बदला तो काफी कुछ है..बशर्ते देखना चाहें तो.. समर्थ भारत/ जयराम शुक्ल
लालकिले की प्राचीर पर पंद्रह अगस्त को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार सातवीं बार तिरंगा ध्वज फहरा रहे थे तब ऐसा लग रहा था मानो विश्व के समक्ष भारत अपने उन्नत भाल के साथ समर्थ और सामर्थ्य का संदेश दे रहा है..। भारत अब 1962 के बाद का ..जरा आँख में भर लो पानी वाला नहीं रहा..। बहत्ततर साल बाद वह दुश्मन को खून के आँसू रुलाने वाला बन चुका है।
इन सात वर्षों में सत्तर साल के उस व्यक्ति ने यह करके दिखाया है जिसे 2014 से पहले राजनीतिक तौर पर अछूत बनाए रखने की हरचंद कोशिशें की गईं। यह वही व्यक्ति है जिसे विरोधी दल के नेताओं, वामपंथी बौद्धिकों ने..मैंन ईटर, खून का सौदागर जैसी उपाधियां दीं थी। 2014 के पहले का यह वही ‘अछूत’ नेता है जिसे अमेरिका ने वीसा देने से मना किया।
समय कब 360 डिग्री में घूम जाए यह नियति के साथ पौरुष पर भी निर्भर करता है। कालचक्र घूमकर कहाँ से कहाँ पहुंच गया। अछूत बनाने वाले स्वयं अछूत से हो गए। जिन्होंने बिहार में रामंदिर यात्रा का रथ रोककर उसके सारथी को गिरफ्तार किया था..वे आज खुद गिरफ्तार होकर जेल में हैं। जिन्होंने श्रद्धालु कारसेवकों पर गोलियां चलवाकर अयोध्या की गलियों को भक्तों के रक्त से सींचा था वे आज वेंटीलेटर पर पड़े-पड़े दवा की गोलियां खा रहे हैं। राममंदिर के रूप में देश के स्वाभिमान की पुनर्प्राणप्रिष्ठा का पथ प्रशस्त हो चुका है।
जिन्होंने अमेरिका प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी वही आज वहां ‘हाऊडीमोदी’ जैसे चकाचौंध भरे आयोजन रच रहे हैं। वही ह्वाइटहाउस में स्वागत के लिए लालकालीन बिछा रहे हैं। भगवान पुरुषार्थ का साथ देता है..और यह पुरुषार्थ स्वयं को समाज व राष्ट्र हित की बलिवेदी पर होम करने वाले की आकांक्षियों में ही पल्लवित होता है। इसलिए आज जरूरी हो जाता कि है बहत्तर साल बनाम सात साल की बहस को केंद्र में रखा जाए..ताकि इसकी पृष्ठभूमि पर खड़े होकर हम देश के भविष्य का खाका रेखांकित कर सकें।
यह सही है कि मोदी 2.0 के एक साल पूरा होने का जश्न करोना खा गया। कुलजमा छह सालों में यह छठवां साल व सातवें का आरंभ धमाके का रहा। ऐसे काम हुए जो युगांतरकारी हैं। कोई सोच भी नहीं सकता था कि कश्मीर का मसला यूँ चुटकियों में सुलझ जाएगा। अलगाववादी आतंकियों की क्या कहें, अपनों से ही धमकियां मिल रहीं थी कि 370 छुआ तो खून का दरिया बह निकलेगा। लो 370 को तोड़ भी दिया, मरोड़ भी दिया और पाक के कब्जे वाले हिस्से को भी लेने कूँच कर चुके हैं। सरकार के खर्चे पर चिकन-बिरियानी खाकर देश को गरियाने वाले हुर्रियत के नेताओं की भी अकल ठिकाने आ गई।
राममंदिर का रास्ता सर्वोच्च न्यायालय ने खोल दिया। तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले इस बात को लेकर दुखी हो गए कि इसके बाद भी कुछ क्यों नहीं हुआ। कमाल है कि ‘वे’ लोग भी राजी हो गए। और अंततः 5 अगस्त 15 अगस्त की भाँति स्वर्णिम अध्याय के तौर पर इतिहास में दर्ज हो गया।
इन दो झटकों से सन्न पड़े सियासी सूरमाओं और जेएनयू छाप बुद्धिभक्षियों ने सीएए, एनआरसी पर काँटा फँसा दिया। देश खैरातगाह न बने, घुसपैठिए यहां के नागरिकों का हक न मार पाएं इस वास्ते यह कानून संसद से पास हुआ था। लेकिन इसबार काफी उन लोगों ने सोचविचार कर व्यूहरचना हुई। तीन तलाक के नरक से निकाली गईं उन बेबस महिलाओं को सीएए के काँटे में फँसाकर शाहीनबाग सजा दिया। यहां की दियाबत्ती बुझने ही वाली थी कि करोना आ गया।
अब जरा मोदी 1.0 की ओर मुड़कर देखें। इस एक साल के अलावा उन पाँच सालों में क्या..क्या बदला जिसने हमारी जिंदगी को करीब से छुआ..। घुमाफिरा कर आँकड़ों में उलझने और उलझाने से पहले ये छोटे-छोटे चार सच्चे किस्से, फिर आगे की बात..।
मेरे पड़ोस में एक इंजीनियर साहब हैं। हाल ही में उन्हें एक निर्माण परियोजना की नई साइट मिली है उसका बजट अरबों में है। मैंने यूँ हीं बधाई दे दी भई-अब तो तुम्हारी चाँदी कटेगी, वे खुश होने की बजाय मायूसी के साथ बोले- भैय्या वे दिन अब हवा हो गए जब वाकई चाँदी कटा करती थी…अब तो कुछ रहा नहीं..। मजदूरी सीधे उनके खाते में, नाप-जोख पेमेन्ट सब डिजिटलाइज। ट्रेजरी से सीधे खाते में पेमेंट। अपने हाथ कुछ बचा नहीं.. ऊपर से तीसरी आँख की नजर। मैने अफसोस व्यक्त करते हुए दिलासा दी ये तो वाकई पेट पर लात मारने जैसी बात हुई..।
क्या आपको भी नहीं लगता कि इस डिजिटल इंडिया में भ्रष्टाचार करने में कुछ मुश्किलें तो बढ़ी हैं?
