कौशल सिखौला : अपने किसी नागरिक पर वे विदेश की धरती से टिप्पणी नहीं करेंगे.. अच्छा लगा सुनकर…
जो लोग देश की बात करने वालों को 50 साल पुरानी सोच वाला बताकर उनकी हँसी उड़ाते हैं , उन पर क्या टिप्पणी करें?
बेशक वे मोहब्बत की दुकानें खोलें या मोहब्बत का भरा पूरा मॉल ! मर्जी उनकी दिल दिमाग उनका !
कभी हिन्दू राष्ट्र की बातें करने वालों को लताडें या फिर हिन्दुत्व की चर्चा करने वालों को फटकारें , जैसा चाहें करें !
देश अब थोड़ा आगे बढ़ चला है !
सच्चा इतिहास सामने आ रहा है झूठ के पुलिंदे एक एक कर मटियामेट किए जा रहे हैं !
दौर तो नया है , इतना नया कि नफ़रत के बाजार चलाने वाले देश के भीतर घृणा की खेती कर रहे हैं और पश्चिम की धरती पर मोहब्बत की दुकान सजा रहे हैं !
अगला चुनाव कोई जीते कोई हारे कुछ फर्क पड़ता है क्या ? जी हां , फर्क पड़ता है । देश ने पैंसठ साल तक एक जैसी राजनीति देखी । लोगों को यदि लगता है कि वैचारिक परिवर्तन लाने वाली सरकार अब आई है तो इसे भी देख लीजिए । शायद लोगों को लगा होगा तभी तो 2014 और फिर 2019 में अपार बहुमत देकर इस सरकार को चुना ? संभवतः जनता ने उन्हें ही मोहब्बत के मकान वाला मान लिया हो । कोई बात नहीं , जनता चाहेगी तो अगली बार दुकान वालों को बैठा देगी ? जो कहना है कहिए पर कभी बेवजह राष्ट्रवाद और कभी बेवजह हिन्दुत्व को कोसने की क्या जरूरत है ?
अच्छा लगा विदेशमंत्री के बारे में एक समाचार पढ़कर। एस जयशंकर इस समय विदेश में हैं । मीडिया ने जब राहुल के बयानों पर प्रतिक्रिया चाही तो विदेश मंत्री चुप रहे । उन्होंने कहा जो देश से बाहर हैं वे हमारे नागरिक हैं । अपने किसी नागरिक पर वे विदेश की धरती से टिप्पणी नहीं करेंगे । अच्छा लगा सुनकर । राहुल कुछ भी बोलें , नागरिक तो वे भारत के ही रहेंगे।
यह उन पर है वे जो भी बोलें । लेकिन मुहब्बत की दुकान खोलने वाले विदेश की धरती पर अपने प्रधानमंत्री को तो नहीं कोस सकते । यूं , क्या फर्क पड़ जाएगा किसी के कोसने से? राहुल गांधी की सभाओं में जो भारतीय आ रहे हैं , वे सब जानते और समझते हैं । यदि एक लॉबी द्वारा चुन चुनकर भी लाए गए हों , लेकिन उन श्रोताओं की छाती में भी दिल तो हिन्दुस्तान का ही धड़कता है ?
कोई बात नहीं , लोग जानते हैं कि राहुल गांधी के पास खोने को अब कुछ नहीं बचा है । वे अगला चुनाव प्रधानमंत्री पद के लिए लड़ेंगे । हालांकि सांसदी लड़ने के लिए उनकी राह में कईं कानूनी अड़चनें विद्यमान हैं । अभी विपक्षी दलों की सर्वदलीय बैठक इसी माह पटना में होने जा रही है । नीतीश कुमार द्वारा बुलाई इस बैठक का असली मकसद खुद को भावी पीएम प्रत्याशी घोषित करना है ।
इस बैठक में भाग लेते हुए राहुल गांधी और खड़गे उनके नेतृत्व में लोकसभा जाने को तैयार होंगे ; असंभव ही नहीं , नामुमकिन है । सब जानते हैं कि सोनिया गांधी की कांग्रेस लोगों को अपने पीछे खड़ा करना चाहती है , किसी के पीछे खड़ा होना नहीं । अच्छी बात है कि विदेशी धरती पर राहुल गांधी को सुनने के लिए भारतीय आ रहे है । उनकी मुहब्बत की दुकान यदि विदेशों में खुल गई तो भारत में भी खुल सकती है । उन्हें अपनी विचारधारा लोगों के बीच रखनी चाहिए । तकाजा यही है कि मुहब्बत की दुकान वास्तव में मुहब्बत बेचे , नफरत नहीं ।