देवेंद्र सिकरवार : राजनीति करनी है तो गुंडे पालो,खुद गुंडे बनो मत
नेता और गुंडा
“अगर नेतागिरी करनी है तो गुंडे पालो, गुंडे बनो मत।”
एक प्रसिद्ध टीवी सीरिज का यह डायलॉग राजनीति पर पहले भी खरा था और आज भी खरा ही है।।
पर हमारे फेसबुकिया हिंदू लक्कड़बग्घा संघ को लगता है कि-
कुल जमा तीस लाख की फौज,
विश्व की तीसरी सबसे शक्तिशाली एयरफोर्स और
विश्व की चौथी सबसे शक्तिशाली नौ सेना के होते हुए भी,
मोदिया बांग्लादेश पर हमला क्यों नहीं कर रहा?
क्या उसे नोबेल पुरुस्कार की चाहना है?
नहीं, क्यों कि वो जानता है कि वे जमाने गये जब बड़े देश चुटकियों में छोटे व कमजोर देशों को डकार लेते थे।
अभी निकट अतीत में–
-अमेरिका व चीन वियेतनाम को नहीं हरा पाये ।
-रूस और अमेरिकी अफगानिस्तान को काबू नहीं कर पाए।
-पाकिस्तान व अमेरिका बांग्लादेश को रोक नहीं पाए।
और अब वर्तमान में–
-रूस दो साल से दो कौड़ी के यूक्रेन को नहीं हरा पा रहा।
-इजराइल एक साल से हमास व हिजबुल्ला को नहीं मिटा पा रहा।
-आर्मीनिया अजरबेजान को नहीं हरा पा रहा।
इन सभी मामलों में हमलावर देशों ने इसलिए मुँह की खाई क्योंकि उसके विरोधी पक्ष की ओर से इन देशों को मदद मिलती रही।
-जब अमेरिका ने वियेतनाम पर हमला किया तो चीन वियेतनाम की मदद करता रहा और जब चीन ने स्वयं हमला किया तो इस बार रूस ने वियेतनाम की मदद की।
-जब रूस ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया तो अमेरिका ने मुजाहिदीनों की मदद की और जब स्वयं अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो पाकिस्तान ने तालिबान की मदद की।
-जब पाकिस्तान ने ने बांग्ला लोगों को दबाया तो भारत ने उसकी मदद की और जब अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद की तो रूस भारत की मदद को आया।
-रूस युक्रेन को सिर्फ सात दिन में कुचल सकता है लेकिन आज डेढ़ वर्ष से ज्यादा हो गया है, यूक्रेन अपराजित है क्योंकि पश्चिमी देश यूक्रेन के पीछे खड़े हैं।
-इजरायल एक वर्ष से दो इस्लामिक आतंकवादी संगठनों को नहीं कुचल पा रहा है क्योंकि ईरान व तुर्की उनकी मदद कर रहे हैं।
अतीत में अपवादस्वरूप अमेरिका ईराक के खिलाफ खाड़ी युद्ध जीत पाया तो सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके खिलाफ सद्दाम को अंदरखाने समर्थन देने के लिए कोई अमेरिका विरोधी पक्ष था ही नहीं।
अब कोई देश किसी को इतनी आसानी से नहीं जीत सकता क्योंकि अगर आक्रांत देश को अन्य देश की ओर से हथियार व तकनीक की आपूर्ति होती रहे तो वह संघर्ष को चाहे जितना लम्बा चला सकता है और यही कारण है कि हथियार व तकनीक के मामले में हमसे दोगुना संसाधन रखने वाला चीन ताईवान पर हाथ डालने से डर रहा है।
रूस के हश्र को देखकर चीन समझ गया है कि वह चाहे जितना जोर लगा ले आज की तारीख में ताईवान को वह डंडे से हासिल नहीं कर पायेगा।
तो आप क्या सोचते हो कि भारतीय सेना पहले की तरह इन्फेंट्री लेकर सात दिन में बांग्लादेश को हरा देगी।
हरा तो देगी लेकिन भारत को फिर एक लंबे युद्ध में फंसना पड़ेगा, जिसका परिणाम होगा मंहगाई, युवाओं का बलिदान व आंतरिक दंगे और जिस देश में टमाटर-प्याज महंगे होने पर सरकारें बदल दी जाती हों वह हिंदू क्या ही लंबी जंगें लड़ेंगे और जहाँ जाति को देखकर हिंदुत्व को एक तरफ रख दिया जाता हो वहां मुस्लिमों द्वारा फैलाये आंतरिक दंगों से कौन हिंदू लड़ेगा?
लेकिन चलिए अगर यति नरसिंहानंद छाप इन तथाकथित हिंदू वीरों की बात मानकर मोदी बांग्लादेश पर हमला कर भी दें तो जरा देखें कि दोनों देशों के साथ कौन-कौन आएगा?
भारत का साथ कौन देगा?
भारत के साथ कोई नहीं आएगा, अगर अमेरिका भारत के पक्ष में नहीं आया।
रूस और इजराइल का समर्थन मिल भी गया तो वह किसी मतलब का नहीं क्योंकि फिलहाल दोंनो अपने ही मुद्दों पर उलझे पड़े हैं।
और अब देखें कि बांग्लादेश के पक्ष में कौन आएगा?
