अद्भुत व्यक्तित्व हीरासिंह मरकाम : 8 वीं पढ़कर अध्यापक बने, LLB में रहे गोल्डमेडलिस्ट
14 जनवरी 1942 को तत्कालीन बिलासपुर जिले के तिवरता गांव के एक खेतिहर मजदूर किसान के यहां जन्मे जो अब कोरबा जिले के अंतर्गत आता है, दादा के नाम से प्रसिद्ध अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रमुख राजनेताओं में एक हीरासिंह मरकाम के 79 वर्ष की आयु में निधन के साथ ही प्रदेश की राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया, जल,जंगल, जमीन के उपासक को प्रकृति ने अपने में विलिन कर लिया। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में हीरा सिंह मरकाम पाली-तानाखार विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई।सन् 1952 में अपने गाँव से लगभग 40 किलोमीटर दूर सूरी गाँव के माध्यमिक विद्यालय में उन्होंने दाखिला लिया। 2 अगस्त 1960 को प्राइमरी स्कूल में शिक्षक के रूप में ग्राम रलिया में नियुक्ति हो गयी। अध्यापन के दौरान ही 1964 प्राइवेट छात्र के रूप में हायर सेकंडरी स्कूल की परीक्षा उन्होंने उत्तीर्ण की। फिर कटघोरा तहसील से 12 किलोमीटर दूर पोड़ी उपरोड़ा में प्राइमरी स्कूल के अध्यापक के रूप में वर्ष 1977 तक कार्यरत रहें। अपने शिक्षण कार्य के साथ अध्ययन दादा हीरासिंह मरकाम ने निरंतर जारी रखा।
जब 1978 में अपने गाँव तिवरता के प्राइमरी स्कूल में करवा लिया। फिर गाँव आकर सेकेंड ईयर और थर्ड ईयर की परीक्षा क्रमशः वर्ष 1979 और 1980 में उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से एम.ए. किया और फिर नौकरी के दौरान ही उन्होंने गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर से वर्ष 1984 में एलएलबी किया। जिसमें उनको गोल्ड मेडल मिला था।
80 के दशक में जब अनेक शिक्षकों को ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर प्रताड़ित करते हुए सीनियर अध्यापकों का डिमोशन भी किया जा रहा था। तब पहली बार उन्होंने शिक्षकों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और जिले के शिक्षा अधिकारी कुँवर बलवान सिंह के खिलाफ मोर्चा उन्होंने आंदोलन शुरु कर दिया। इस आंदोलन के साथ ही उनकी पहचान एक जुझारू नेता के रूप में जनमानस में बन चुकी थी। समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, बुराइयों के खिलाफ बड़े पैमाने पर बड़ी लड़ाई लड़कर जनता में चेतना लाने के लिए 2 अप्रैल 1980 को शिक्षक की नौकरी से त्यागपत्र देकर पाली- तानाखार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव में उन्होंने नामांकन दाखिल किया और निर्दलीय प्रत्याशी होने के बावजूद दूसरे स्थान पर रहे और इस तरह उनके राजनीतिक जीवन की यात्रा आरंभ हुई।
1985-86 में दूसरा चुनाव भाजपा प्रत्याशी के रूप में लड़कर वे पहली बार मध्य प्रदेश विधानसभा में पहुंचे। 1990 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का विरोध स्थानीय के बदले बाहरी व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाने पर किया और विद्रोह कर बागी प्रत्याशी के रूप में वर्ष 1990-91 में जांजगीर- चांपा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़े लेकिन हार का सामना करना पड़ा।
इसके बाद 13 जनवरी 1991 को स्वतंत्र रूप से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की घोषणा कर वर्ष 1995 में गोंडवाना गणतन्त्र पार्टी से विधानसभा मध्यावधि चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वर्ष 2003 के विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी से तीन विधायको दरबू सिंह उईके, राम गुलाम उईके और मनमोहन वट्टी ने जीत हासिल की।
आदिवासी समाज में जन-जागृती लाने समाज का मान-सम्मान गौरव अभीमान को जगाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर सादा जीवन जीने वाले गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी का जीवन सदा अनुकरणीय रहा है।
