सर्वेश तिवारी श्रीमुख : धनखड़.. इस्तीफे पर विपक्षी दल सबसे ज्यादा आहत क्यों है !!

उपराष्ट्रपति जी ने पद से इस्तीफा दे दिया। आयु के पचहत्तरवें वर्ष में चल रहे श्री धनखड़ ने इस्तीफा के लिए खराब स्वास्थ को कारण बताया है। भारत के समस्त पत्रकार और सोशल मिडियाकार आज एकमत हैं कि उनके इस्तीफे के पीछे और जो भी कारण हों, वह कारण तो बिल्कुल ही नहीं है जो वे बता रहे हैं। इससे आप भारतीय राजनीति पर भारतीय जनता के भरोसे का अंदाजा लगा सकते हैं।
दरअसल इस देश के आमजन ने स्वास्थ्य कारणों से किसी जनसेवक को पद छोड़ते आजतक देखा ही नहीं। हमने कुर्सी पर कूंखते जननायक देखे हैं। हमने पार्टी टिकट नहीं मिलने पर नब्बे साल की आयु में पार्टी बदलते नेता देखे हैं। हम उन राजनेताओं को भी देख रहे हैं, जो अपने बच्चों को राजनीति में स्थापित कर चुकने के बाद भी सत्ता का मोह नहीं त्याग पा रहे और पार्टी बदल कर चीखते चिल्लाते रहते हैं। स्वास्थ्य कारणों से तो लोग मुखिया या वार्ड पार्षद का पद नहीं छोड़ते, कोई उपराष्ट्रपति जैसा पद छोड़ देगा, यह हम कैसे मान लें?
मोबाइल आने के बाद देश में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है उसपर देश के बौद्धिक जन चर्चा ही नहीं करते। मोबाइल आने के पहले देश में कुल दो से ढाई प्रतिशत लोग बुद्धिजीवी हुआ करते थे, मोबाइल आने के बाद बुद्धिजीवियों की संख्या पचहत्तर प्रतिशत पार कर गई है। अब हर व्यक्ति हर विषय की बारीक समझ रखता है। जो लोग बिना पत्नी से आज्ञा लिए अपने बड़े भाई को फोन तक नहीं करते, वे तीसरे दिन सरकार की विदेश नीति की समीक्षा करते हैं। मैंने तो अपने देश को उसी दिन विश्वगुरु मान लिया था, जिसदिन मेरे गाँव में चिनियाबेदाम बेचने वाले बूढ़े ने मुझे धिक्कारते हुए कहा था- आप क्या जानेंगे माटसाब, प्रथम प्रधानमंत्री ने माउंटवेटन की लुगाई से दोस्ती न की होती तो देश आजाद ही नहीं हुआ होता। उसी ने तो गिफ्ट में आजादी दी थी।
हाँ तो अभी हर बुद्धिजीवी की जानकारी में उपराष्ट्रपति जी के इस्तीफे का एक ऐसा गुप्त कारण जरूर है, जो उसके अतिरिक्त कोई और नहीं समझ पाया है। जो महानुभाव सुबह नहाने के पहले अपना कच्छा बनियान नहीं ढूंढ पाते, उन्होंने भी इस्तीफे का एक कारण जरूर ढूंढ लिया है। कुल मिला कर अबतक तेरह लाख पिछत्तीस हजार कारण ढूंढे जा चुके हैं, शेष के अन्वेषण में समाज लगा हुआ है। यदि ये सारे कारण माननीय पूर्व उपराष्ट्रपति जी तक पहुँच गए तो वे अपना इस्तीफा वापस भी ले सकते हैं…
उपराष्ट्रपति जी के इस्तीफे पर सबसे ज्यादा आहत वे विपक्षी लोग हैं जिन्हें कल तक वे सबसे खराब उपराष्ट्रपति लगते थे। उनके भीतर उसी तरह प्रेम उमड़ पड़ा है जैसे चार दिन पहले सत्ता पक्ष वालों के भीतर पप्पू यादव और कन्हैया कुमार के लिए उमड़ा था। एक ओर एक नई फिल्म (सैयारा ) को देख कर प्रेम के मारे लड़के लड़कियां सिनेमा हॉल में बेहोश हुए जा रहे हैं, तो दूसरी ओर विपक्षियों के प्रेम में हमारे नेतागण… वैज्ञानिक एक वैक्सीन इस प्रेम की भी बना दें तो देश का भला हो…
खैर! एक पचहत्तर वर्ष का व्यक्ति अस्वस्थ हो सकता है, यह मान लेने में कम से कम मुझे कोई दिक्कत नहीं। और मेरे इस मान लेने के अवगुण के कारण यदि आप मुझे बुद्धिहीन समझें, तो मुझे इसमें भी कोई परेशानी नहीं। बस इस संसार का कल्याण होता रहे…

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

Veerchhattisgarh

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