सतीश चंद्र मिश्र : उतरती जाए है रुख से नकाब आहिस्ता आहिस्ता…
किस की नकाब कैसे उतर रही है इस पर बात करने से पहले यह स्पष्ट कर दूं कि… आज मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं, प्रसन्न हूँ क्योंकि आज से ठीक डेढ़ महीने पहले मैं जो चाह रहा था, कह रहा था। भाजपा ने आज शुरुआत उसी रणनीति के साथ की है।
पहले दूसरे चरण की 105 सीटों पर अपने 83 सिटिंग विधायकों में से 21 (25%) का टिकट भाजपा ने काट दिया है। 8 सीटों पर नामों की घोषणा अभी होनी है। उस घोषणा के साथ कटे हुए टिकटों का प्रतिशत और बढ़ जाएगा।
अब बात खिसक रही नकाब की…
अखिलेश यादव ने कहा कि अब भाजपा से आने वाले किसी विधायक या मंत्री को हम टिकट नहीं देंगे। अखिलेश की यह खिसियाई घोषणा सुन कर हंसी आ गयी। पहले तो अखिलेश, विशेषकर वो स्वामीप्रसाद जमीन से दो-दो फुट उछलते हुए दावा कर रहा था कि अब भाजपा छोड़कर आने वाले दर्जनों विधायकों, मंत्रियों की भीड़ 15 को लग जाएगी। लेकिन स्वामी के साथ भागे लोगों के अलावा कोई नया चेहरा सपा कार्यालय में लगे मेले में नहीं दिखा।
यहां तक कि भाजपा छोड़ चुका दारा सिंह चौहान भी कल सपा कार्यालय में आयोजित दलबदल मेले में नहीं पहुंचा। दरअसल दारा सिंह चौहान की भारी भरकम डिमांड सुनकर अखिलेश यादव और स्वामीप्रसाद को इस कड़ाके की ठंड में पसीना आ रहा है। इस स्थिति से खिसियाया स्वामीप्रसाद कल अखिलेश यादव के सामने ही चीखने लगा था कि भाजपा छोड़कर आने वाले दर्जनों विधायकों मंत्रियों की भीड़ अब 21 जनवरी तक यहां रोजाना लगेगी।
लेकिन आज भी भाजपा से आयी एक चिड़िया तक सपा दफ्तर में नहीं दिखायी दी है।
लुटियन दिल्ली के मीडियाई बैंड मास्टरों ने 4-5 दिन तक गाल और गले की नसों को फट जाने की हद तक फुलाकर “मोदी भाजपा आरएसएस विरोधी”-धुन जमकर बजायी, समाजवादी पार्टी की सरकार बनने का ड्रम भी धूमधाम से पीटा। लेकिन स्वामी के अलावा ना कोई रीझा, ना कोई पसीजा।
अखिलेश यादव की भी समझ में अब आ चुका है कि भाजपा में पॉलिटिकल एक्सपायरी डेट पार कर चुके नेताओं को समाजवादी पार्टी में बहुत महंगी कीमत पर इम्पोर्ट करने की गलती हो चुकी है। वर्तमान परिस्थितियों में राजनीतिक सूझबूझ और जमीनी नब्ज समझने वाला कोई अनुभवी नेता भाजपा छोड़कर सपा में नहीं आएगा। स्वामी भी ना आता अगर भाजपा उसे खदेड़ने की तैयारी ना कर चुकी होती। अब किसी भी भाजपा विधायक या मंत्री को समाजवादी पार्टी में नहीं लेने की अखिलेश की घोषणा का मुख्य कारण यही है।
कोई निंदा आलोचना चाहे जितनी करे। लेकिन चुनावी मौसम में आयाराम गयाराम का राजनीतिक खेल अब एक अपरिहार्य परंपरा बन चुका है। लेकिन यह खेल उस फूहड़ता उदंडता और हुड़दंग के साथ नहीं खेला जाता जिस फूहड़ता उदंडता और हुड़दंग के साथ स्वामीप्रसाद और अखिलेश पिछले 4-5 दिनों से खेल रहे हैं। आज घोषित पहले दो चरणों के प्रत्याशियों की सूची में 8 सीटों पर नामों की घोषणा नहीं करना संकेत है इस बात का कि उन सीटों पर भाजपा भी अभी सम्भवतः आयाराम गयाराम का राजनीतिक खेल ही खेल रही है लेकिन बहुत धैर्य के साथ।
स्वामीप्रसाद के हुड़दंग को न्यूजचैनलों के विदूषक यह कहते हुए हवा दे रहे थे कि भाजपा पहले 70-80 ,विधायकों का टिकट काटने वाली थी लेकिन स्वामीप्रसाद के जाने के बाद डरी भाजपा अब 30-35 टिकट ही काटेगी। लेकिन इन न्यूजचैनली विदूषकों की अटकलो से ठीक उलट भाजपा ने टिकट देने की शुरुआत बहुत सधी हुई सटीक रणनीति के साथ की है।
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