डॉ. भूपेंद्र सिंह : कुंभ.. ये घटिया और बेहूदा नैरेटिव टूट चुका है
पहले अखिलेश यादव, फिर चंद्रशेखर रावण और उसके बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोगों को यह बताने की कोशिश की कि कुंभ मेले में सरकार जो खर्च कर रही है, वह बेकार की चीज है। सरकार का ध्यान रोजगार पर होना चाहिए।
अभी भी विपक्षी पार्टियों को यह समझ नहीं आ रहा है कि ये घटिया और बेहूदा नैरेटिव टूट चुका है और प्रत्येक व्यक्ति अब स्वीकार कर चुका है कि हिंदुओं के धार्मिक आयोजन, मंदिर, मेले आदि रोजगार सृजन के साधन हैं और ये देश के विकास एवं अर्थ व्यवस्था के लिए आवश्यक हैं। हिंदुओं का उत्सवधर्मी होना भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक वरदान साबित हुआ है।
फ़ैज़ाबाद में भाजपा के हार के बात अयोध्या के रियल स्टेट मार्केट का बूम लगभग पाँच सात महीने के लिए न केवल बिल्कुल थम गया था बल्कि रिवर्स भी हो गया था। यह बात अयोध्या का प्रत्येक व्यक्ति जानता और समझता है। भाजपा, आध्यात्मिक पर्यटन और विकास यह तीनों एक दूसरे के सहयोगी तत्व हैं। विपक्षी पार्टियों को भाजपा को घेरने के लिए नए मुद्दे तलाशने चाहिए। क्यूंकि इस मुद्दे पर अंततः आपको अपने स्टैंड से पलटने को मज़बूर होना होगा।
इस बार कुंभ को लेकर जिस तरह का क्रेज़ है, उसमें यह याद रखिए कि कुंभ की समाप्ति तक हर तीन हिंदू में से एक हिंदू कुंभ में डुबकी लगा चुका होगा। इसमें भारी मात्रा में वो जातियां ट्रक ट्रेक्टर में बैठकर आ रही है जो कभी इन धार्मिक आयोजनों से बहुत मतलब नहीं रखती थीं।
दलितों और पिछड़ों के विभिन्न जातियों का ब्राह्मणवाद के ख़िलाफ़ वास्तविक और तथाकथित संघर्ष चलता रहेगा लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है कि ये जातियां वास्तव में हिंदुत्व के परिभाषा को नकारकर अपने लिए नई परिभाषा गढ़ें। हिंदुत्व स्वयं में इतना व्यापक और लचकदार है की वह समय के साथ सबको ससम्मान अपने में एडजस्ट कर लेगा। जिन लोगों का अति विरोध हिंदू देवी देवताओं के प्रति दिख भी रहा है, वह एक सामान्य प्रतिक्रिया है अंगूर खट्टे हैं जैसे पैटर्न में। यह सब समय के साथ ठीक होता चला जाएगा।
महाकुंभ ने हिंदुत्व को समावेशी और समदर्शी होने को बहुत बड़ा मौका दिया है। अच्छी बात यह है कि समाज ने इस मौके का सकारात्मक उपयोग कर लिया है।
