अमित सिंघल : पर्यावरण की लड़ाई भी अब ‘लोकेशन बेस्ड’.. मौत भी ग्रीन होना चाहिए..?
किसी ने लिखा कि अरावली, राजस्थान में प्राकृतिक और खनिज सम्पदा का दोहन नहीं करना चाहिए। किसी अन्य ने झारखंड, ओड़िसा, छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक और खनिज सम्पदा का दोहन करने की आलोचना की है।
फिर प्राकृतिक और खनिज सम्पदा का दोहन कहाँ करना चाहिए?
सभी मंचो पर यही प्रश्न पूछ रहा हूँ। अभी तक उत्तर नहीं मिला है।

क्या आपका घर, वाहन, घर में नल से जल, भोजन, शौचालय, पुस्तक, समाचारपत्र, वह कंप्यूटर या मोबाइल जिस पर आपने पोस्ट किया है, इंटरनेट, बिजली का उत्पादन एवं ट्रांसमिशन, सीमेंट-ईंट-लकड़ी-बिजली का तार, दवा-मरहम, कपड़ा, भोजन, डीज़ल-पेट्रोल-गैस, हथियार, गोला-बारूद बिना प्राकृतिक और खनिज सम्पदा के दोहन के बन सकता है?
यहाँ तक कि अंतिम संस्कार भी प्राकृतिक और खनिज सम्पदा का दोहन करके होता है।
आप वही कमेंट करेंगे कि “मेरे घर” के पास प्राकृतिक और खनिज सम्पदा का दोहन नहीं होना चाहिए। या कुछ नियम-कानून की आड़ ले लेंगे। साथ ही मेधा पाटकर की आलोचना भी करेंगे कि उसने नर्मदा बाँध के निर्माण में दो दशक की देरी करवा दी।
घुमा-फिराकर आप इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहे है कि फिर प्राकृतिक और खनिज सम्पदा का दोहन कहाँ करना चाहिए?
केवल आक्रोश एवं ब्लेम?
क्यों नहीं आप अभी एक शुरुवात करते है। आप एक विल बनाइए जिसमे प्रण कीजिये कि आपकी मृत्यु के बाद आपके पार्थिव शरीर को अंगदान एवं मेडिकल रिसर्च के लिए दे दिया जाए।
या फिर किसी मैदान में चील-गिद्धों-कुत्तो के खाने के लिए छोड़ दिया जाए।
इस “प्रक्रिया” में किसी भी प्राकृतिक और खनिज सम्पदा का दोहन नहीं होगा।
यही आपका सत्यनिष्ठ आक्रोश होगा।


