परख सक्सेना : ऑपरेशन सिंदूर

ऑपरेशन सिंदूर के समय एक बात समझ आयी कि भारत पाकिस्तान का संतुलन 60-40 का नहीं है अपितु 90-10 का है।

पाकिस्तान हमसे हमारी कल्पना के परे पिछड़ा हुआ है, जितना विवश फिलिस्तीन इजरायल के सामने नहीं था उससे ज्यादा पाकिस्तान भारत के सामने था।

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पाकिस्तान इस समय संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है मगर ज़ब ज़ब उसने भारतीय कार्रवाई पर चर्चा की तो उसकी सुनी नहीं गयी और अंततः ज़ब भारतीय मिसाइले रावलपिंडी ध्वस्त करके किराना हिल्स पर गिरी तब विश्व समाज को हरकत मे आना पड़ा।

अब भारतीय वायुसेना अभ्यास कर रही है, लेकिन पाकिस्तान इतना बेबस क्यों है?

इसका उत्तर 1971 मे भी दिखेगा, ऊपर से देखने मे लग रहा था कि भारत के साथ तो सोवियत संघ है जबकि बाकि सारे देश पाकिस्तान के साथ है।

उस समय पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहया खान का एक करीबी खादिम हुसैन था उसने अपनी पुस्तक मे पाकिस्तानी वर्जन लिखा है जो हर भारतीय को पता होना चाहिए।

वो लिखता है कि 3 दिसंबर को हमने युद्ध शुरू किया और अगले दिन से ही भारतीय सेना ने कराची पर हमले शुरू कर दिये। हमने ईरान के शाह पहलवी से बात की।

ईरान के साथ करार था कि यदि भारत हमला करेगा तो कराची एयरपोर्ट की सुरक्षा ईरान को करनी है। शाह पहलवी ने संदेश भेजा कि ये लड़ाई अब द्विपक्षीय नहीं रही और इस तरह अपना हाथ पीछे खींच लिया।

पाकिस्तान को दूसरा झटका तब लगा ज़ब शाह ने ईरानी सेना को पाकिस्तान के विरुद्ध बलूचिस्तान मे खड़ा कर दिया मगर अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद पीछे कर लिया। सीरिया के राष्ट्रपति हाफिज अल असद ने बहाने बनाकर सीरिया को पीछे खींच लिया।

पाकिस्तान को लेबनान और सऊदी से रसद आनी थी एक खेप अफगानिस्तान मे लूट ली गयी और अफगानिस्तान के राजा जाहिर शाह ने कोई कार्रवाई के आदेश नहीं दिये। वही सऊदी ने युद्ध क्षेत्र मे अपने लोग भेजनें पर चिंता जताई।

अहमद ने लिखा कि राजनीति मे रिश्ते स्वार्थ से परिपूर्ण और मानवता से खाली होते है। लेकिन अभी असली धोखे तो बाकि थे, ढाका मे पाक सेना के सरेंडर से पहले अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र मे युद्ध विराम का प्रस्ताव रखा मगर सोवियत संघ ने ब्लॉक कर दिया।

इसके बाद पोलैंड ने प्रस्ताव दिया कि पश्चिमी फ्रंट पर युद्ध रोक दो और पूर्वी फ्रंट पर राजनीतिक समाधान निकाला जाए। सोवियत इसके लिये तैयार था।

याहया खान को ज़ब इसकी जानकारी हुई तो उसने न्यूयॉर्क मे बैठे जुल्फीकार अली भुट्टो को रात 2 बजे फोन लगाकर ये ऑफर स्वीकारने को कहा।

भुट्टो हेलो हेलो करते रहे, उनके ऑपरेटर ने ज़ब कहा कि लाइन साफ है तो भुट्टो की आवाज़ आयी “शटअप”। अगले दिन भुट्टो ने प्रस्ताव नहीं माना और पाकिस्तान की सेना को सैन्य इतिहास का सबसे बड़ा समर्पण करना पड़ा।

उस दिन शायद भारतीय डीप स्टेट ने भी जाना होगा कि पाकिस्तान की सेना और नेताओं मे 36 का आंकड़ा है। यदि सेना को कोई पीटे तो वहाँ नेता खुश ही होते है।

अब पाकिस्तान को एक आखिरी धोखा भी बचा था, अमेरिका को जैसे तैसे भारत के खिलाफ अपना सातवा जंगी बेड़ा भेजनें के लिये मनाया।

ये जंगी बेड़ा चींटी की गति से चला और ज़ब पता चला कि सोवियत ने भी अपना जंगी बेड़ा भेज दिया तब तो उन्हें बहाना भी मिल गया कि हम सिचुएशन स्टडी कर रहे है।

ज़ब तक अमेरिकी बेड़ा हिन्द महासागर के पास पहुंचा सोवियत का जहाज आसानी से आ चुका था और उसने पूरा हिन्द महासागर अपने अधिकार मे ले लिया था।

चीन ने तो पाकिस्तान को सीधे ही सैन्य अक्षमता का बहाना मार दिया था। इस तरह पाकिस्तान की पराजय की इबारत भारत ने तो लिखी ही लेकिन पाकिस्तान की कूटनीतिक असफलता बहुत सबक दें गयी।

पाकिस्तान मे यदि आप सेना को मारोगे तो वहाँ के नेता समर्थन ही करेंगे, पाकिस्तान देश नहीं है 1970 के दशक वाली फिल्मो मे दिखाई जाने वाली मजदूरों की फैक्ट्री है… जिसमे मालिक सेना है और नेता सुपरवाइजर।

दूर भविष्य मे आप ज़ब भी भारत द्वारा पाकिस्तान का सम्पूर्ण प्रत्यार्पण देखोगे तो उसमे उनके नेताओं का और सेना के तुगलकीपन का बहुत बड़ा योगदान मिलेगा।

✍️परख सक्सेना
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