डॉ. पवन विजय : हिंदू सभ्यता के सर्वोच्च प्रतीक ‘राम’ ही क्यों है और क्यों…

 ‘ हिंदू सभ्यता के सर्वोच्च प्रतीक ‘राम’ ही क्यों है और क्यों ‘राम’ नाम इस राष्ट्र की आत्मा में बसा हुआ है।

 

Veerchhattisgarh

नई दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो पर था।

एक पुरुष अपनी ढाई तीन साल की साल की बच्ची को गोद में उठाए आगे चल रहा था। बच्ची अपने पिता के कंधे पर सिर रख कर सो रही थी। पुरुष के पीछे  उसकी स्त्री एक बूढ़ी महिला का हाथ पकड़े लगभग उसे अपने ऊपर लादे हुए चल रही थी। परिवार कपड़े लत्ते से निम्न मध्यमवर्ग का लगता था। प्लेटफॉर्म आने के बाद पता चला मेट्रो  आने में पांच मिनट लगेंगे, महिला की आवाज सुनाई दी, “पानी पिहो अम्मा?”

“हां तनक पिलाए द बिटिया।”

महिला ने थरमस निकाला और पीतल की छोटी सी गिलास में वृद्धा को पानी पिला कर मुंह पोंछ दिया। वृद्धा वहीं बेंच पर बैठ गई लेकिन स्त्री का हाथ पकड़े रही।

मेट्रो आ गई।

बालिका जाग गई थी लेकिन मेट्रो देखते ही वह अपने पिता के गले से पुनः लिपट गई इधर स्त्री ने वृद्धा के दोनों कंधे थपथपाए, “अम्मा मेट्रो आय गै, उठो।”

महिला, वृद्धा को उठाकर लाइन में खड़ी हो गई। आगे पुरुष बालिका को गोद लिए, बीच में वृद्ध को पीछे से पकड़े हुए स्त्री। वे लोग मेट्रो के अंदर चले गए ।

मेट्रो में भीड़ थी, पुरुष समान लिए खड़ा रहा स्त्री और वृद्धा बैठ गए, स्त्री ने बालिका को गोद में बिठा लिया लेकिन वृद्धा का हाथ पकड़े रही।

मैं पुरुष के बगल में खड़ा था।  वह बार बार टिकट निकालता  फिर फोन देखता फिर अपनी पत्नी से कुछ कहता…. थोड़ा परेशान देखकर मैने पुरुष से पूछा कि कोई समस्या है क्या?

उसने बताया कि पहली बार हवाई जहाज में जा रहे, एजेंट ने वहां तीन घंटे पहले पहुंचने के लिए कहा था, थोड़ा लेट हो रहे।

मैंने टिकट देखा और उन्हें निश्चिंत किया कि दो ढाई घंटे पहले भी पहुंचेंगे तो भी कोई दिक्कत नहीं, तीन घंटे का स्टैंडर्ड टाइम दिया रहता है।

टिकट अयोध्या जी का था। मैंने पुरुष से थोड़ी बात करनी चाही।

“अयोध्या जी जा रहे हैं?” मैने पूछा।

“हां, पत्नी और अम्मा का बड़ा मन था मेरा भी। एक साल से तैयारी कर रहे थे।”

मैं समझ गया वह फ्लाइट फेयर की तरफ संकेत कर रहा था।

“ट्रेन से क्यों नहीं गए?”, मैने पूछा।

“पत्नी की जिद थी कि अम्मा को जहाज से लेकर जाना है, पुष्पक बिमान जैसे अयोध्या जी में उतरा था वैसे।”, पुरुष बोला और अपनी पत्नी को देखते हुए सगर्व मुस्कुराया.

“आपकी पत्नी माताजी की बहुत सेवा करती हैं।”

“हां, मुझसे कहीं अधिक।” उसके इन शब्दों में स्नेह, अधिकार, श्रद्धा, विश्वास के असीम भाव छलक रहे थे।

 

वृद्धा और बालिका गौरैया के बच्चे जैसे महिला को दोनों ओर से घेर कर बैठे थे। महिला के दोनों हाथ बालिका और वृद्धा पर थे।

वृद्धा की आंखों में महिला के लिए अपार स्नेह भरा था।

मैंने पहले सोचा कि शायद यह महिला की मां होगी लेकिन वह उसके पति की मां थी।

मेरा स्टेशन आने वाला था। मैंने पुरुष को प्रणाम किया और कहा अयोध्या जी को मेरा भी प्रणाम कहिएगा,  फिर माता जी से राम राम किया उन्होंने एक हाथ उठा दिया।

परिवार ही  प्रेम, धर्म, भारतीयता, सेवा और आनंद का आधार है। यह परिवार देखकर लगा मैंने पुण्य कमा लिया।

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राम आज भी हैं, अयोध्या तो प्रतीक है।

जहां भी ऐसी बहू है वहां सीता हैं और जहाँ ऐसे पुत्र हैं वहीं राम हैं।

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