एक दिन मोहल्ले की किराना दूकान वाले भाई साहब ने जोरदार वाकया बताया। उनके ज्यादातर ग्राहक मोहल्ले के लेबर-मजदूर हैं। एक दिन मिस्त्रीगीरी करने वाले एक ग्राहक से यूँ ही मजाक में कह दिया- मिस्त्रीजी अब तो बस करों घर में पहले से ही कई चहक रहे हैं और फिर नए का नंबर लगा दिया। मिस्त्री बमक पड़ा- देखो महराज जब सरकारइ ने सब थाम रखा है तो आपकी छाती में नाहक दर्द क्यों? बच्चा पेट में आया तो गोद भराई का रुपया। तकलीफ हुई तो जननी प्रसव योजना। फिर पैदा हुआ तो दवाई और जचकी का खर्चा। खेलने-खाने के लिए आँगनवाड़ी। लड़की हुई तो लाड़ली लक्ष्मी का फिक्स डिपाजिट। लड़का हुआ तो पढ़ने से लेकर पोषक, किताब ऊपर से वजीफा। कहे की चिंता.. दिन में सात सौ कमाता हूं, एक दिन की कमाई में माहभर का राशन। आज झुग्गी है कल प्रधानमंत्री आवास में शिफ्ट होंगे। महराज चिंता मत करिए मजे ही मजे हैं। आप तो सिर्फ़ अपनी ग्रहकी देखिए पिछली कोई उधारी हो तो बताइए..।
क्या आपको नहीं लगता की सामाजिक सुरक्षा और अंत्योदय कल्याण की दिशा में सरकार के प्रति विश्वास और मजबूत हुआ है..?
पिछले साल मेरे प्रोफेसर मित्र ने बेटे को बारहवीं में फर्स्ट आने पर नई बुल्लेट का तोहफा दिया। मैंने पूछा- पेट्रोल-डीजल की इतनी कड़की पर भी बेटे को बाइक वह भी बुल्लेट..! वे बोले आखिर कमाता किसके लिए हूँ। डेढ़ लाख महीने मिलते हैं मियां-बीबी और एक बेटा-बेटी। तब स्कूटर मेंटेन करना मुश्किल था, आज कार से जाते हैं। रही बात मँहगाई की तो उसे माँल्स में, पब में, दारू घर अहाते में, जूलरी की दुकानों में, आटो डीलर्स के शो रूम्स में जाकर देख सकते हैं। वहां नहीं तो हर दूसरे हाँथ में नए वर्जन के एंन्ड्रायड मोबाइल। देखों न वेतन कहाँ से कहाँ पहुँच गया, चपरासी भी चालीस पार। कमाई है तभी न महगाई है। ये सब राजनीति के चोंचले हैं। दुनिया बदल रही है। यार कहाँ पड़े हैं अभी वहीं के वहीं।
क्या आप अब भी नहीं मानते कि देश के नागरिकों की क्रयशक्ति दुगुनी-तिगुनी-चौगुनी हुई है..?