पाकिस्तान,
चीन,
तुर्की,
वैश्विक मुस्लिम आतंकवादी,
अमेरिका की हथियार लॉबी,
जॉर्ज सोरोस और कांग्रेस मंडली,
अब पुराने युद्धों के दिन गये।
मॉडर्न वॉरफेयर में खुद युद्ध नहीं लड़ा जाता बल्कि गुंडों को पाला जाता है जो आपकी जंग लड़ता है और आप उसे अंदरखाने सपोर्ट करते हैं।
इसलिए अब अमेरिका ने एक सबक ले लिया है कि वह स्वयं युद्ध में नहीं उतरता बल्कि अपने पाले हुए राष्ट्रों को हथियार व पैसा देकर उनसे जंग लड़वाता है।
इस काम के लिए अमेरिका ने–
यूरोप में यूक्रेन
मध्यपूर्व में इजराइल,
दक्षिण पूर्व में ताईवान और
सुदूरपूर्व में फिलिपीन्स को पाला हुआ है
इस नीति का पालन अब सभी देश कर रहे हैं और यहाँ तक कि ‘यूरोप के मरीज’ तुर्की की भी इतनी हिम्मत हो चुकी है कि वह पूरी इस्लामी दुनियां को हथियारों से सपोर्ट कर रहा है। वह उन्हें विश्व के श्रेष्ठतम ड्रोन्स सप्लाई कर रहा है।
जी हाँ, अब ड्रोन्स का युग है और आपको सुनकर बुरा लगेगा लेकिन फिलहाल हमारे पास तुर्की के ड्रोन्स का कोई तोड़ नहीं है।
इसके अलावा अगर आपने ध्यान दिया हो तो बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न पर गांधी परिवार का एक भी बयान नहीं आया है।
राहुल & इटालियन कंपनी लगातार प्रयत्न कर रही है कि भारत सरकार पूर्वोत्तर में मणिपुर में आंतरिक संघर्ष में लिप्त हो जाये ताकि पूरे विश्व में हिंदू बनाम ईसाई का नैरेटिव चला सके।
अगर आपने ध्यान दिया हो तो बांग्लादेश के मसले पर कांग्रेस ने हिंदू उत्पीड़न पर एक शब्द नहीं बोला है और न सरकार से कोई मांग की है और इसका मूल कारण है सरकार की चुप्पी।
अभी राहुल बांग्लादेश पर कुछ बोलने से बच रहा है तो इसका एक ही कारण है कि ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेज यह तय नहीं कर पा रही हैं कि भारत सरकार की योजना बांग्लादेश के संदर्भ में क्या है।
जिस दिन कांग्रेस को यह अंदाजा हो जायेगा कि सरकार बांग्लादेश के मामले पर कोई एक्शन नहीं लेगी, उसी पल राहुल गांधी बांगलादेश के विरुद्ध कार्यवाही की मांग करने लगेगा।
अभी उसे अंदेशा है कि देर सवेर बांगलादेश में कुछ न कुछ अवश्य होगा और ऐसी स्थिति में अगर आज उसने बांग्लादेश के विरुद्ध कार्यवाही की मांग कर दी तो उसे सरकार का समर्थन तो करना ही पड़ेगा साथ ही उसके मुस्लिम मतदाता भी बिदक जाएंगे।
ऐसे में फिलहाल वह चुप रहकर बीस जनवरी के बाद के माहौल को देखेगा, मोदी व ट्रंप के बीच समीकरण को परखेगा और तब जाकर राहुल & सोरोस कंपनी कोई स्टैंड लेगी।
भारत सरकार भी न तो सीधे सैन्य हस्तक्षेप करेगी और न करना चाहिए बल्कि वह इन्तजार करेगी या गठित करेगी ‘हिंदू मुक्तिबाहिनी’ और फिर चलेगा एक लम्बा संघर्ष और यदि अमेरिका से गुप्त समझौता हो सका तभी भारत सरकार सीधी कार्यवाही कर सकेगी।
अगर ट्रंप से समीकरण सही बने तो घटनाओं का क्रम कुछ ऐसा होना चाहिए –
-भारत से अवैध बांग्ला व रोहिंग्या घुसपैठियों को बांग्लादेश की ओर खदेड़ा जायेगा।
-प्रतिक्रिया में बांग्लादेश के हिंदुओं को भारत की ओर खदेड़ा जायेगा।
-भारत बांग्लादेश के हिंदुओं को चिकननैक के क्षेत्र में रखेगा और उसमें से मुक्तिबाहिनी का गठन होगा।
-बांग्लादेश की सेना उकसावे में आकर भारत की सीमा पर आक्रामक कदम उठाएगी।
-भारत प्रतिकार के सिद्धांत का हवाला देकर कार्यवाही करेगा और ऊपरी उत्तरी क्षेत्र को कब्जे में लेकर हिंदुओं का होमलैंड बना देगा।
-हिंदू होमलैंड की सरकार अपना विलय भारत में कर देगी और पूरा क्षेत्र त्रिपुरा में मिला दिया जायेगा।
– बांग्लादेश से आने वाले बंगाली हिंदू मिजोरम, नागालैंड आदि में भी बसाये जाएंगे ताकि वहां इसाईं प्रभुत्व खत्म हो।
बहरहाल, यह कोई भविष्यवाणी नहीं बल्कि एक अनुमान है और यह तभी संभव होगा जब आज के भू सामरिक परिदृश्य में मौजू कहावत को घोंट लिया जाये कि —
“राजनीति करनी है तो गुंडे पालो,खुद गुंडे बनो मत ।”
जब विश्व के सबसे बड़े गुंडे अमेरिका ने इस पाठ को रट लिया है तो भारत के हिंदू लक्कड़बग्घों को यह छोटी सी बात क्यों समझ नहीं आ रही।