सतीश चंद्र मिश्र : दही समझ के चूना चाट गई तिकड़ी.. विनाशकाले विपरीत बुद्धि…

न्यूज चैनलों के सर्वे के मुंगेरीलाल सरीखे सपनों के बिल्कुल विपरीत पश्चिमी उत्तरप्रदेश से आ रहीं जमीनी सच्चाई की खबरों के संकेत सपाई खेमे के लिए कतई शुभ नहीं हैं। पुर्वांचल में बह रही भाजपाई बयार की सत्यता पर आरपीएन सिंह की एंट्री ने भी मुहर लगा दी है। भाजपा से भाग कर सपाई अड्डे पहुंची स्वामी, धर्म सिंह, दारा की तिकड़ी अब अपने फैसले को निश्चित रूप से कोस रही होगी।

जिस सीट से अपने बेटे को टिकट देने की जिद्द पूरी नहीं होने पर स्वामीप्रसाद ने भाजपा से भागकर समाजवादी अड्डे में शरण ली थी, उस सीट से स्वामीप्रसाद के बेटे को अखिलेश यादव ने भी टिकट नहीं दिया है और बाद में एमएलसी बनाने का झुनझुना थमा दिया है।

“ना नौ मन तेल होगा, ना राधा नाचेगी” की तर्ज पर यह वायदा भी पूरा नहीं होना है क्योंकि सपा के इतने एमएलए ही नहीं होंगे कि एमएलसी की सीटें खैरात में बंटे।

आज आरपीएन सिंह के भाजपा में शामिल होने के बाद स्वामीप्रसाद को यह भी समझ में आ गया है कि उसके लिए पड़रौना से खुद अपना चुनाव जीतना भी लोहे के चने चबाने के समान ही सिद्ध होने जा रहा है। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि स्वामीप्रसाद को यह समझ में आ चुका होगा कि दही समझ के चूना चाटने की गलती उससे हो चुकी है।

नकुड़ सीट से सपा का टिकट नहीं दिए जाने पर तिलमिलाए बिलबिलाए इमरान मसूद का वह वीडियो भी वायरल हो ही रहा है जिसमें अखिलेश यादव को वो जमकर कोसते गरियाते हुए दिखायी दे रहा है। कट्टरपंथ वाले वोटबैंक के जिन सपाई वोटों के सहारे चुनाव जीतने के हथकंडे के दम पर धर्म सिंह सपाई खेमे में पहुंच गया था, उस कट्टरपंथी वोटबैंक पर इमरान मसूद का वर्चस्व कोई रहस्य नहीं है। कोई राजनीतिक अनपढ़ भी आसानी से यह अनुमान लगा सकता है कि धर्मसिंह को धूल चटवाने में इमरान मसूद कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेगा। यह पूरा घटनाक्रम भी संदेश दे रहा है कि दही समझ के चूना चाटने की गलती धर्मसिंह से हो चुकी है।

दलबदल की सियासी शतरंज के तीसरे मोहरे दारा सिंह को भी पूर्वांचल में सपा के लिए बह रही पछुआ हवा का अहसास हो चुका है। भाजपा प्रत्याशी का नाम सामने आने के बाद “दही समझ के चूना चाटने” की अपनी गलती का पछतावा दारा को भी निश्चित रूप से हो जाएगा।

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