सुरेंद्र किशोर : हिन्दुस्तान का एकमात्र राज परिवार जो न तो…

चूंकि महाराणा के वंशज इसके लिए तैयार नहीं थे,इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें यह छूट दे दी थी।

किसी अन्य राजा-महाराजा को ऐसी छूट नहीं मिली थी।(-एम.ओ.मथाई लिखित पुस्तक ‘‘नेहरू के साथ तेरह वर्ष’’से)

महाराणा प्रताप की याद में
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हिन्दुस्तान का एकमात्र राज परिवार जो
न तो मुगलों के सामने झुका और न
ही ब्रिटिश शासकों के समक्ष
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‘‘प्रताप’’ के महान संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने अखबार में महाराणा प्रताप को इन शब्दों में श्रद्धांजलि दी थी —
‘‘ प्रताप !
हमारे देश का प्रताप !
हमारी जाति का प्रताप !
दृढ़ता और उदारता का प्रताप !
तू नहीं केवल तेरा यश और कीर्ति है।
जब तक यह देश है और जब तक तेरा संसार में दृढ़ता ,उदारता,स्वतंत्रता और तपस्या का आदर है ,तब तक हम क्षुद्र प्राणी ही नहीं, सारा संसार तुझे आदर की दृष्टि से देखेगा।
संसार के किसी भी देश में तू होता तो तेरी पूजा होती और तेरे नाम पर लोग अपने को न्यौछावर करते।
अमेरिका में होता तो वाशिंगटन और अब्राहम लिंकन से किसी तरह तेरी पूजा कम न होती।
इंगलैंड में होता तो वेलिंगटन और नेल्सन को तेरे सामने सिर झुकाना पड़ता।
स्काॅटलैंड में वालेस और राबर्ट तेरे साथी होते।
फं्रास में जोन आॅफ आर्क तेरे टक्कर की गिनी जाती और इटली तुझे मेजिनी के मुकाबले रखती।
लेकिन हां ! हम निर्बल भारतीय आत्माओं के पास है ही क्या जिससे हम तेरी पूजा करें और तेरे नाम की पवित्रता का अनुभव करें ?
…….ऐसे प्रताप के जन्म दिन हमारा शत शत प्रणाम।’’
(दैनिक जनसत्ता के 25 मई, 2001 के अंक में जुगल किशोर जैथलिया के लेख से )
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महाराणा प्रताप के वंशज की कहानी
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ब्रिटिश सरकार ने जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार (सन 1911) में हाजिर होने से सिर्फ महाराणा प्रताप के वंशज को छूट दी थी।
याद रहे कि सारे भारतीय राजाओं की यह मजबूरी होती थी कि वे ब्रिटिश किंग के सामने झुक कर उन्हें नजराना दें।
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चूंकि महाराणा के वंशज इसके लिए तैयार नहीं थे,इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें यह छूट दे दी थी।
किसी अन्य राजा-महाराजा को ऐसी छूट नहीं मिली थी।(-एम.ओ.मथाई लिखित पुस्तक ‘‘नेहरू के साथ तेरह वर्ष’’से)
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भारत की आजादी के बाद यह हुआ ?
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मध्यकाल के इतिहास लेखन के बारे में नेहरू युग के कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने नये इतिहास लेखकों को यह निदेश दिया था कि महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी के त्याग, वीरता आदि की चर्चा करते हुए इतिहास मत लिखो अन्यथा हिन्दू सांप्रदायिकता बढ़ेगी।
वह निदेश माना भी गया।
कुछ साल पहले पटना हाईकोर्ट के चर्चित वरीय वकील बसंत कुमार चैधरी ने अपने फेसबुक वाॅल पर उपर्युक्त बातें लिखी थीं।
चैधरी के अलावा भी अनेक लोग यह बताते रहे हैं कि समकालीन इतिहास लेखन के क्रम में बहुत सारी बातें छुपाई र्गइं और किसी की झूठी तारीफ भी की गई।
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जब मैं मथाई की किताब पढ़ रहा था तो मुझे लगा कि यह बात मैं पहली बार पढ़ रहा हूं जबकि मैंने इतिहास में आनर्स
की डिग्री हासिल की है।
खैर,इतिहासकार जो करें,पर
मैंने बचपन में गांवों में देखा था कि आम लोग
महाराणा प्रताप के बड़े- बड़े चित्र वाले कलेंडर अपने घरों में टांगते थे।
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देश के राजाओं के बीच महाराणा प्रताप और उनके वंशजों की प्रतिष्ठा को देखते हुए ही आजादी के बाद महाराणा के वंशज को
‘महाराज प्रमुख’ बनाया गया था जबकि बाकी राजे ‘राज प्रमुख’ ही बनाये गये थे।
याद रहे कि जयपुर अपेक्षाकृत बड़ा राज्य था।
पूर्व राजशाही वाले इलाकों में आजादी के तत्काल बाद बाद राज्यपाल के बदले पूर्व राजाओं को ही राज प्रमुख बना दिया गया था।
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भारत की आजादी के बाद तक भी कहीं किसी समारोह में राजस्थान के सभी राजा, महाराणा प्रताप के वंशज को शाष्टांग प्रणाम
करते थे।
सभी राजा, यानी सभी राजा !
पता नहीं, अब क्या स्थिति है ?
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यह सब क्यों हुआ ?
क्योंकि महाराणा प्रताप एक मात्र राजा थे जिन्होंने घास की रोटी भले खाई, किंतु बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।
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दूसरी ओर, नब्बे के दशक में तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री
अर्जुन सिंह ने मुगल सम्राट अकबर की 450 वीं जयंती धूमधाम से मनाने का काम शुरू कर दिया था।
किंतु कई हलकों से विरोध होने पर उन्हें समारोह को बीच में ही रोक देना पड़ा।एक तरफ मुसलमानों के एक हिस्से ने सरकार से कहा कि अकबर मुसलमानों में लोकप्रिय नहीं है।
इसलिए इसका कोई फायदा नहीं होगा।
याद रहे कि अकबर ने दीन ए इलाही धर्म चलाया था।
दूसरी ओर, दक्षिण भारत के लोग अकबर को हमलावर मानते हैं।
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ध्यान रहे कि शिक्षा मंत्री अर्जुन सिंह ने महाराणा प्रताप को किसी भी रूप में कभी याद किया हो,ऐसी कोई बात मेरी जानकारी में नहीं है।
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भई , मानना पड़ेगा।
ऐसे मामले में कांग्रेस की निरंतरता बनी हुई है।
उसी निरंतरता के तहत कांग्रेस तथा अन्य तथाकथित धर्म निरपेक्ष दल,जिनकी धर्म निरपेक्षता एकपक्षीय है, आज भी वही काम कर रहे हैं।
उनके ऐसे कदमों का सीधा लाभ भाजपा को मिलता रहा है।

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