छत्तीसगढ़  की शांत राजनीति के समंदर में षडयंत्र  के  ज्वार..    राजनीति /अरविंद पांडे

ढाई -ढाई  साल  के  मुख्यमंत्री के  फार्मूले  ने  बचपन  के  दिनों  की  याद  दिला  दी,  जब  मां दो बच्चो  को झूले में बारी -बारी  से  बैठने   का  फार्मूला अपनाकर  झगड़ा  शांत  करा देती  है।
 भाई  लोग  झूले  के  इस  खेल  को  सत्ता  की  राजनीति  मे  भी  ले  आये, जिसका परिणाम देश के अन्य राज्यों में पहले ही लोग देख चुकें हैं।
ज्वलंत राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर 2 दशक से अरविंद पांडे लगातार बेधड़क लिख रहें हैं.
प्रदेश  की  राजनीति  एक  ऐसे  गणित  मे  उलझी  हुई  है जिसमे न कोई फार्मूला  है और  न  कोई  त्रिकोण  फिर  भी  समंदर  जैसी  शांत  राजनीति  में ज्वार आ  गया। लहरें  बहुत ऊंचाई तक  गई,  जिसे  लोग  बड़े कौतूहल से  देख  रहे  थे  लेकिन समंदर  के  मछुआरों  के  लिये  यह एक आम  दिनचर्या  थी।  इसलिये उन्हे  समंदर  के  ज्वार से  कोई  मतलब  नही  रहता।  हां उसका  इंतजार  जरुर  रहता  है  ताकि अपनी  सुरक्षा कर  सके।   प्रदेश  की  शांत राजनीति  में  भी  कुछ  ऐसा  ही  ज्वार  आया  हुआ  है  जिसके लिए  राजनीतिक शतरंज के सुलझे हुए महाराजा  ने  अपनी  तैयारी  पहले  ही  कर  ली  थी।  ढाई -ढाई  साल  के  मुख्यमंत्री के  फार्मूले  ने  बचपन  के  दिनों  की  याद  दिला  दी,  जब  मां दो बच्चो  को झूले में बारी -बारी  से  बैठने   का  फार्मूला अपनाकर  झगड़ा  शांत  करा देती  है।
 भाई  लोग  झूले  के  इस  खेल  को  सत्ता  की  राजनीति  मे  भी  ले  आये, जिसका परिणाम देश के अन्य राज्यों में पहले ही लोग देख चुकें हैं।  इस फार्मूले ने  प्रदेश  की  राजनीति  में तूफ़ान  खड़ा  कर  दिया।  कौटिल्य  ने  भी  कहा  है कि  राजनीति  की  सत्ता में जोड़-तोड़  होता  है।  जो  चतुर  रहता  है ,जनहित की और आम जनता की बात करता है, वह  सत्ता  पा  जाता  है  और  जनता  को  चतुर  शासक  चाहिए  और यही हो भी रहा है।
गत विधानसभा चुनाव के बाद से प्रदेश  में  जब  से  भूपेश  पर   पार्टी  हाई कमान  ने  भरोसा  जताया  है,  तब  से  लोगो  मे  भी  सरकार  के  प्रति भरोसा  बढ़ा है  क्योंकि  इस  सरकार  ने  कुछ  काम ऐसे  किये है  जो  राज्य  बनने  के  बाद पहली  बार हुआ  है  या  हो  रहें  है। लोगों को अब पहली बार विश्वास हुआ है कि यह मूल निवासियों  की  सरकार  है।
इस  विश्वास को हाई कमान ढाई – ढाई  साल  वाले  फार्मूले  मे  बदलेगी  तो  पार्टी के लिए आगे के चुनाव में जीत की आशंका बनी रहेगी। प्रदेश में पिछले दो-तीन महीनों से सारे काम ठप्प हो गए हैं, सबकी नजरें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी हुई है। हो सकता है कि पार्टी हाई कमान अगले सप्ताह तक प्रदेश का दौरा करने आये और इस मध्य अगर बचपन के झूले के फार्मूले को फिर से अगर हवा दी गई तो तय है कि 15 बरस के बाद प्रदेश की सत्ता में आई कांग्रेस की स्थिति प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में हास्यास्पद हो जाएगी और इस बात को खेलने वाले और खिलाने वाले दोनों ही पक्ष अच्छे से जानते हैं, समझतें हैं।।
विपक्ष भी “जली को आग बुझी को राख और उसमें से निकली चिंगारी को विश्वनाथ कहते हैं” शॉटगन के इस सुपरहिट डायलॉग के तर्ज पर आग लगाकर बहती गंगा में हाथ धोने में लगा है। अब राख से चिंगारी निकलेगी या नहीं, यह तो हाईकमान के प्रदेश दौरे के बाद ही स्पष्ट होगा।

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