मेरे सहकर्मी के छोटे भाई की कंपनी को उसके मल्टीनेशनल स्पोंसर ने बेस्ट स्टार्टअप कंपनी का सम्मान दिया, वह भी हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में आमंत्रित करके। तीन साल पहले अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर छोटी पूँजी के साथ काम शुरू किया था। आज 20 करोड़ रुपए सालाना टर्नओवर है. बीस-पच्चीस कर्मचारी हैं। काम आगे बढ़ नहीं दौड़ रहा है। मेरे सहकर्मी आज दफ्तर में यह खुशी बाँटते हुए वहीं लोकप्रिय उक्ति सुना रहे थे “जिन खोजा तिन पाइंया गहरे पानी पैठ”।
अब तो मानेंगे कि प्रधानमंत्री की स्टार्टअप-स्टैंडअप योजना ने बेरोजगारी के खिलाफ नया उत्साह जगाया है.।
ये चारों वाकये गढ़े हुए नहीं हैं यकीन न हो तो आके तस्दीक़ कर सकते हैं।
गिलास आधी भरी है, या आधी खाली यह देखने का नजरिया आपका है। ऐसे ही कई उदाहरण आप अपने इर्द-गिर्द देख सकते हैं। दरअसल हमारा नजरिया अपने विवेक से ज्यादा थोपे हुए विचारों से बनता है, इसलिए किसी को गिलास आधा भरा हुआ दिखता है, किसी को सिर्फ आधा खाली।
नरेन्द्र मोदी की सरकार में इन छह वर्षों में काफी कुछ बदला है, हर क्षेत्र में..। अपने देश की सूरत भी और सीरत भी। असंतुष्ट होना हमारी स्थाई भाव है और विकास की भूख का बढ़ते जाना हमारा नागरिक धर्म। ये दोनों तत्व राजसत्ताओं को सुस्ताने नहीं देते। यदि ये न होते तो आज हम सेटेलाइट और डिजिटल युग तक कैसे पहुंच पाते।
छह साल पहले जब मोदी सरकार के एक साल पूरे हुए थे तब एक वैचारिक पत्रिका चरैवेति का संपादन करते हुए मोदी सरकार पर केंद्रित एक विशेषांक निकाला था “बेमिसाल एक साल”। यह पंच लाइन सालभर खूब चली। अब साल दर साल जुड़ती चली आ रही है। पहला साल बेमिसाल इसलिए नहीं था कि कोई उपलब्धि हाथ लग गई थी। वह एक साल इसलिए बेमिसाल था क्यों इस अवधि में नए भारत की ठोस रूपरेखा तैयार की गई थी, फौलादी संकल्प के साथ। जी हाँ फौलादी संकल्प..! आगे के छह सालों में उन्हें देश ने यथार्थ रूप में परणित होते देखा।
आँकड़ों के मकड़जाल से अलग हटकर देखें तो भी नंगी आँखों से काफी कुछ दिखता है। गांधी को समर्पित स्वच्छ भारत का जो अनुष्ठान शुरू हुआ यह उसका ही प्रताप है कि दुनिया के कई देशों के महापौर अपने प्रदेश के इंदौर शहर को देखने पहुंचे। हम जिस शहर में रह रहे हैं ईमानदारी से इसका आँकलन करिए तो पाएंगे कि हमारे परिवेश और पर्यावास में अमूलचूल परिवर्तन आया है। कहीं कम और कहीं ज्यादा हो सकता है क्योंकि कि काम करने वाले हमारे ही अपने हैं जो कभी अराजकता के गटरतंत्र के हिस्सा रहे हैं।
स्वच्छ भारत ही स्वस्थ्य भारत बना सकता है। तीन चौथाई बीमारियों की वजह वही सँडाध है जहाँ दस फीसद प्रभुवर्ग से अलग शेष नब्बे फीसद भारत रहता है। मोदीजी ने इस योजना को उन महात्मा गांधी के चरणोंमें समर्पित की जिनके नाम को पिछले साठ सालों से कापी राइट की तरह इस्तेमाल करते हुए राजपाट चलाया जा रहा था।
इन छह सालों में मोदी सरकार किसी मंत्री पर किसी बड़े या छोटे घोटाले का लाँछन नहीं लगा। क्या यह कम उपलब्धि है। जो एक रुपया दिल्ली से चलकर दस पैसे में परिवर्तित होकर गांव पहुंचता था यदि सड़क संरचनाओं और केंद्र की ग्रामीण योजनाओं को देखें तो लगेगा कि कम से कम साठ से सत्तर तक तो पहुंचता ही है। डिजिटलाइजेशन ने सब्सिडी के फर्जीवाड़े को न सिर्फ़ रोका ऐसे लाखों-लाख भूत-प्रेतों को भी पकड़कर ठिकाने लगाया जिनके नाम से गरीबों का हक मारा जा रहा था। फर्जी मस्टर और भूत-प्रेतों की मजूरी में काफी कुछ अंकुश लगा है। भ्रष्टाचार का असाध्य कोढ़ भला इतना जल्दी कहां ठीक होता है।
छह साल साल पहले तक हम दुनिया के मंचों में रिरियाते फिरते थे कि यहां पाकिस्तान घुसा वहां चीन ने अतिक्रमण किया.. हाय हाय कोई मेरी सुने। और अब ये दोनों दुनिया के मंच में वही कर रहे हैं क्या ये बदलाव नहीं दिखा..? आज दुनिया के बड़े से बड़े देश हमारी आर्थिक और सामरिक ताकत की नोटिस लेते हैं। क्या ये बदलाव हमें गर्वोन्नत नहीं करता? और भी बहुत से तथ्य हैं लेकिन वे तभी दिखेंगे जब आप निर्पेक्ष भाव से देखना चाहें।
और अंत में इन छह सालों में नरेन्द्र मोदी की कर्मठता व राष्ट्रनिष्ठा पर वह भी अँगुली उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है जिसकी सुबह मोदी की लानत से शुरू होती है और रात की नींद मोदी की मलानत के साथ।
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