के बजाय गृहमंत्री के लिये ज्यादा अच्छे विकल्प है। आपको योगी यू भी इस्लामोफोबिया भगाने के लिये चाहिए, वो गृहमंत्री का कार्यक्षेत्र है, प्रधानमंत्री का दायरा बहुत ज्यादा विस्तृत है।
✍️परख सक्सेना✍️
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