भूपेंद्र सिंग : दीपावली और बामपंथ.. उजाले से डरने वाले अंधेरे के सौदागर
हर दीपावली पर जब पूरा भारत दीपों की उजास में नहाता है, तब कुछ चेहरे ऐसे भी होते हैं जिन्हें इस प्रकाश से असहजता होती है।
जो चाहते हैं कि यह उजाला फीका पड़ जाए, लोगों के चेहरे से मुस्कान मिट जाए।
परंतु यह देश बार-बार साबित करता है कि
अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, दीपक की लौ उससे कहीं अधिक दृढ़ होती है।
मुख्य आलेख: भूपेंद्र सिंग
पूरा बामपंथ चाहे वह राजनीति में हो, न्यायपालिका में, ब्यूरोक्रेसी में या एकेडेमिया में हर वर्ष यह कोशिश करता है कि दीपावली फीकी पड़ जाए,
लोग किसी तरह कम प्रसन्न हो सकें,
उनके जीवन में उत्साह और उत्सवधर्मिता का संचार न हो पाए।
लेकिन हर बार, हर वर्ष, यह प्रयास असफल हो जाता है।
क्योंकि इस देश की आत्मा उत्सव में बसती है।
लोगों में दीपावली को लेकर जो उमंग और लोकसहभाग बढ़ता जा रहा है,
वह इस बात का संकेत है कि भारत की चेतना जाग रही है।
वास्तविकता यह है कि बामपंथ मनुष्यता को खुश देखकर कभी सुखी नहीं हो सकता।
वह दुख देता है, दुख बेचता है, दुख खरीदता है।
दुख ही उसका व्यापार है, दुख ही उसका आधार।
परंतु समाज में जिस तरह से उत्सवधर्मिता बढ़ रही है, उससे स्पष्ट है कि
हिंदू समाज तमाम कलह, दुश्वारियों और विभिन्नताओं के बावजूद सकारात्मक दिशा में निरंतर अग्रसर है।
संभव है कि गति उतनी तीव्र न हो जितनी कुछ लोग अपेक्षा करते हैं,
परंतु दिशा बिल्कुल सटीक है।
इसलिए लक्ष्य तक पहुँचना निश्चित है बस समय का प्रश्न है।
यह ईश्वर की ही योजना है।
………….
★ जब समाज जड़ता से चैतन्यता की ओर बढ़ता है,
तब कश्मकश स्वाभाविक होती है।
★संवाद और विवाद दोनों ही जागृति के संकेत हैं,
न कि समस्या के।
हिंदू समाज के भीतर विभिन्न मत
वैदिक, श्रमण, आजीवक, पशुपालक, प्रकृति पूजक या नास्तिक
सभी अब्राहमिक मतों से इसलिए भिन्न हैं क्योंकि
इन सबमें असहमति का भी सम्मान है।
यही स्वतंत्र चिंतन इस भूमि की सबसे बड़ी देन है।
मनुष्य स्वतंत्र चिंतन के लिए बना है,
और जो नित्य नूतन है
सनातन होना उसकी नियति है।
