सुरेंद्र किशोर : पत्रकारिता की सीख.. अरवल नर संहार की याद में…

अरवल नर संहार की याद में

19 अप्रैल, 1986 को मध्य बिहार के अरवल में पुलिस की गोलियों से 21 प्रदर्शनकारी मारे गए थे।
अरवल में हुए पुलिस गोली कांड की इस घटना के बारे में बाद में वहां के एस.पी. सी.आर कासवान ने ‘इलेस्टेटेड वीकली आॅफ इंडिया’ को बताया था कि
‘‘मुझ पर फरसे से वार करने वाले व्यक्ति को नागेंद्र ओझा नामक कांस्टेबल ने गोली मार दी।
वह मर गया।
किंतु अरवल थाना परिसर से 50 चक्र गोलियां चलाने का आदेश पुलिस को किसने दिया,यह मुझे नहीं मालूम।
इन्हीं गोलियों से बाकी बीस लोग घटनास्थल पर मरे थे।
मैं फोर्स का कमांडर तब बना जब 53 चक्र गोलियां चल चुकी थीं।’’( 22 जून 1986)
इस घटना के तत्काल बाद गया के डी.एम., अशोक कुमार सिंह ने राज्य सरकार को यह रिपोर्ट भेजी थी कि ‘भीड़ पर पुलिस द्वारा जो फायरिंग की गई,वह अनावश्यक थी।’

पत्रकारिता की एक सीख

‘जनसता’ के संपादक प्रभाष जोशी के साथ मैं अरवल गया था।
उससे पहले घटना के तत्काल बाद ही मैं वहां गया था।
बिहार के बाहर के लोगों ने जनसत्ता में छपी मेरी ग्राउंड जीरो रपट के जरिए ही उस नर संहार के बारे में पूरा विवरण जाना।
मैंने घटनास्थल से लौटकर वह रपट लिखी थी।

दूसरी अरवल यात्रा के बारे में

अरवल डाक बंगले के ड्राइंग रूम में जोशी जी के साथ
मैं जिलाधिकारी का इंतजार कर रहा था।अशोक कुमार सिंह बगल के कमरे में अफसरों के साथ बातचीत कर रहे थे।
इंतजार करने वालों में जनरल एस.के. सिन्हा भी थे।Perhaps retd Justice Rajendra sachchar also
हमने अपने आने की सूचना डी.एम.को भिजवा दी थी।
’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’
डी.एम.बाहर आने में देरी कर रहे थे।
मैं अधीर हो रहा था।
मैंने जोशीजी से कहा कि ये अफसर लोग हमसे बात करना नहीं चाहते।
अब हम लोग चलें।
जोशी जी ने मुझे समझाया।
इस तरह अधीर होने से पत्रकारिता नहीं होती।
आप अफसर का पक्ष जाने बिना रिपोर्ट लिखेंगे तो आपकी रपट अधूरी रहेगी।
उसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ सकता है।
आखिर काफी देर के बाद डी.एम. बाहर आए।
उन्होंने पूरा विवरण हमें बताया।
प्रभाष जी ने भी दिल्ली लौटकर अरवल कांड पर लंबा लेख लिखा था।

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