डॉ. भूपेन्द्र सिंह : वह केवल पहले और आख़िरी.. मोदी न दूसरे श्रीमंत बाजीराव न शिवाजी न महाराणा प्रताप हैं…

नरेंद्र मोदी न दूसरे श्रीमंत बाजीराव हैं, न दूसरे छत्रपति शिवाजी हैं, न दूसरे महाराणा प्रताप जी हैं, वह केवल पहले और आख़िरी नरेंद्र मोदी हैं।
मैंने पहले भी कहा है और आज फिर से कह रहा हूँ कि 2030 आते आते नरेंद्र मोदी एक ऐसे स्तर पर पहुँचेंगे जहां उनकी पूजा होगी, वह हनुमान जी की भाँति केवल अपने सेवा, भक्ति और दृढ़ संकल्प के बलबूते लोगों के मन मंदिर के साथ ही वास्तविक देव स्थानों में विराजमान होंगे।


कल जब उन्होंने शेर की तरह दहाड़ते हुए कहा कि मेरे राम आ गये, वह एक ऐसा क्षण है जिसने नरेंद्र मोदी को भारत के इतिहास में सदा सदा के लिए अमर और उज्ज्वल कर दिया। यह नरेंद्र मोदी का ही करिश्मा है, जादू है, विश्वास हैं कि वह कोरोना के विकट दौर में चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों के सम्मान में ताली और थाली बजाने को कहते हैं तो वह भी पूरे राष्ट्र में एक त्योहार बन जाता है और कल और आज का माहौल इस देश में किसी भी होली दीपावली से कम नहीं अपितु उससे बढ़कर है। विचार, दर्शन, वाद, पार्टी, दल, क्षेत्र, भाषा और देश की सीमा को तोड़कर प्रत्येक हिंदू जिसके अंदर जरा सा भी हिंदूभाव है भावुक है, प्रसन्न है, अश्रुपूरित नेत्र से युक्त है। राम मंदिर का यह पुनर्निर्माण भारत हिंदू राष्ट्र का पुनर्निर्माण ही नहीं बल्कि इसके भविष्य के भव्यता का एक इशारा है। पूरा देश राममय है, पूरा देश नरेंद्र मोदी के लिए कृतज्ञ है। बहुत लोग भिन्न भिन्न कारणों, पूर्वाग्रहों, बाध्यताओं, मान्यताओं से भले न व्यक्त कर पायें पर वह जानते हैं कि यह दिन नरेंद्र मोदी के प्रताप से देखने को मिला है।


जब मैं नरेंद्र मोदी कहता हूँ तो वह केवल एक व्यक्ति नहीं है, वह एक विचार है, एक प्रतिनिधि है, एक व्यक्तित्व है जो उन सभी कोटि कोटि कंठों का आवाज़ है जो कई पीढ़ी से यह भाव जगाने में लगे थे कि हिंदू होना गर्व का विषय है, हिंदू होना सौभाग्यशाली है। हम में कमियाँ हैं, त्रुटियाँ हैं, पर हम उसका समाधान खोजने में सक्षम हैं, हम आत्मावलोकन करके आगे बढ़ने वाले लोग हैं। यह भाव जगाने एवं हिंदुओं में स्वाभिमान भरने के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के उमंग, उत्साह, विचार और क्रियान्वयन के प्रतीक नरेंद्र मोदी हैं।
राम यदि कण कण में विराजमान हैं तो वर्तमान में नरेंद्र मोदी जन जन में विराजमान हैं। शायद इसीलिए भगवान राम ने उनको ही इस कार्य के लिए चुना।
भगवान राम के मंदिर को बाबर ने इसलिए नहीं तोड़ा कि वह हिंदुओं का मंदिर था, उसमें ब्राह्मणों द्वारा पूजा की जा रही थी। वह कबीरपंथियों का होता तो भी तोड़ा जाता, वह बौद्धों का होता तो भी तोड़ा जाता, वह जैनियों का होता तो भी तोड़ा जाता। वह इसलिए तोड़ा गया क्यूँकि वह भारतीय समाज के आस्था और अस्मिता का प्रतीक था। उसमें सब विचार, दर्शन और मत के लोग शामिल हैं। उसका टूटना भारतीयता को कुचलना था, उसका टूटना हमारे अस्मिता को एक लुटेरे द्वारा अपने जूते से रगड़ना था। इसका बन जाना इसी प्रकार से किसी एक विशेष मत, जाति, व्यक्ति, संगठन, विचार का उठ खड़ा हो जाना नहीं है अपितु ये हमारे भारतीयता की जीत हैं, हमारे अस्मिता की जीत है, हमारे जिजीविषा की जीत है। इसे किसी संप्रदाय, विचार, दर्शन, समूह अथवा जाति से नहीं जोड़ा जा सकता।
दुनिया के इतिहास में यह प्रथम घटना है जब किसी सेमिटिक मज़हब द्वारा तोड़े गये श्रद्धा केंद्र को किसी पूर्व की संस्कृति ने फिर से पूरे शानों शौक़त से प्राप्त कर लिया हो। यह पूरे संसार की उन सभी विलुप्त, दबी कुचली, भूली बिसरी गई भिन्न भिन्न संस्कृतियों के प्रति एक श्रद्धांजलि है जिन्हें इन सेमिटिक मज़हबों ने निगल लिया, जिनको समाप्त करके इस संसार के विविधता रूपी सुंदरता को इन्होंने निगल लिया।
इस मंदिर को राष्ट्र मंदिर नहीं, विश्व मंदिर कहिए, इस प्रतिमा को केवल एक विग्रह नहीं समझा जाना चाहिए, इसे उस संकल्प का प्रतीक समझा जाना चाहिए जिसमें एक ठुकराई हुई, हारी हुई संस्कृति जब अपने भीतर के विभेद को समाप्त करती है तो वह कुछ भी कर पाने में संभव हो जाती है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण हमें बहुत कुछ सिखाता भी है और सबसे महत्वपूर्ण ये कि जब जब हम अपने अपने अहंकार में, अपने अपने स्वार्थ में एक दूसरे को छोटा बड़ा दिखाने की कोशिश करेंगे तब तब हम दूरदृष्टि से न तो अपना स्वार्थ पूर्ण कर पायेंगे और न ही धर्म। प्रत्येक को अपना मानना होगा, प्रत्येक को अपने बराबर का मानना होगा, प्रत्येक के लिए सम्मान उत्पन्न करना होगा, प्रत्येक के साथ वैसा ही व्यवहार करना होगा जैसा हम स्वयं के लिए चाहते हैं। इस धरती से उत्पन्न प्रत्येक मत, पंथ, संप्रदाय के लिए सम्मान का भाव उत्पन्न करना होगा। समाज में कोई ऊच नीच हो जाय तो प्रतिशोध के बजाय ज़िम्मेदारी का भाव लाना होगा। समरस और समदर्शी हिंदुत्व की स्थापना करनी होगी। हमारी दिशा सही है लेकिन अपना वेग बढ़ाना होगा। सोच सही है पर क्रियान्वयन तेज करना होगा।
आप सभी को इस अवसर पर हार्दिक शुभकामना।

डॉ. भूपेन्द्र सिंह
लोकसंस्कृति विज्ञानी

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