सर्वेश तिवारी श्रीमुख : गेरबाज

विद्यालय के दिनों के एक मित्र हैं। तब बहुत प्यारे व्यक्ति थे भाईसाहब, हमारी अच्छी बनती थी। हम सब साथ पढ़ते थे, साथ क्रिकेट खेलते थे, कई बार साथ ही सिनेमा देखने भी गए होंगे… कुल मिला कर बात यह अच्छी दोस्ती थी।
वे हमलोगों की मंडली के सबसे सुंदर युवक थे। छ फिट का शरीर, गोरा रंग, सुंदर चेहरा… पर एक कमी थी उनमें, वे बोलते समय हकलाते थे। उनका हकलाना हम सब के लिए सामान्य बात ही थी , उसके कारण हमने कभी उन्हें अपने से अलग नहीं माना। हाँ, यह जरूर था कि हकलाने के कारण हम सब ने अनेकों बार उन्हें चिढ़ाया… तब उम्र कम थी, समझ कम थी, हम सब को लगता था कि जैसे किसी अन्य बात पर सभी एक दूसरे को छेड़ते रहते हैं, उसी तरह यह भी… वे भी इसे सहज भाव से ही स्वीकार करते दिखते थे।


खैर! समय बिता और मित्र हम सब से दूर होते चले गए। बाकी सभी दोस्त एक दूसरे से मिलते रहते हैं पर वे किसी से नहीं मिलते। सबका जीवन इतना तेज भाग रहा है कि कोई अब मुड़ कर देखता भी नहीं। कोई किसी को ढूंढता भी नहीं…
पिछले दिनों एक पुस्तक पढ़ी, भगवंत अनमोल की गेरबाज! पढ़ने के बाद समझ आया कि मित्र हम सब से दूर क्यों हुए थे।
किसी व्यक्ति की शारीरिक कमजोरी पर मजाक उड़ाते समय हम समझ ही नहीं पाते कि हमारा मजाक उसे अन्दर ही अन्दर कितना तोड़ रहा होता है। हमें लगता है कि यह एक मिनट का मनोरंजन है, वह व्यक्ति भी हँस कर हमारा साथ निभा देता है, पर यह मजाक उसे लगातार कमजोर करता जाता है। बचपन के दिनों में वह इसे सह भी ले, पर जैसे जैसे उसकी आयु बढ़ती है, चोट का असर भी बढ़ता जाता है। उसका आत्मविश्वास गिरता जाता है, वह लोगों से कटता जाता है।
भगवंत ने यह पुस्तक हकलाने वाले लोगों के संघर्ष को केंद्र में रख कर लिखी है और क्या खूब लिखी है। विषय जटिल होने के बावजूद वे अपनी बात कह देने में सफल रहे हैं, इसी कारण पुस्तक भी पाठक पर अपना प्रभाव छोड़ देती है।
भगवंत अनमोल नई पीढ़ी के चर्चित लेखकों में से हैं। उन्हें साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिल चुका है, उनकी किताब किसी विश्वविद्यालय में सिलेबस में भी है।
मैंने दर्जनों लोगों को यह किताब सुझाई होगी। मुझे लगता है कि यह किताब पढ़ी जानी चाहिए। यदि आप पुस्तकों के नियमित पाठक हैं तो गेरबाज भी पढ़ लीजिये।

Veerchhattisgarh

सर्वेश तिवारी
गोपालगंज, बिहार।

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