NRI अमित सिंघल : मुठभेड़ की फोटो ना छपने के पीछे का सच.. व्यवस्था की कुशलता का रहस्य…

हाल ही में पढ़ने को मिला कि पुणे का एक MD डॉक्टर, IIT बॉम्बे का ग्रेजुएट, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का छात्र, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर को NIA ने आतंकी हमलो की प्लानिंग एवं बढ़ावा देने के लिए अरेस्ट कर लिया है।

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स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठा कि इन लोगो तथा इनके आकाओ को इतनी समझ तो होगी कि आतंकी हमलो की प्लानिंग के लिए इंटरनेट एवं सेल फोन का प्रयोग नहीं करना है। आप कितने ही कठिन पासवर्ड लगा ले, कितने ही Virtual Private Network (VPN) का प्रयोग कर ले, कितना भी अपने डिजिटल सिस्टम को encrypt (कूट रूप में) कर ले, सरकार को लगभग सब पता रहता है या पता चल जाता है।

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आखिरकार वर्ष 2011 में भी ओसामा अपने पास सेल फोन भी नहीं रखता था, पाकिस्तान में उसकी शरण स्थली में कोई इंटरनेट नहीं था। वह एक विश्वसनीय व्यक्ति के द्वारा “अपने लोगो” से संपर्क किया करता था।

यह लगभग निश्चित है भारत के पढ़े-लिखे डॉक्टर-इंजीनियर आतंकी अपने हमलो की प्लानिंग के लिए डिजिटल माध्यम का प्रयोग नहीं करते है, तो सरकार इन लोगो तक कैसे पहुँच गयी?

दो अनुमान निकाल सकता हूँ।

प्रथम, इनके नेटवर्क – चाहे भारत में हो या सीमापार – में भारतीय व्यवस्था ने सेंध लगा ली है और अपने एजेंटो को घुसा दिया है। अतः समय रहते सूचना मिल जाती है।

द्वितीय, इनके कुछ सहयोगी हमले के लिए कार्यवाई करते समय किसी अन्य तरीके (लिखना उचित नहीं होगा) से व्यवस्था की पकड़ में आ जाते है। लेकिन व्यवस्था उन्हें पकड़ कर, कुछ को मार कर अन्य सहयोगियों से “सब” उगलवा कर इन पढ़े-लिखे आतंकियों तक पहुँच जाती है।

लेकिन फिर प्रश्न उठता है कि अगर कुछ लोग पकड़ लिए गए है (जिससे वे लोग गवाही दे सके) तथा कुछ अन्य को विलुप्त कर दिया गया है तो हम ऐसे लोगो के बारे में समाचार या सूचना क्यों नहीं पढ़ते या देखते है?

यही पर व्यवस्था की कुशलता का रहस्य छुपा हुआ है।

एक समय इशरत जहां एवं उसके सहयोगियों – जो प्रूवेन आतंकी थे – की मुठभेड़ में मारे जाने पर मोदी विरोधियों, मानवाधिकारियों एवं सोनिया सरकार (ध्यान से सोचिये – उस समय की भारत सरकार जिसे सब पता था) ने मुख्यमंत्री मोदी एवं गुजरात पुलिस पर कई केस एवं इन्क्वारी ठोक दिए थे। मुख्यमंत्री नितीश ने बिहार में इशरत एम्ब्युलेन्स (जिस पर इशरत की फोटो चिपकी थी) चलवा दी थी।

उस समय ऐसे कई समाचार आते थे कि आतंकियों को मुठभेड़ में मार गिराया गया है। और ऐसे हर मुठभेड़ के बाद समाचारपत्रों में मरे हुए आतंकियों एवं सुरक्षा कर्मियों की फोटो छपती थी।

उसके बाद राजमाता का रोना-धोना शुरू होता था, उन्हें रात को नींद नहीं आती थी।

तो क्या यह मान लिया जाए कि अब आतंकियों से मुठभेड़ नहीं हो रही है तथा उनको सीधे उनके घर से अरेस्ट किया जा रहा है?

ऐसी मुठभेड़ की फोटो ना छपने के पीछे की सफलता को देखिए, पहचानिये और सोचिये कि अगर सोनिया सरकार होती तब क्या होता?

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